....ऐसा कुछ नहीं है।
जैसे तुम सोच रहे हो ,वैसी बात नहीं।
काम ही इतना है कि,
मैं तुम्हारे लिए समय नहीं निकाल पा रही हूं।
लेकिन इस स्पष्टीकरण से विवेक का समाधान न हुआ।
वह बहुत अच्छी तरह से इस संभाषण का अर्थ जानता था।
मगर,अपराजिता की मन की हालत को देखकर उसने ,
उसपर व्यक्त होना सही न समझा।
मन के अंदर जब शोर हो ,
तब कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
चाहे,कितना भी अजीज रिश्ता अपने जीवन में समाहित न हो।
वह हर एक पल,
डर,बेचैनी और उदासी की उस बेल पर लगे फुल की तरह है,
जो सुंदर होते हुए भी हम उसका सहारा लेकर मन को शीतलता का अनुभव कराए।
व्यक्तिगत रूप से आज हर एक इंसान इसी ,
भावना में रह रहा है।
चाहे वह जीवन की किसी भी पायदान पर हो,
मगर अपने निजी जीवन में व्यक्त करने के लिए ,
एक विश्वासपात्र का होना बेहद जरूरी है,