Khel Khauff Ka - 6 in Hindi Horror Stories by Puja Kumari books and stories PDF | खेल खौफ का - 6

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खेल खौफ का - 6

सुनयना (मेरा सिर सहलाते हुए) - अवनी...अवनी बेटा... एखोन केमोन लागछे?

मैं हड़बड़ा कर उठकर बैठ गयी. मैं अपने रूम में बिस्तर पर पड़ी थी. अंकल कोवालकी और सुनयना मासी और वहीं मेरे पास बैठे हुए थे.

अंकल कोवालकी - तुम सीढ़ियों के पास क्या कर रही थी? हमने तुम्हारे चीखने की आवाज सुनी तो आकर तुम्हें वहां बेहोश पड़े देखा. एनी प्रॉब्लम?

मैंने हिचकिचाते हुए उनको पूरी घटना बताई. सुनयना मासी में मुझे अपने गले से लगा लिया.

"मुझे आशु को देखना है...वो ठीक तो है?"

अंकल कोवालकी (सपाट लहजे में) - वो बिल्कुल ठीक है और आराम से अपने कमरे में सो रहा है. मुमकिन है थकान और स्ट्रेस तुमपर हावी हो गया है. इसलिए तुम्हें बुरे सपने आ रहे हैं.

"वो कोई सपना नहीं था.." मैंने पूरी मजबूती से कहा.

अंकल कोवालकी ने एक ठंढी आह भरते हुए मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया. हम आशीष के रूम के बाहर जाकर रुके. मैंने एक नजर अंकल पर डाली और अंदर चली गयी. अंदर वाकई आशीष अपने टॉयज को हग करके सुकून के साथ सोया हुआ था. मुझे ये देखकर राहत मिली.

मैं बाहर आई तो अंकल कोवालकी मुझे देखकर व्यंग्य से मुस्कुरा दिए.

कोवालकी - शायद तुम्हें हमपर भरोसा नहीं है.

"ऐ.. ऐसी कोई बात नहीं है. मैं बस डर गई थी." मैंने रुंआसा होते हुए कहा.

सुनयना (प्यार से मेरा सिर सहलाते हुए) - कोई बात नही बेटा नई जगह पर अक्सर ऐसा हो जाता है. तुम्हें अगर कोई भी परेशानी हो तो मुझसे बेझिझक कहना. मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ.

कहकर उन्होंने प्यार से मुझे गले लगाते हुए मेरा माथा चूम लिया. हम तीनों वापस मेरे कमरे में लौट आये.

सुनयना - अभी भी डर लग रहा है तो मैं तुम्हारे साथ सो जाऊं?

"न.. न मैं बिल्कुल ठीक हूँ."

सुनयना - श्योर ?

"हम्म.."

वो मुस्कुराई और मुझे अच्छे से ब्लैंकेट से कवर करके चली गयी.

एक पल को मुझे अपने आप पर गुस्सा आने लगा. ये दोनों हमारे साथ कितने अच्छे से पेश आ रहे हैं. हमें कम्फर्टेबल फील कराने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. और मैं क्या कर रही हूँ? मेरे बर्ताव से डेफिनेटली वो हर्ट हुए होंगे. मैंने तय कर लिया अब जो भी हो मैं किसी को शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगी.

------------

मुझे अकेले बैठी बैठी बोर हो रही थी. यहां आए अब हमें एक हफ्ता हो चुका था. अंकल कोवालकी अब अपने आर्ट वर्क्स में ज्यादा बिजी रहते थे. तो वो ज्यादातर आने कमरे में ही रहते. वहीं सुनयना मासी या तो किचन या फिर घर के कामों में बिजी रहती थी. मेरे पास कोई दोस्त नहीं था. यहां तक कि अब तो आशीष भी मेरे साथ नही खेलता था. भले ही यहां वो अपना फेवरेट गेम नही खेल सकता था मगर उसके बदले में उसे इतने टॉयज और किड्स बाइक मिल गयी थी कि उसे अब इस बात से फर्क भी नही पड़ता था. अंकल कोवालकी से भी वो काफी घुल मिल गया था.

मेरे पास सचमुच करने को कुछ नहीं था. मैंने सोचा कुछ देर गार्डन में ही घूम आती हूँ. वहां पहुंचकर मैंने देखा सुनयना मासी पौधों को पानी दे रही थी. वो काफी थकी हुई भी लग रही थी. मैंने फौरन तेजी से आगे बढ़कर उनके हाथ से वाटर स्प्रिंकलर ले लिया.

सुनयना - ओह... अवनी ...थैंक यू.

वो अपना पसीना पोंछते हुए परेशानी से बोली.

सुनयना - ये गार्डन मैंने ही लगाया है. मगर कभी कभी मुझे सचमुच अफसोस होता है. कि मैंने यहां इतने सारे पौधे क्यों लगा दिए. आई मीन... इनकी केयर करने के लिए मुझे एक्स्ट्रा मेहनत करनी पड़ती है. यहां एक गार्डनर की सख्त जरूरत है. तुम्हारे अंकल से कई बार इस बारे मे मेरी बहस भी हुई है. मगर उन्हें नहीं पसंद क़ि कोई अनजान इस घर में आये.

हे वेट.... यहां तो पहले से एक गार्डनर है ना? क्या नाम था उसका...हाँ आफरीन. यही नाम तो बताया था उसने. आशीष ने भी देखा था उसे. फिर मासी ऐसा क्यों कह रही हैं?

"मुझे लगा यहां पहले से एक गार्डनर है. मैं और आशीष उससे मिले भी थे जब वो यहां पौधों को पानी दे रही थी. आफरीन ... यही नाम बताया था उसने अपना." मैंने हैरानी से उनसे पूछा.

मगर उससे भी ज्यादा हैरानी से सुनयना मासी ने मेरी तरफ देखा. जैसे उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा हो कि अभी अभी जो कुछ भी मैंने कहा वो सच है. उन्होंने कुछ कहने के लिए मुंह खोला मगर फिर कुछ सोचकर चुप हो गयी.

सुनयना - तो आफरीन से मिली थी तुम? हां वो पहले हमारे यहां काम करती थी. बाद में वो काम छोड़कर चली गयी. मना करने के बाद भी वो कभी कभी यहां चली आती है. अब उसे रोकने के लिए शायद फतवा जारी करना पड़ेगा.

कहते हुए वो हंसी. मुझे भी उनकी बात पर हंसी आ गयी. मगर अचानक से उन्होंने सीरियस होते हुए कहा,

अगर तुम्हें यहां कभी भी कोई अननोन पर्सन दिखें जितनी भी जल्दी हो सके फौरन घर के अंदर आ जाना. और सबसे पहले मुझे इस बारे में बताना. उनसे बात बिल्कुल मत करना. बहुत से सस्पीशियस किस्म के लोग अक्सर यहां घुस आते हैं. कोई भरोसा नहीं वो कैसे बर्ताव तुम्हारे साथ करने लगें. ओके शोना?

मेरा दिल एक पल को जोर से धड़का. क्योंकि मां भी मुझे शोना ही बुलाती थीं.

"ओके.." मैंने कोशिश करके मुस्कुराते हुए कहा.

"उम्म..मासी, मुझे आपसे कुछ कहना था. दरअसल यहां आने के बाद से मेरी और आशीष दोनों की ही स्टडी बंद हो गयी है. 2 महीने बाद से एडमिशन स्टार्ट हो जाएंगे. क्या हम वापस से स्टडी शुरू कर सकते हैं? "

सुनयना (प्यार से) - ये भी कोई पूछने की बात है? तुम्हारे अंकल ने तो यहां के सबसे अच्छे टीचर्स से बात भी कर ली है. यहीं घर से तुम दोनों की पढ़ाई का सब इंतजाम हो जाएगा.

"घर से?" मैंने अचकचाते हुए पूछा. "क्या हम स्कूल नहीं जा सकते? वैसे ही यहां मेरा कोई फ्रेंड नहीं है. पूरा दिन मैं घर में बोर हो जाती हूँ."

सुनयना - शोना... एकातो खूब भालो शिक्षा अपनार के भालो जिंदगी देऊ हया. बोन्धु न...ओके... आई हैव टू मेक डिनर.
कहकर वो तेजी से अंदर चली गयी. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था. ये लोग इतने अजीब क्यों हैं? न खुद किसी से मिलते जुलते हैं और अब हमसे भी यही उम्मीद कर रहे हैं कि हम भी अपनी पूरी जिंदगी इस घर के अंदर गुजार दें.

To be continued...