हास्य
यमराज का सुझाव : स्व पिंडदान
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सचमुच मित्र क्या होता है?
यह पूरी तरह मैं आज ही समझ पाया,
गुस्से के साथ खूब आनंद भी आया।
मानिए न मानिए आपकी मर्जी!
पर पहली बार किसी का सुझाव
सचमुच मेरे मन को भाया,
अब आप अधीर न होइए जनाब
यह सुझाव आपकी तरफ से नहीं
मेरे प्यारे मित्र यमराज की तरफ से आया।
अब इसमें ईर्ष्या द्वैष जैसी बात तो नहीं कोई
जो आपके मन में दुश्मनी का भाव ले आई।
माना की लोकतांत्रिक व्यवस्था में
हम-आप, सब पूरी तरह आजाद हैं,
तब आप सब ही बताइए
यमराज को क्यों नहीं ये अधिकार है?
खैर.....! छोड़िए बेवजह विवाद हो जायेगा
और मेरा मित्र मुझे दोषी मानकर मुझसे दूर हो जायेगा,
सब कुछ सह लूँगा, पर यमराज से दूर होकर
खुश तो बिल्कुल नहीं रह पाऊँगा।
चलिए छोड़िए इन बेकार की बातों को
और यमराज के सुझाव पर आप भी गौर कीजिए
उसने जो मुझे सुझाव दिया- उसे भी सुन लीजिए,
यमराज ने मुझे बस इतना भर सुझाया-
जब तक जीना है, जीते रहना आप प्रभु
पर सबसे पहले मेरी बात पर भी ध्यान दीजिए
बस! एक नेक काम अपने आप कर लीजिए
और अपने सारे काम छोड़-छाड़कर
सबसे पहले अपना अपने आप से पिंडदान कर लीजिए,
फिर सूकून की साँस लीजिए।
पहले तो हड़बड़ाया, फिर मुस्कराया
ऐसा देख यमराज को बहुत गुस्सा आया,
कहने लगा- वाह हहहहहहह प्रभु! आप मुस्कुरा रहे हो
या मेरा उपहास कर रहे हो,
माना कि आप मेरे मित्र हो, कुछ भी कर सकते हो
पर मेरे सुझावों पर विचार भी तो कर ही सकते हो।
पहले मेरी बात ध्यान से सुनिए-फिर मुँह खोलिए
तार्किक ढंग से मेरे सुझावों को दरकिनार कीजिए।
फिर मैं आप का हर निर्णय मान लूँगा,
और क्षमा याचना के साथ अपना सुझाव
बिना किसी तर्क वितर्क के वापस ले लूँगा,
अन्यथा जीते जी आपको अपना पिंडदान करने के लिए
हर हाल में विवश तो कर ही दूँगा।
यमराज की बात सुन अब मुझे भी लगने लगा
इतना प्यारा तो कोई अपना नहीं सगा,
उससे अपनी बात आगे बढ़ाने का आग्रह
मगर पहले जलपान का आफर दिया।
यमराज ने आफर ठुकराया, सीधे मुद्दे पर आया।
आपके लोक की माया विचित्र होती जा रही है
इसकी तस्वीर आधुनिकता के रंग में रंगती जा रही है,
जीते जी जो पानी भी पूछना नहीं चाहती,
पिंडदान की बात तो उसके ख्वाब में भी नहीं आती है,
यह सब कोरी बकवास और अंधविश्वास समझती है,
ढंग से दाह संस्कार तो कर नहीं पाती
फिर पिंडदान उनके लिए भला कैसी थाती?
वैसे भी आज हर रिश्ता स्वार्थ पर टिक गया है
कौन मरता, कौन जीता किसको मतलब है,
क्या आपके भेजे में इतना भी नहीं आता है?
फिर आपका अपना है ही क्या
जिसका कोई लालच करेगा
या आपके बाद जिससे किसी का कुछ हला भला होगा,
और आने वल में उसके काम आयेगा।
हजार दो हजार कविताएं कहानियाँ, लेख, आलेख
और यमराज मेरा यार सहित आपके अपने
दस बारह गद्य-पद्य संग्रह सहित
चार छ: सौ साहित्यिक पुस्तकों को कोई भाव नहीं देगा,
आपकी मौत के बाद और दाह संस्कार से पहले
ये सब रद्दी के ठेले पर जा रहा होगा।
आपके अपनों की नजर में यह सब कूड़े का ढेर
और अनावश्यक जगह घेरने वाला हो जाएगा।
फिर भी आप सोचते हैं कि कोई आपका पिंडदान करेगा?
तो मेरे भी दावे पर विश्वास कीजिए
कड़ुआ सच सबके सामने आ जायेगा,
जब आपका दास संस्कार चंदे से
और किराए पर कराया जायेगा।
अब आपको सोचना है कि करना क्या है?
मरकर बिना पिंडदान के भटकना है
या सूकून की साँस लेते हुए यमलोक में रहना है,
अब इसके बाद मुझे कुछ नहीं कहना है,
बस! मुझे यमलोक वापस निकलना है।
मैंने उठकर उसका हाथ पकड़ कर कहा -
तू अभी कैसे चला जायेगा,
मेरे पिंडदान की जिम्मेदारी तब कौन निभायेगा?
इसके लिए तुझसे बेहतर यह जिम्मेदारी
भला और कौन निभाएगा?
तू तो मेरा यार, मेरा शुभचिंतक, मेरा भाई है
तेरे सुझावों पर अमल करने की
अब मैंने भी कसम खायी है,
तेरी बदौलत ही सही, पिंडदान की ये घड़ी आई है
मेरे यार तू इतना चिंतित क्यों होता है?
मेरे लिए यह सब न लगेगी जगहंसाई है
अब तो मुस्करा दे मेरे यार यमराज
तेरे यार के पिंडदान की शुभ घड़ी
आखिर तेरे हिस्से में जो आई,
मुझे भी सा लगने लगा है
इसी में है अब मेरी भलाई।
सुधीर श्रीवास्तव