रूठूगी मैं तुमसे एक दिन इस बात पे.. जब रूठी थी मैं तो मनाया क्यूँ नहीं..
कहते थे तुम तो करते हो मुझसे प्यार.. जो दिखाया मैने नखरा तो उठाया क्यूँ नहीं..
मुँह फेर कर जब खड़ी थी मैं वहाँ.. बुला कर पास सीने से लगाया क्यों नहीं..
पकड़ कर तुम्हारा हाथ मैं पूछेंगी तुमसे.. हक़ अपना मुझ पर तुमने जताया क्यूँ नहीं..
इस धागे का एक सिरा तुम्हारे पास भी तो था.. उलझा था अगर मुझसे तो तुमने सुलझाया क्यूँ नहीं.
- Shweta Gupta