कुछ पुरुष कहते है –
“पत्नी तो पैसों की भूखी होती है,
प्रेमिका निस्वार्थ प्रेम करती हैं…”
और प्रेमिका भी कहती हैं ____
तो सुनो प्रेमिका ,
तुमने अपने प्रेमी के घर झाड़ू–पोछा किया?
उसके माता–पिता की सेवा की?
उसके स्कूल या कॉलेज की फीस भरी?
उसके लिए ज़मीन–जायदाद खरीदी?
क्या तुमने ताने–बातें झेली?
क्या तुमने अपने ही प्रेमी की नई प्रेमिका को बर्दाश्त किया?
नहीं ना…
क्योंकि घर चलाना, सबकी सेवा करना,
दिन–रात जिम्मेदारियाँ उठाना,
बिना आवाज़ उठाए अपमान सहना,
ये सब “संघर्ष” कहलाता है।
प्रेमी के साथ होटल या OYO जाना,
दो–चार प्रेमभरी बातें करना
संघर्ष नहीं होता —
वह तो बस चटपटा स्वाद है,
जिसके बाद असली जीवन की आँच सामने आती है।
सच तो यह है कि पत्नी निस्वार्थ देती रहती है
और उसी में उसका सम्मान है।
उसे नीचा दिखाकर
कोई भी खुद ऊँचा नहीं हो जाता।