Hindi Quote in Poem by Agyat Agyani

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✧ कविता — “सौंदर्य का मौन” ✧
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

देह चमकी — जैसे जल में चाँद,
पर चाँद तो भीतर था,
आँख बस झिलमिला उठी।

सौंदर्य —
किसी के होंठों की मुस्कान नहीं,
वह तो मौन का प्रसाद है,
जो भीतर के शून्य से झरता है।

स्त्री ने सोचा — “मैं सुंदर हूँ”,
पुरुष ने कहा — “तू सुंदर है”,
और यहीं सौंदर्य मर गया।

जब दोनों भूल गए यह कहना,
और बस देखने लगे —
तब सौंदर्य पुनर्जन्मा,
आँख नहीं रही,
केवल दृष्टि रह गई।

रूप, रंग, देह, गंध — सब बह गए,
बस एक कंपन रह गया —
जो न स्त्री है, न पुरुष,
न देखने वाला, न दिखने वाला।

वह कंपन ही आत्मा है,
जो पंचतत्व में मुस्कराती है,
जो सौंदर्य को नहीं देखती —
स्वयं सुंदर हो जाती है।

Hindi Poem by Agyat Agyani : 112002209
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