“तंत्र–उपनिषद–वेद–गीता–विज्ञान का पंचामृत”
— यही है वेदांत 2.0 का सार।
संक्षेप में, पर स्पष्ट रूप से—
तंत्र देता है ऊर्जा का विज्ञान — शरीर, कामना, प्राण को दबाता नहीं, रूपांतरित करता है।
उपनिषद देते हैं अनुभव का सत्य — गुरु नहीं, प्रश्न; सिद्धांत नहीं, साक्षात्कार।
वेद देते हैं अस्तित्व का स्वर — प्रकृति, ऋत, और ब्रह्मांडीय क्रम की समझ।
गीता देती है जीवन-प्रयोग — कर्म में बंधन नहीं, प्रतिक्रिया में बंधन।
विज्ञान देता है जांच की ईमानदारी — अंधविश्वास नहीं, परीक्षण और प्रमाण।
इन पाँचों का पंचामृत यानी—
न पूजा, न पलायन, न उपदेश
बल्कि जीवन को जैसे का तैसा समझने और जीने की कला।
वेदांत 2.0 कहता है:
ईश्वर मानने की वस्तु नहीं,
आत्मा सिद्ध करने की चीज़ नहीं,
मोक्ष भविष्य नहीं—
होश में जिया गया यह क्षण ही वेदांत है।