*सुन्दर वो*
मेरे हुस्न पे फ़िदा यूँ हुए,
कि मेरे क़रीब से गुज़रते हुए
कहीं और भटक गए।
न जाने वो
जो मुझसे छूटकर चले थे,
मंज़िलों पे पहुँचकर भी
ख़ुद को पा न सके।
और मैं...
जब किसी गली को ठुकरा देती हूँ,
जहाँ वो बस चुके होते हैं,
तो लगता है
या तो वो रूह से उतर चुके हैं,
या फिर
मेरे ख़यालों में हमेशा के लिए
क़ैद हो गए हैं।
_Mohiniwrites