गीत मुझसे ही मेरे रूठे हुए हैं,
मूक हो बैठे हुए हैं छंद सारे |
स्वयं हूँ अनभिज्ञ मन यूँ खिन्न क्यों है,
है तिरस्कृत कर रहा अनुबंध सारे |
नित नए आयाम पाने की ललक में,
जो था मेरे पास खोती जा रही हूँ |
स्वयं से है प्रेम, ये दावा कभी था,
स्वयं से ही दूर होती जा रही हूँ |
~रिंकी सिंह
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