जिस दिन चुक जाऊँगा
मौन हो जाऊँगा,
सत्य को पहिचान जाऊँगा।
खेत जोतूँगा
तभी अन्न उगेगा,
आग जलाऊँगा
तभी अन्न पकेगा।
सुख के लिये
एक दिया जला लूँगा,
कष्टों पर चुपचाप
पर्दा डाल,मौन रहूँगा।
झूठ को अन्त तक
पसरने नहीं दूँगा,
आखिर चुक जाने के बाद
फूलों में लिपट जाऊँगा।
+*** महेश रौतेला