जो सावन ने कहा है…
जो
सावन ने बरस कर कहा है न,
तो याद रखना…
और जो
भीग कर हमने भी कहा है न,
वो भी याद रखना।
जो
बूंदें तेरी दहलीज़ छू आई हैं,
वो सिर्फ़ पानी नहीं थीं —
हमारी दुआएँ थीं…
याद रखना।
जो
पेड़ झुके हैं तेरी छांव में,
वो थकान नहीं,
तेरे इंतज़ार की नमी है…
याद रखना।
जो
सांवली घटा आज आई है,
वो मौसम नहीं,
हमारी चाहत का पैग़ाम है…
याद रखना।
जो
हमने सावन में कहा है न,
वो सिर्फ़ अल्फ़ाज़ नहीं थे,
दिल की पूरी किताब थे…
तो पन्ने पलटना…
और याद रखना।
डॉ पंकज कुमार बर्मन,कटनी,मध्यप्रदेश