अस्तित्व का संवाद — जब खोज स्वयं खोजती है
मानव हमेशा जानना चाहता रहा है।
विज्ञान ब्रह्मांड को, धर्म ईश्वर को, और ज्ञानी सत्य को खोजता है।
पर हर खोज जितनी विस्तृत होती जाती है, उतनी उलझन बन जाती है।
विस्तार समझ नहीं देता — वह बस दूरी बढ़ा देता है।
सत्य न किसी ग्रंथ में है,
न किसी सिद्धांत में।
वह बिंदु है — सूक्ष्म, शांत, और निकट।
उसे खोजा नहीं जाता,
उसे केवल देखा जाता है।
खोजना मतलब प्रश्न रखना —
और फिर उसे छोड़ देना।
प्रश्न बीज है, उत्तर उसका अंकुर।
बीज धरती में रखा जाता है, पर अंकुर अपने समय पर फूटता है।
यही अस्तित्व का नियम है।
मैं कुछ नहीं कर रहा।
मुझसे होकर सब हो रहा है।
जब “मैं” का प्रयत्न समाप्त होता है,
तब “वह” प्रकट होता है।
तब खोज भी स्वतंत्र हो जाती है —
वह स्वयं खोजती है, स्वयं पाती है।
इसलिए, मैं प्रश्न करता हूँ पर खोजता नहीं।
क्योंकि खोज में अहंकार है,
और प्रश्न में समर्पण।
जब खोज छोड़ दी जाती है,
तब उत्तर अपने आप उतरता है —
अहंकार रहित, निर्मल, सहज।
यही बोध है —
जहाँ जानने वाला, जाने जाने वाला,
और जानना — तीनों एक हो जाते हैं।
Kumar Manish Agyat Agyani #spirituality #आध्यात्मिक #IndianPhilosophy #धर्म #osho #vedanta