दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*बेलन, मट्ठा, घास, रबड़ी, बटेर*
बेलन से रोटी बने, सदियों का औजार।
भूखे को भोजन मिले, रहा बड़ा उपकार।।
तन-निरोग मट्ठा करे, पिएँ सदा ही रोज।
नित प्रातः ही घूमिए, जी भर खाएँ भोज।।
वर्षा ऋतु में ऊगती, हरियाली जब घास।
प्रकृति बिखेरे हरितिमा, स्वागत करती खास।।
सत्ता की रबड़ी चखें, नेतागण बैचेन।
जनता स्वप्नों में जिए, तरसें उसके नैन।।
जिसके हाथों लग गई, मिलती नहीं बटेर।
किस्मत उसकी खुल गई, कभी न लगती देर।।
मनोजकुमार शुक्ल 'मनोज'