कविता का शीर्षक है
🌹 मुक्तिधन 🌹
बटोरा संजोया पाया लाया
फिर क्यूं साथ ना आया
उकसाया ललचाया और सताया
फिर क्यूं साथ मिल ना पाया
दौड़ लगाई जीवन भर की होड़
तूने दिया क्यूं मरोड़
धन के ढेर विपदा में घेर
थकी आंखों ने किया मुंह फेर
तरसती उम्मीद मिट गई सदा
सुकून में था
मुक्तिधन मुक्तिधन मुक्तिधन
लेखिका ✍️ ममता गिरीश त्रिवेदी