*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*खंजन,सौरभ,दुकूल,जीवनदान,समर्थ*
खंजन नयन निहारते, धारण करें दुकूल।
पथ से भटकें जब पथिक, तब चुभते हैं शूल।।
सौरभ बिखरा कर खिले, फूल खिल उठे बाग।
तन-मन को सुरभित किया, झंकृत होते राग।।
धारण वस्त्र दुकूल से, भ्रमण करें बाजार।
आकर्षण की लालसा, फिर हो जाती भार।।
अंगदान है कीजिए, कर मानव कल्यान।
श्रेष्ठ दान है आज यह, देता जीवनदान।।
यदि समर्थ हैं आप तो, कुछ कर लें उपकार।
सुयश कीर्ति फहरा उठे, जीवन का उपहार।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*