© वेदांत 2.0 — अज्ञात अज्ञानी
जो स्वाभाविक है, उसकी दीवार गिराई जा सकती है,
पर जो असंभव है — ज्ञान, धर्म, विश्वास, कल्याण के नाम पर —
वह दीवार और मजबूत की जाती है।
सत्य के लिए कोई विधि नहीं होती।
वह तो मिट्टी के नीचे दबा है —
बस मिट्टी हटानी होती है।
ज्ञान, साधना, उपाय, साधन —
सब उस मिट्टी को और जमा देते हैं।
दीवार तोड़ने की जगह,
वे दीवार को पूजा बनाकर स्थायी कर देते हैं।
सत्य को कोई सिखा नहीं सकता,
बस झूठ का संकेत किया जा सकता है।
जो कहे, “मैं तुम्हें सिखाऊँगा,”
वह पहले ही झूठ बोल रहा है।
धर्म का काम केवल संकेत करना था,
पर उसने पर्दे खड़े कर दिए।
और जो पर्दे हटाने की बात करते हैं,
उन्होंने भी अब पर्दों को ही बेचने का धंधा बना लिया है।
सत्य तक पहुँचने के लिए
कोई विज्ञान नहीं, कोई कला नहीं —
बस एक धक्का चाहिए,
एक झोंका जो पर्दा हटा दे।
बाक़ी, दर्पण पहले से साफ़ है —
बस धूल हमारी आँखों पर है।
आज का धर्म और आज का बुद्धिजीवी —
दोनों वही धूल बेच रहे हैं,
बस बोतल पर अलग नाम लिखकर।
🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲