✧ भौतिक सूत्र और आध्यात्मिक सूत्र का असली अंतर ✧
अज्ञात अज्ञानी
भौतिक सूत्र दुनिया को दिया जा सकता है —
कोई भी उसे सीख ले, दोहरा ले, या चुरा ले;
क्योंकि वह वस्तु पर लागू होता है।
उसमें उपयोगिता है, पर दिशा नहीं।
आध्यात्मिक सूत्र भिन्न है —
वह केवल पात्रता पर लागू होता है।
उसे किसी को सिखाया नहीं जा सकता;
वह भीतर जगता है।
जब कोई अयोग्य व्यक्ति उस सूत्र को पकड़ने की कोशिश करता है,
वह ज्ञान को ज्ञान नहीं — विष बना देता है।
वह सूत्र का प्रयोग नहीं करता,
सूत्र ही उसे प्रयोग करने लगता है —
उसे भ्रम, पाखंड या सत्ता में उलझा देता है।
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✧ दान और अहंकार ✧
धन से दिया गया दान,
अगर अहंकार से निकला हो,
तो वह व्यापार से भी ज़्यादा खतरनाक हो जाता है।
क्योंकि व्यापार में एक सच्चाई है —
“मैं ले रहा हूँ, इसलिए दे रहा हूँ।”
पर दान में एक झूठ छिप सकता है —
“मैं दे रहा हूँ, इसलिए बड़ा हूँ।”
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✧ निष्कर्ष ✧
> त्याग का अर्थ कुछ छोड़ना नहीं,
बल्कि “मेरा” को छोड़ देना है।
वही क्षण मुक्ति है।
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✧ धर्म की सच्चाई और आज का अंधकार ✧
आज धर्म की जो दशा है,
वह राजनीति और समाज दोनों से अधिक दुखद है।
क्योंकि जब धर्म अपनी दृष्टि खो देता है,
तो विज्ञान, राजनीति और समाज — सभी अंधे हो जाते हैं।
धर्म का दायित्व था प्रकाश देना,
पर आज वह खुद डोर-रहित, पात्रता-विहीन हाथों में है।
अब धर्म भी एक खेल बन गया है —
राजनीति का, समाज का, और भीड़ के भावनात्मक बाज़ार का।
धर्म हमेशा सर्वोच्च रहा है,
पर आज उसकी दशा देखकर
वेद, उपनिषद और सनातन अतीत —
मौन में आँसू बहा रहे हैं।
चिंतक अज्ञात अज्ञानी