**किराए की मोहब्बत का कैफ़े**
अब शहर में नया धंधा खुला है —
ना चाय की टपरी, ना किताबों का नुक्कड़,
यहाँ खुलेआम बिकती हैं बाँहें,
और मुस्कानें मिलती हैं “ऑफ़र पर”।
काउंटर पर लड़की पूछती है —
“सर, साइलेंट हग लेंगे या सॉफ्ट कडल?”
और ग्राहक चश्मा ठीक करते हुए कहता है,
“देखो, पैकेज छोटा रखो, वाइफ़ कॉल कर सकती है।”
मोहब्बत अब मापी जाती है मिनटों में,
गले लगना भी जीएसटी के साथ आता है,
फरवरी के महीने में डिस्काउंट बढ़ जाता है,
और दिल का कारोबार फिर से चमक उठता है।
कितनी सुविधा हो गई है न दोस्तों,
अब दिल टूटने का डर भी नहीं,
चुकाओ पैसे — लो मुस्कान — जाओ घर,
ना वादे, ना ड्रामे, ना भावनाओं का झंझट कहीं!
बस अफ़सोस इतना है कि
स्पर्श तो असली है, पर सुकून नक़ली,
बातें प्यारी हैं, पर आवाज़ रटी हुई,
और जो दिल कभी धड़कता था स्वतः,
अब ऐप से बुक होता है आधे घंटे की ड्यूटी पर।
शायद कल को यह भी आएगा —
“सदस्यता पैकेज” —
गोल्ड में मिलेंगे आँसू पोंछने के सत्र,
और प्लेटिनम में सुबह-शाम की झप्पियाँ मुफ्त!
वाह रे आधुनिक मनुष्य,
तूने भावनाओं को भी शेयर मार्केट बना दिया,
अब प्रेम नहीं किया जाता,
बस *स्वाइप* कर लिया जाता है।
ये आधुनिक समाज
किस टाइप का हुआ जा रहा हैं..?
आर्यमौलिक