MoralStories Quotes in Hindi, Gujarati, Marathi and English | Matrubharti

MoralStories Quotes, often spoken by influential individuals or derived from literature, can spark motivation and encourage people to take action. Whether it's facing challenges or overcoming obstacles, reading or hearing a powerful MoralStories quote can lift spirits and rekindle determination. MoralStories Quotes distill complex ideas or experiences into short, memorable phrases. They carry timeless wisdom that often helps people navigate life situations, offering clarity and insight in just a few words.

MoralStories bites

#moralstories


ગામઠી હોટલ ' આજે લોકો થી ફુલ ભરેલી હતી. વેઈટર કામ માં પોચી શકે એમ ન હતા. ઓડર ઉપર ઓડર લખાતા હતા. હોટેલ ની બહાર વેઈટિંગ માં ઘણા લોકો બેઠા હતા. કેશ મેનેજર બધું મેનેજ કરી ને જોઈ રહ્યા હતા કે ક્યાંય અડચણ ઉભી થાય એવું ના બને. એવામાં એની નજર એક ટેબલ પર પડે છે.

ટેબલ નં 17... વેઈટર એક ફૂડ ડીશ લઈ ને ત્યાં જાય છે પણ અચાનક જ ટેબલ પર પરિવાર માં જમવા બેઠેલો માણસ ગુસ્સાથી અપમાન કરી ને  ડીશ પાછી મોકલે છે. નજીક થી અવલોકન કરતા જણાયું કે બીજી વાનગી આવી હતી. બીજા કોઈક ની વાનગી નો ઓડર અહીં મુક્યો હતો. એટલે થોડી બબાલ થઈ. વેઈટર સોરી બોલી ને ફરીથી ઓડર પ્રમાણે ની ડીશ લઈ આવે છે.

થોડા જ સમય બાદ ફરીથી એક બીજું દ્રશ્ય મેનેજર ની સામે ઉભું થાય છે.

ટેબલ નં 22... એ જ વેઈટર ડીશ લઈને ટેબલ પાસે પહોંચે છે પણ ભૂલ થી બીજા નો ધક્કો લગતા ડીશ નું જમવાનું જમવા બેસેલા વ્યક્તિ પર ઢોળાય છે. એટલે વેઈટર હાફળો ફાફળો બની ને ગભરાઈ જાય છે. સોરી બોલે છે ને તરત બધું સાફ કરવા લાગી જાય છે. પણ.... પણ જમવા બેસેલો વ્યક્તિ શાંત બેઠો છે. આ બનાવ થી સહેજે ઉશ્કેરાતો નથી. મોં પર સ્મિત સાથે બોલે છે... નો પ્રોબ્લેમ ગુડ મેન... તમારો કોઈ વાંક નથી આમાં... કોઈ ના થી પણ આ ભૂલ થઈ શકે છે...ને હા, આ બધું સાફ સફાઈ કરવા બદલ...થેંક્યું.....વેઈટર જોતો જ રહ્યો....

આજે  બે અનુભવ મળ્યા... ફક્ત 'વાનગી ની ડીશ' બદલાઈ તો અપમાન.... ને... કપડાં ગંદા થવા છતાં પણ થેંક્યું .....!!

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जून माह की एक तपती दुपहरी कोई 2:00 बजा होगा। डॉक्टर के यहाँ से लौटती मैं, अपने ही ख्यालों में मगन चली आ रही थी। बाप रे! कितनी गर्मी है।घर जाते ही नहाकर वो गुलाबी हल्का वाला सूट पहनूंगी। लेकिन उस सूट को देकर तो मैंने छोटी परात ले ली थी। अब क्या करूं?  भगवान इतनी गर्मी क्यों है? अचानक मेरी नजर उस महिला पर पड़ी जो सधः स्नाता सी लगभग पसीने से भीगी हुई, एक इमारत में गारा ढोने का काम कर रही थी।
     एक विचार मन में कौंधा--हमारे पास हर मौसम के लिए अलग-अलग किस्म के कपड़े हैं, पर क्या इसके पास 2 जोड़ी के अलावा तीसरा कपड़ा होगा? हाँ, हो भी सकता है लेकिन उसे संभाल कर रखा होगा किसी शादी, ब्याह या मेले में पहनने के लिए। आज घर जाने के बाद नहाकर दूसरी धुली धोती पहनेगी और इसे धोकर डाल देगी कल के लिये। यही क्रम चलता रहेगा।
    बहुत छोटा महसूस कर रही थी। लानत है मुझ पर जो पुराने कपड़ों से बर्तन खरीद लेती हूँ। आभारी हूँ  उस पल की, जिसने मुझे एहसास कराया और बुद्धि दी। आज 25 वर्ष गुजर चुके हैं, मैंने कभी एक चम्मच भी नहीं खरीदा। हमारे लिए  बेजरूरत का सामान और कपड़े कुष्ठ आश्रम में दे आती हूँ। सच बहुत खुशी मिलती है। उस दिन पलकों की कोरों से झलक आयी वो दो बूंद ही,मुझे जीवन में सही दिशा में और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।
                                                  नीलिमा कुमार

તારે ઉડવું નથી?
સમી સાંજ નો સમય, અંદાજે ત્રીસ એક વર્ષ ની ઉમર ના યુવાનો ઘર માં પ્રવેશ્યા, મેનેજર ની પોસ્ટ હોવી જોઈએ એવો અંદાજ લગાવી શકાય. ઘણા બધા પ્રશ્નો આંખો માં ! અલબત જે કામ માટે આવ્યા હતા તે શરૂ થયું. પ્રથમ અસલ ડૉક્યુમેન્ટ બતાવો જેમકે પાન કાર્ડ , ઇલેક્શન કાર્ડ , પાસપોર્ટ , વગેરે. બીજો પ્રશ્ન, બીજે ક્યાય લોન લીધી છે? લોન નું સ્ટેટસ શું છે? ઘર ભાડા નું છે કે પોતાનું ? આવા તો કઈક કેટલાય પ્રશ્નો ની ભરમાર . પહેલી વાર એવો અનુભવ થયો કે પ્રશ્નો ના પણ પર્વત હોય શકે અને કાગળો ના પણ ઢગલા થઈ શકે !
પ્રક્રિયા ની આ અટપટી રીત ઘરના દરેક સભ્યોની આંખો માં અણગમા ના ભાવ લાવી રહી હતી. જાણે કે એકસરે કરી ને ભૂતકાળ વર્તમાન અને ભવિષ્ય બધુ જાણવું જરૂરી જ હોય ! સભ્યો ના જવાબ આવ્યા વારંવાર શા માટે? સામે વળતો જવાબ, ઉપર થી આદેશ આવે છે. ઘરમાં ગણી ને પાંચ જ વ્યક્તિ હતા, પચાસ હોય તો પણ રહી શકે એટલું તો વિશાળ ઘર હતું. આવનાર યુવાનો ને ઘરડા દાદી ની નજર માં એક ઊંડી નિરાશા દેખાઈ પણ પ્રશ્ન પૂછે નહી કારણ કે એમને આપવામાં આવેલ ફરજ માં એ આવતું ન હતું. વિદેશ જવા માટે ઇચૂક યુવાન વધારે ઉત્સાહી હતો પણ એનો ઉત્સાહ અલગ હતો . માત્ર વિદેશ જવા પૂરતો નહીં . ફરજ ના ભાગ રૂપે પ્રશ્ન ની કાર્યવાહી પૂરી થઈ . વિદેશ જવા ઇચૂક યુવાને પૂછ્યું કેટલા દિવસ થશે? વળતો જવાબ, ચાર દિવસ. યુવાનો ને લાગ્યું ઘર છે છતાં ઘર નથી, પરિવાર છે છતાં કઈક ખૂટે છે. બંને ને અકળામણ ખૂબ થતી હતી. તેમને પણ આ ઘુંટાતું રહસ્ય જાણવું હતું. તેમણે એટલું તો નિરીક્ષણ કર્યું કે તે યુવાન ની દાદી કે તેની માતા કશું બોલતા ન હતા. માત્ર પુરુષ વર્ગ જવાબ આપતા હતા. તે લોકો ઊભા થયા અને પેલા દાદીએ પ્રશ્ન કર્યો, તમારે ઉડવું નથી? બંને યુવાનો ને જાણે કે રહસ્ય પર થી પડદો ખૂલી ગયો અને જવાબ મળી ગયો !
બંને યુવાનો નો જવાબ એકસાથે, ના, મારી મમ્મી ઘરે રાહ જોવે છે. 

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घाटी में लगातार हालात बिगड़ रहे थे।जिसके कारण सीमा से लगे ज्यादातर गाँवों के स्कूलों की पढ़ाई पूरी तरह ठप हो चुकी थी।और परीक्षाओं की तिथि अनिश्चित काल के लिए टाल दी गयी थीं। कई होनहार बच्चों की फेहरिस्त में कुलसुम भी थी जो अपने भविष्य को लेकर बेहद चिंतित और उदास थी।अशरफ अली बेटी का दर्द बखूबी जानते थे। वह अपनी तरह किसी भी हालत में उसका मनोबल टूटने नहीं देना चाहते थे।
"बेटा किसी इम्तेहान को पास कर लेने से पढ़ाई मुकम्मल थोड़ी ना हो जाती...पढ़ाई का मतलब नॉलेज है,इम्तेहान नहीं!"
"लेकिन अब्बू फिर इतनी पढ़ाई करने का क्या मतलब रहा? पिछले साल भी यही हुआ था।" वह अपनी बेचैनी और रोष को छुपा ना सकी।
"अरे बिटिया हमारी तो उम्र गुजर गई इस आतंक के साये में,लेकिन तुम्हारी ज़िन्दगी बरबाद नहीं होने देंगे। हमें ये सब बातें जरा देर से समझ आयी, लेकिन तुम खूब समझ लो...पढ़ाई मतलब ये नहीं कि फलां क्लास की चंद किताबों को पढ़कर अव्बल आ गए तो कामयाब हो गए,बल्कि पढ़ना यानी अपने जेहन में पूरी दुनियां को समेट लेना है।" इसी तरह अशरफ़ अली काफी देर तक बेटी को सकारात्मक सोच के गुर सिखाते रहे।
"शायद आप सही कह रहे हैं, लेकिन अब्बू! मेरे पास तो जितनी किताबें हैं वह सब मुझे मुंहजबानी याद हैं फिर क्या पढ़ूँ...?
"तुम बस ऐसे ही लगन की पक्की बनी रहो मेरी बच्ची! इसलिए देखो तो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ?"उन्होंने अपने थैले में से दो मोटी-मोटी किताबें निकाल कर उसके हाँथो पर रख दी।
"ओह माय गॉड...
इनसाक्लोपीडिया..और ये कॉम्पटीशन की भी...अब्बू ये कहाँ से मिल गईं?ये तो बहुत मँहगी होगी?" वह खुशी से चहक उठी।किंतु उसके उल्लास में चिंता का पुट मिश्रित था।
"खरीद कर नहीं लाया। अपने एक दोस्त से महीने भर लिए लाया हूँ।"
"आप फिक्र ना करें अब्बू,मैं इन्हें चंद दिनों में ही चाट डालूँगी।"हा...हा...हा...वह खुशी से नाचती हुई बोली।
"बस ऐसे ही खुश रहो बिटिया!"अशरफ़ अली की आँखों में आँसू आ गए।
"और इसी तरह अब्बू कभी रद्दी की दुकान से, कभी कहीं और से मेरे लिए किताबों का इंतेजाम करते रहे।"
टी वी स्क्रीन पर खुद पर बनी छोटी सी फिल्म को देखकर उसने बात पूरी की।
"आप अभी नौंवी की छात्रा हैं,लेकिन आपकी नॉलेज के आगे कॉलेज के छात्र तक पानी भरेंगे। इसी बात पर कुलसुम के लिए जोरदार तालियाँ।" मंच के आतिथेय ने जोश के साथ कहा। और सारा मंच तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।तालियों का शोर शांत होते ही उसने कृतिज्ञता से अपने पिता की ओर देखा और कहा-
"अब्बू! मैं खुशनसीब हूँ कि आप मेरे अब्बू हैं,आपने बुरे हालातों में भी मेरे हौसले को टूटने नहीं दिया। और पढ़ाई का सही अर्थ समझाया। लव यू अब्बू...!" दोनों बाप-बेटी की आँखों से भावुकता की अविरल धारा बह निकली। आतिथेय ने इन खूबसूरत क्षणों को अपनी मनमोहक मेजबानी के साथ समापन की ओर ले जाते हुए कहा-
"और देखिए आज आप अपनी इसी नॉलेज की वजह से यहाँ से एक करोड़ रुपए जीत कर जा रही हैं।आपको बहुत - बहुत बधाई, शुभकामनाएं।"
"जी...शुक्रिया!"

#MoralStories


आज भाई का शादी है लेकिन विनय के आँखों में वियोग का आँसू बार-बार उमड़ रहा था। छन-छन में रचित की बातें; यादें विनय के आँखों के सामने घूम रहा था।

उस दिन कितना जलील किया था रचित को लेकिन फिर भी उसने............!!!

जब हॉस्पीटल में रचित ने विनय से कहा - "आँख का इंतजाम हो गया है"............ तब पहली बार गले से लगाया था नफरतों के बीच।  मगर उसने क्या किया? आँखों के बू़ँदों में यादों की दास्तान आँसू बन बहने लगा.........

"क्या कह रहा है, क्या सचमुच"?

विनय चौंक कर रचित के दोनो कुल्हो को पकड़ खुशी से झूम उठा।

लेकिन उसे क्या पता था कि वो आँख किसी और का नहीं बल्कि रचित अपना दान कर आया है।  जिसे सदैव ही विनय दूर रखने का प्रयत्न किया आज वो उसी के खून में मिल चुका है!!!

एक पवित्र रिश्ते को भले विनय नहीं समझ सका  रचित के जिंदगी में लेकिन...........रचित एक पवित्र व "सच्चा रिश्ता" स्थापित कर ब्लड कैंसर पर जीत दर्ज कर इस दुनिया से चला गया॥



©-राजन-सिंह

#MoralStories - संबंध"



"संबंध का परिभाषा ढ़ूँढ़ते-ढ़ूँढ़ते आज कहाँ खोती जा रही हूँ? क्या कुछ पैसे ही संबंध का मूल आधार है या भावनाओं का कद्र; प्यार का समर्पण; शरीर का सुख; रक्त-संबंध और मन के मोह का कोई महत्व नहीं"? - उधेर-बुन में खोयी रागिनी मिर्च में मसाले भरे जा रही थी|

वर्तमान स्थिति और भूतकाल के कड़वे अहसासों के अचार में जब खटाई का कसैला स्वाद चढ़ा तो अनुभूति हुआ हरेक कष्ट का काट है| और फैसला कर ली अब "नीम पे करेला" चढ़ा कर रहेगी| ससुराल में अब जो जैसा व्यावहार करेगा उसके साथ अब वैसा ही सलूक किया करेगी....... पर अब किसी का अनावश्यक कथन सहन न करेगी|



©-राज‌न-सिंह

मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना....

बडी़ मेहनतसे मदनलालने खुंटी से बंधे अपने हाथों को छुडाया। बहुत देर से लटके होने के कारण उस के हाथ दर्द करने लगे थे। पर जरा सी भी साँस न लेते हुये वह सामने जमीन पे पडें अपने बेटी के निर्वस्त्र शरीर कि तरफ भागा।
" राधा, अरे बेटी.... क्या हुआ तुझे?" वह एकटक राधा के मुरझाये चेहरे कि तरफ देख रहा था। पर राधा कुछ ना बोली। उसके शरीर सें प्राण कब के निकल गये थे।
मदनलाल फुट फुट के रोने लगा। बहुत सपनें सजाये थे, उसने राधा के शादी के। पर शहर में अचानक उमडे़ इन दंगो ने उसकी जिंदगी तबाह कर दी।
" हिंदुओ, जाग जाओ। अपनों के खुन का बदला लो।" बाहर से आई आवाज ने मदनलाल के भीतर प्रतिशोध कि ज्वाला जगा दी। अभी घर पर आयें गुंडों में से एक कि तलवार वही छुट गयी थी। उसें उठाकर मदनलाल बाहर कें समुदाय में शामील हुआ।
वें लोग प्रतिशोध लेने शहर कें मुस्लीम नेता सलीम खान के घर जा रहें थे। वहा पहुचतेही उन्होने सलीम को मार दिया। पत्थर बने हुये मदनलाल कों इसमें कुछ गलत न लगा।
तभीं सलीम कि चींख सुनकर उसकी बेटी बाहर आई। उसें देख सारे लोग भुखे कुत्ते कि तरह लाल टपकाने लगे। अपने वासना कि आग बुझाने वो उसकें तरफ बढे। डरकर वह भागने लगी और मदनलाल सें टकराकें गिर गयी। उसकें चींखों में मदनलाल को अपने बेटी कि चीखें सुनाई दे रही थी। उसने बाप के प्यार सें उस लडकी को उठाया। दंगों ने छिनी हुई उसकी राधा उसें वापस मिल गयी थी ।

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बुढापे की लाठी ••••••••

"त्रिलोकचंद के घर लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था। सीढियों से फिसलने के कारण उनके पैर में फ्रैक्चर हो गया था। लोग आपस में फुसफुसा रहे थे,
        " बुढ़ापे में भगवान ने क्या दुख दे दिया। अब कौन करेगा इस बेचारे की टहलकदमी?"
  "इसका कोई बेटा भी तो नहीं है जो इसके बुढ़ापे का सहारा बने।"

तभी त्रिलोकचंद की तीनों बेटियां आरती, किरण और मेघा हड़बड़ाई सी भागती हुई वहां पहुंची।
     "पापा आपने हमें फोन क्यों नहीं किया कि आपके पैर में फ्रैक्चर हो गया है? क्या अब आप हमें बिल्कुल भी अपना नहीं समझते हो?"
त्रिलोकचंद ने भावुक होते हुए उत्तर दिया,
"नहीं बेटा। मैं तो बस तुम सभी को परेशान नहीं करना चाहता था।"
तीनों बेटियां लगभग समवेत स्वर में बोली
"पापा बस अब हम आपकी एक भी नहीं सुनेंगे और बारी-बारी से आपका ख्याल रखेंगे।"
यह कहते हुए एक बेटी ने उन्हें दवाई दी। दूसरी बेटी ने उनकी कमर के पीछे तकिया लगा दिया। तीसरी बेटी जूस का गिलास लेकर हाजिर हो गई। पास खड़े लोग जो पुत्रहीन त्रिलोकचंद को बेबस और लाचार समझकर तरस खाते थे, उनके चेहरे से रौनक एकदम गायब हो चुकी थी। त्रिलोकचंद अपनी बेटियों की स्नेह छाया में जीवन की सबसे कमजोर सीढ़ी बुढ़ापे का असली आनंद उठा रहा था।
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नेहा शर्मा।