**बचपन में बड़ा होना**
लोग पूछते हैं – *“तुम्हें कब एहसास हुआ कि तुम बड़े हो गए?”*
मैं मुस्कुरा देता हूँ।
क्योंकि मेरा उत्तर किताबों में नहीं, ज़िन्दगी के पन्नों में लिखा है।
घर में जो बच्चा बड़ा कहलाता है – वह उम्र से पहले ही बड़ा हो जाता है।
जब मां-बाप की अनुपस्थिति में छोटे भाई को खाना खिलाना पड़ता है…
जब बहन के टूटे खिलौने को चुपचाप जोड़ना पड़ता है…
जब अपने हिस्से की मिठाई छोड़कर छोटे के हिस्से में डालनी पड़ती है…
तो समझ लो – बचपन का एक कोना वहीं खो गया।
हमारे लिए स्कूल की छुट्टियाँ सिर्फ खेल और कहानी नहीं थीं,
वे जिम्मेदारियों के अध्याय थे –
छोटों को होमवर्क कराना, उनकी लड़ाई में पंच बनना,
और घर में आने वाले हर मेहमान के लिए पानी और मुस्कान लाना।
जो भाई-बहन सदा सबसे बड़े कहलाते हैं,
वे समझ जाते हैं कि बचपन उनके लिए सिर्फ उम्र का नाम है।
दिल में उनका चश्मा जल्दी लग जाता है –
जो दूर के सपनों से पहले पास की जिम्मेदारियाँ देखता है।
हम बड़े नहीं होते…
हमें बड़ा बना दिया जाता है –
उस दिन से, जब परिवार हमें *“छोटों को संभालो”* कह देता है।
आर्यमौलिक