Pandav Quotes in Hindi, Gujarati, Marathi and English | Matrubharti

Pandav Quotes, often spoken by influential individuals or derived from literature, can spark motivation and encourage people to take action. Whether it's facing challenges or overcoming obstacles, reading or hearing a powerful Pandav quote can lift spirits and rekindle determination. Pandav Quotes distill complex ideas or experiences into short, memorable phrases. They carry timeless wisdom that often helps people navigate life situations, offering clarity and insight in just a few words.

Pandav bites

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किसी व्यक्ति के चित्त में जब हीनता की भावना आती है तब उसका मन उसके द्वारा किये गए उत्तम कार्यों को याद दिलाकर उसमें वीरता की पुनर्स्थापना करने की कोशिश करता है। कुछ इसी तरह की स्थिति में कृपाचार्य पड़े हुए थे। तब उनको युद्ध स्वयं द्वारा किया गया वो पराक्रम याद आने लगा जब उन्होंने अकेले हीं पांडव महारथियों भीम , युधिष्ठिर, नकुल, सहदेव, द्रुपद, शिखंडी, धृष्टद्युम आदि से भिड़कर उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया था। इस तरह का पराक्रम प्रदर्शित करने के बाद भी वो अस्वत्थामा की तरह दुर्योधन का विश्वास जीत नहीं पाए थे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था आखिर किस तरह का पराक्रम दुर्योधन के विश्वास को जीतने के लिए चाहिए था? प्रस्तुत है दीर्घ कविता "दुर्योधन कब मिट पाया" का इक्कीसवां भाग।

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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-20
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कृपाचार्य और कृतवर्मा के जीवित रहते हुए भी ,जब उन दोनों की उपेक्षा करके दुर्योधन ने अश्वत्थामा को सेनापतित्व का भार सौंपा , तब कृतवर्मा को लगा था कि कुरु कुंवर दुर्योधन उन दोनों का अपमान कर रहे हैं। फिर कृतवर्मा मानवोचित स्वभाव का प्रदर्शन करते हुए अपने चित्त में उठते हुए द्वंद्वात्मक तरंगों को दबाने के लिए विपरीत भाव का परिलक्षण करने लगते हैं। प्रस्तुत है दीर्घ कविता "दुर्योधन कब मिट पाया" का बीसवां भाग।
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कृपाचार्य दुर्योधन को बताते है कि हमारे पास दो विकल्प थे, या तो महाकाल से डरकर भाग जाते या उनसे लड़कर मृत्युवर के अधिकारी होते। कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा थे और उसके दु:साहसी प्रवृत्ति को बचपन से हीं जानते थे। अश्वत्थामा द्वारा पुरुषार्थ का मार्ग चुनना उसके दु:साहसी प्रवृत्ति के अनुकूल था, जो कि उसके सेनापतित्व को चरितार्थ हीं करता था। प्रस्तुत है दीर्घ कविता दुर्योधन कब मिट पाया का उन्नीसवां भाग।

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इस दीर्घ कविता के पिछले भाग अर्थात् सत्रहवें भाग में दिखाया गया जब कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा ने देखा कि पांडव पक्ष के योद्धाओं की रक्षा कोई और नहीं , अपितु कालों के काल साक्षात् महाकाल कर रहे हैं तब उनके मन में दुर्योधन को दिए गए अपने वचन के अपूर्ण रह जाने की आशंका होने लगी। कविता के वर्तमान भाग अर्थात अठारहवें भाग में देखिए इन विषम परिस्थितियों में भी अश्वत्थामा ने हार नहीं मानी और निरूत्साहित पड़े कृपाचार्य और कृतवर्मा को प्रोत्साहित करने का हर संभव प्रयास किया। प्रस्तुत है दीर्घ कविता दुर्योधन कब मिट पाया का अठारहवाँ भाग।