सावन,बिजुरी,कजरी,पीहर, राखी
अमराई में कूकती, कोयल बारंबार।
सावन-भादों की झड़ी, मन भावन शृंगार।।
नयनों से आँसू झरें, घूँघट में है लाज।
बिजुरी चमके मेघ से, नहीं पिया घर आज।।
बरखा की बूँदें गिरीं, हरित धरा शृंगार।
कजरी गा-गा थम गई, शुरू राग मल्हार।।
बचपन का आँगन गुमा, बिछुड़ा माँ का प्यार।
पीहर आकर सोचती, कैसा यह उपहार ।।
राखी का त्यौहार शुभ, भाइ-बहन का प्यार।
नहीं दिखा यह विश्व में, सामाजिक परिवार।।
मनोजकुमार शुक्ल मनोज