Hindi Quote in Blog by Aachaarya Deepak Sikka

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आसक्ति (Attachment)

आसक्ति केवल किसी वस्तु, व्यक्ति या रिश्ते से जुड़ना नहीं है। आसक्ति वह रस्सी है जो मन को बाहरी संसार से बांधकर उसकी स्वतंत्रता छीन लेती है।

आसक्ति तब जन्म लेती है जब मन किसी चीज़ को पकड़कर कहता है यह मेरा है।
और जब हृदय डरते हुए फुसफुसाता है इसके बिना मैं अधूरा हूँ।

यहीं से असली बंधन शुरू होता है।
मन का मेरा शब्द ही संसार में सभी दुखों की जड़ है।
जब तुम किसी चीज़ को अपना कह देते हो, वही चीज़ तुम्हारी कैद बन जाती है।

आसक्ति का ऊर्जा-विज्ञान कहता है कि जिस चीज़ को तुम जितना कसकर पकड़ोगे, उतनी ही वह तुम्हारी ऊर्जा निगलती रहेगी।

जब जीव जागृत होता है तो एक दिन अचानक यह सत्य दिखाई देता है कुछ भी स्थायी नहीं। कुछ भी तुम्हारा नहीं।

आसक्ति टूटते ही यह भ्रम मिट जाता है कि
कोई वस्तु, कोई रिश्ता, कोई भावना मुझे पूर्णता देती है।

किसी को बांधकर रखा जा सकता है लेकिन उसकी आत्मा को नहीं। और जब आत्मा बंधन महसूस करती है,
वही रिश्ता टूट जाता है।

जो चीज़ तुम्हें बांधे, वह संसार है।
जो तुम्हें मुक्त करे, वह शिव है।

आसक्ति ऊर्जा को बाहर बांधती है।
प्रेम ऊर्जा को भीतर जगाता है।
और जब ऊर्जा भीतर जागने लगती है
तो मन, वस्तु, स्मृति, भाव सब ढह जाते हैं।

आसक्ति की समाप्ति साधक के लिए मुक्ति का आरंभ है।
जब तुम किसी को पकड़ना छोड़ देते हो तो तुम उसे खोते नहीं तुम स्वयं को पा लेते हो।

जब आसक्ति टूटती है तब मन हल्का हो जाता है। डर, ईर्ष्या, तुलना, जलन सब नष्ट हो जाते हैं। रिश्ते स्वाभाविक, सरल और शांत हो जाते हैं।

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