चाहूँ तुम्हें ख़ाब है मेरा
पर डरती भी हूँ मैं
कहीं टूट ना जाये ये
तुम तो मेरे हो भी नहीं
फिर भी
डरती हूँ मैं
तुम्हें खोने से
सोचती तो हूँ कि
जी लूँगी सिर्फ इस ख़ाब के सहारे
फिर भी
तरसती हूँ मैं
तुम्हारी बस एक झलक पाने को।
सोचती तो हूँ कि जब आओगे सामने
भर लूँगी तुम्हें अपनी बाहों में
जाने नहीं दूंगी खुद से दूर कहीं
पर
आते हो जब सामने तुम
भूल जाती हूँ सब
खो देती हूँ खुद को, तुममें
फिर चाह ही नहीं रह जाती
खुद को दोबारा पाने की
चाहती तो हूँ कि
सो जाऊँ मौत की नींद
ताकि
कभी ना टूटे ये ख़ाब मेरा
एक तुम, एक मैं
और बस
ये ख़ाब मेरा...