Zindagi Ki Jung"
हवा में साये, आँधियों का शोर,
ज़िंदगी की राहों में, फैला है चहुँ ओर।
पैरों में चुभते, कांटों की चादर,
फिर भी चलता हूँ, टूटा हुआ मगर।सपनों का आलम, अब धुंध में खोया,
हर कदम पर डर, मन में संशय रोया।
अंधेरे की चादर, सूरज को ढकती है,
फिर भी एक किरण, मुझ में चमकती है।हाथों में मेरे, बस टूटे हुए तार,
दिल में बचा है, बस एक आखिरी वार।
हौसला मेरा, अब जाग चुका है,
हर हार से मैंने, सबक सिखा है।आग बन जाऊँ, या राख हो जाऊँ,
ज़िंदगी की जंग में, मैं डटकर लड़ जाऊँ।
चाहे तूफान आए, चाहे बिजली गिरे,
मैं हूँ योद्धा, जो हर बार जिए।सपनों की खातिर, मैंने ठानी है,
हर मुश्किल को, मैंने हथियार बनानी है।
ज़िंदगी की जंग, अब मेरी कहानी है,
मैं हूँ वो चिंगारी, जो बन जाए रवानी है