तड़पते दबे-कुचले थे,
न जाने कितने वर्षों से।
सभी फुटेंगे उद्गार हृदय के,
इक तुम जब आओगे।
मन-मलिनताओं को धोकर
दिव्य बनाओगे, प्रीतम कब तुम आओगे...?
अंग-अंग संग रमने वाले,
सुन ओ मोहन ब्रज के ग्वाले।
बिरह में डूबे नैन हमारे,
नैया मेरी तुम हो रखवारे।
पार लगा हे खेवनहारे,
निजधाम पठाओगे, प्रीतम कब तुम आओगे...?
क्रमशः..✍️
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