Dastane - ishq - 12 in Hindi Fiction Stories by Tanya Gauniyal books and stories PDF | Dastane - ishq - 12

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Dastane - ishq - 12

So ye kahani continue hongi pratilipi par kahani ka name same hai but poster yaha update nhi hora tou same nhi hai but dark hai. After 10 - 15 episode i will stop this update if, you want do comment and follow me on pratilipi 

Id name - Tanya gauniyal 

Story name - same - Dastane - ishq ( mafia romance) see the picture you will get to know 


And there I have reached more ahead so go and read their and do comment and follow me on my pratilipi I'd.Jismai meri first kahani ke sath sath second kahani bhi hai. So guys go and read their and follow me too for new updates in Instagram. 

If you want spoiler of this story follow me on Instagram 

Instagram I'd - Tanya gauniyal 


I m waiting for your response readers do and comment 💬 and share your lovely thoughts.

खाने के बाद रोहित की मम्मी चली गई । आयुषी किचन साफ कर रही थी । राधिका रोहित के  साथ बैठी थी । वो दोनों आपस मे बात ही कर रहे थे तबतक राधिका उबासिया लेने लगी ।

रोहित ने जब ये देखा तो राधिका  से बोला : " राधिका तुम थक गई हो तो जाकर आराम कर लो " 

राधिका ने मना करते हुए कहा  : " नही भईया मै नही थकी मै आप लोगो के साथ काम करूंगी " 

रोहित उसे समझाते हुए बोला : " राधी चली जाओ मै और आयुषी कर लेंगे काम " 

आयुषी जो अभी अभी किचन से बाहर आई ।

उसने भी राधिका को समझाते हुए कहा : " हा राधी तू थक गई होंगी, तू आराम कर " 

" पर दी " राधिका ने अपनी बात रखने की कोशिश की पर फिर आयुषी ने बीच मे कहा : " तू अपनी पूरी नींद लेले उसके बाद आ जाना मदद के लिए " 

आयुषी ने राधिका को समझाकर  सोने भेज दिया ।

" तुम भी आराम कर लो थक गए होंगे " आयुषी ने रोहित से कहा ।

" तुम भी तो सुबह से काम कर रही हो थकी नही ?" रोहित ने पूछा ।

आयुषी ने मासूम सा चेहरा बनाकर कहा : " हा थक तो  गई हूँ " 

" ठीक है तुम आराम करो बाकी का काम हम शाम को कर लेंगे " रोहित बाहर जाते हुए बोला । 

आयुषी को भी ये बात ठीक लगी और उसने हा कह दिया । रोहित उसे बाय बोलकर अपने फ्लैट चला गया और आयुषी अपनी बहन के पास लेट गई । थकान की वजह से राधिका जल्द ही सो गई थी ।

आयुषी ने  अपनी बहन के चेहरे को देखते हुए कहा : " सब कुछ थम गया है राधी , हम बहुत दूर आ गए है उस जिंदगी से, अब हमारी जिंदगी मे थहराव आ गया है " 

उसने उसका सर मसला और सो गई । इस बात से अंजान की कलसे उसकी जिंदगी बिलकुल बदलने वाली है और तूफान थमा नही था बल्कि अगाज ले रहा था  ।

उधर सत्या होटल की खिड़की मे खडा़ बाहर आती जाती गाडि़यो को देख रहा था ।

" साहब आप अपने घर क्यों नही जाते ?" अनवर ने सत्या को समझाने की कोशिश मे कहा  ।

उसके बगल मे करन, असलम, और राजवीर खडे़ थे ।

करन ने  असलम से धीरे से पूछा : " क्या यहा सर का घर है ?" 

" घर नही महल है " असलम ने भी धीरे से जवाब दिया   ।

करन असलम से पूछ ही रहा था तबतक सत्या की रौबदार आवाज आई तो करन चुप हो गया ।

" मै वहा नही जाऊंगा " सत्या ने कहा ।

" पर साहब वो घर आपका है " अनवर की बात पूरी होने से पहले । 

सत्या गुस्से से बोला : " क्या बुढा़पे के साथ आपके कान भी खराब हो गए है ?" 

ये सुनते ही अनवर चुप हो गया ।

कुछ देर बाद -  

" करन " सत्या बोला ।

" जी सर " बोलकर करन उसके सामने आया  । 

सत्या गश भरकर बोला : " मेरी फ्लाइट करावाओ लंदन की " 

" ओकए सर " करन बोलकर  चुप हो गया ।

" असलम राजवीर , यहा का धंधा कैसा है ?" सत्या ने सिगरेट अपने मू मे डालकर पूछा ।

" सब बडि़या है पर बस वो धीरज रास्ते मे आता है " राजवीर बोला ।

सत्या ने अपनी आधी सिगरेट नीचे फेंकी और बोला : " उस माल का क्या हुआ ? जो अरमान ले जा रहा था ?" सत्या ने माचीस से दुसरी सिगरेट मे आग लगाकर पूछा ।

" वो माल हमारे पास आ गया था और डील भी हो गई , हमे कोई नुकसान नही हुआ " असलम के कहने से सत्या ने एक गश भरी और धुँआ उडा़या ।

" पर अब तक वो अरमान नही पकडा़ गया " राजवीर बोला ।

" अब उसकी जरूरत नही " सत्या ने धुआं आसमान मे उडा़कर कहा ।

" नजर रखो उनपर " उसने कहकर  सबको जाने का इशारा दिया  ।

शाम को आयुषी रोहित और राधिका तीनों ने मिलकर बाकी सारा काम निपटा दिया और पूरा फ्लैट साफ और  सुंदर बन चुका था ।

रात को खाने के बाद रोहित अपने फ्लैट जा रहा था । आयुषी उसे दरवाजे तक छोड़ने आई । वो दोनों दरवाजे मे खडे़ थे ।

" थैंकयू , थैंकयू सो मच रोहित तुम्हारी वजह से ये काम एक ही दिन मे हो गया और इस अंजान शहर मे मुझे अच्छा दोस्त भी मिल गया "  आयुषी ने कहा  ।

तो उसका जवाब देते हुए रोहित बोला : "मुझे भी तो अच्छी दोस्त मिल गई , मै ऐसे कभी किसी से बात नही करता पर जिससे भी करता हूं उससे अपनी दोस्ती निभाता हूँ , कभी भी जरूरत हो तो बुला देना " 

" हम्म  चलो बाय गुड नाइट " आयुषी ने मुस्कराकर कहा ।

रोहित भी  " बाय" बोलकर  चला गया । आयुषी भी अपनी बहन के कमरे मे आई । वो आराम से सो चुकी थी । ये देखकर उसे सुकून पहुंच रहा था । उसने उसे अच्छे से ओढा़या  औरं फिर अपने कमरे मे लेटकर आँखें बंद कर दी ।

कुछ ही देर मे उसका फोन  घनघना उठा , उसने जब नंबर देखा तो हैरान रह गई ।

वो घबराहट और अजीब सी नजरो से उस फोन को देखकर बुदबुदाई : " नही , नही इन्हें नही पता चलना चाहिए की मै यहा हूँ वरना , वरना अच्छा नही होगा , ये मुझे यहा से भी भेज देंगे पर अब मै कही नही जाने वाली " 

उसने फोन ना उठाकर टालना ही बहतर समझा इसलिए फोन स्वीच ओफ कर दिया ।

" ये सब ठीक चल रहा है ऐसा ही चलता रहे यही सही है, मुझे अब और कोई तूफान नही चाहिए  " आयुषी ने मन मे सोचा ।

वो सब कुछ अच्छा है ये सोचते हुए सो गई पर वो इस बात से अनजान थी की कल से उसकी जिंदगी बदलने वाली है । कल की सुबह उसकी जिंदगी मे नया मोड़ लेने वाली थी अब देखना ये है की वो कैसे इसका सामना करेंगी ? । सुबह वो उठी और राधिका और अपने लिए खाना बनाया । राधिका तैयार होकर आई । 

राधिका किचन मे देखते हुए बोली : " दी मै जा रही हूं " 

आयुषी  बाहर आई  और अपनी बहन को देखकर बोली : "बहन खाना तो खाले " 

" दी बाद मे..मै लेट हो जाऊंगी " उसने अपना बैग बंद कर बाहर जाते हुए कहा ।

आयुषी ने उसका हाथ पकड़कर बिठाया और बोली  : " कोई देर नही होंगी नाश्ता नही करेगी, तो पढा़ई मे ध्यान कैसे दे पाएगी ? " 

ये कहकर उसने राधिका को बिठाया और खाना खिलाने लगी । खाने के बाद दोनों बाहर निकले ।

" अच्छा दी मै चलती हूं " राधिका ने उसे गले लगाकर कहा ।

बदले मे आयुषी ने भी " बाय " कहा ।

उसकी नजर लिफ्ट का बटन दबाते हुए रोहित पर पडी़ ।

" है रोहित " आयुषी के कहने पर रोहित पीछे  मुडा़ ।

" ओफिस जा रहे हो ?" आयुषी ने पूछा ।

रोहित , शर्ट पेंट हाथ मे लैपटॉप के साथ दुसरे हाथ मे टिफ्फिन लिए  खडा़ था ।

उसने जवाब दिया : " हा आयु,  मै ओफिस जा रहा हूँ " 

आयुषी उसके पास आई ।

" अच्छे लग रहे हो " वो बोली ।

उसके मू से ऐसा सुनकर  वो खुद को मुस्कराने से रोक नही पाया ।

" थैंकस " रोहित ने मुस्कराकर कहा ।

" चलो बाय तुम्हें लेट हो रहा होंगा मुझे भी काम है " आयुषी ने मुस्कराकर कहा और चली गई ।

रोहित लिफ्ट के अंदर था वो मुस्कराकर बोला : " सच मे आज का दिन कितना अच्छा है " 

दुसरी तरफ स्टेशन मे एक आदमी उतरा । उस आदमी ने इधर उधर देखा ।

" पता नही मैने यहा आकर ठीक किया भी या  नही " वो बुदबुदाया ।

वो टैक्सी मे बैठकर निकल गया । कुछ दूर जाने के बाद सुनसान सड़क मे उसने गाडी़ रूकवाई  और फोन मिलाकर कहा : " ह, हैल्लो साहब मै आ गया " 

उसने कहकर फोन काट दिया ।

वहा सत्या का एक आदमी आया और उसे घनघनोर  जंगल मे बने सत्या के अद्दे मे ले गया ।

वहा असलम काम देख रहा था ।, हथियार और कई बम की सप्लाई के लिए सामान ट्रक मे लोड हो रहा था ।

" मै ले आया " वो आदमी बोला ।

असलम ने उसे देखा फिर उसके बगल मे  खडे़ आदमी को उसने इशारा किया और वो आदमी उसे फौलो कर दोनों कमरे मे आए ।

" हम्म तो तू है वो " असलम ने  आराम से बैठकर कहा ।

आदमी चुप रहा ।

असलम ने घूरकर कहा :  "जानता है न तू किसके लिए काम कर रहा है ?" 

असलम के ऐसे पूछने पर आदमी झिझकते हुए बोला " हा , जानता हूँ राजेंद्र साहब के बेटे के लिए "

असलम ने गुस्से से पूछा :  "ऐ बुद्दे तू कैसे जानता है कही तूझे  हमारे दुश्मन ने तो नही भेजा बता मुझे , कही तूझे धीरज  ने तो  नही भेजा "

वो आदमी उसकी बात सुनकर  घबराकर बोला : " न,नही साहब , व,वो मै .. "

असलम गुस्से से बोला " क्या बुद्दे ?" 

वो आदमी अपनी जान बचाते हुए बोला : " साहब वो मै RM के लिए काम करता था वो जानते थे मुझे " 

उसने कहकर  कुछ पेपरस दिए । असलम ने वो पेपर पढे़ तो हैरान रह गया ।

उसने हैरानी से उसे देखकर पूछा : " क्या ये सब सच है तू उनके साथ था ?" 

आदमी ने हा कहा ।

असलम ने वो पेपर फाइल बंद करते हुए कहा  : " तू तो काम का आदमी है , आज से सारे  माल की जानकारी रखने की जिम्मेदारी तेरी (  फिर उसने doubt से पूछा )  कर पाएगा न ?" 

उस आदमी ने " हा हा " कहा  ।

असलम खडा़ होकर बोला :  "हम्म और तू तो जानता ही है किसके लिए काम कर रहा है तो कुछ भी बताने की जरूरत नही है  और गलती होने की तो गुंजाइश ही नही है " 

आदमी ने " हा " मे सर हिलाया ।

" हम्म तू अपने परिवार को बुला ले तूझे घर दे दिया जाएगा "  असलम बोलकर  चला गया ।

वो आदमी जाने लगा ।

" वैसे तेरा नाम क्या है ?" असलम ने पीछे से पूछा ।

आदमी पलटा और " सुभाष " बोला ।

वो आदमी सुभाष को लेकर एक घर के सामने आया और बोला  : " आज से तू यही रहेगा " 

सुभाष  " ठीक है " कहकर अंदर गया और फोन मिलाया ।

" हैल्लो आप बच्चों के साथ कल की ट्रेन से आजाना मै टिकट भिजवा दूंगा "  उसने कहा और बिना सामने वाली की बात सुने फोन काट दिया ।

होटल मे सत्या नहाकर आया और शिशे के सामने जा खडा़ हुआ । उसकी गहरी नीली आँखें जो शिशे को घूर रही थी । बालो से टपकता पानी , और शरीर  से गुजरता पानी उसे किसी हैंडसम हंक  बना रहा था ।

उसने टेडी़ हँसी हसँकर खुदको देखा जैसे खुदपर इतरा रहा हो फिर कपडे़ पहनने लगा । वाइट कलर की शर्ट के नीचे पेंट और उसके ऊपर से कोट । 

उसके कमरे मे नोक हुआ ।

" कम इन " सत्या ने रौबदार आवाज मे कहा  ।

करन अंदर आकर बोला : " सर चले " 

सत्या हाथ मे घडी़ पहनते हुए, उसने शिशे से करन को देखकर रौबदार आवाज मे कहा  : " चलो इस शहर को मेरे कहर से आजादी तो मिलेगी " 

करन कुछ नही बोला सिर्फ सून्य भाव लिए खड़ा रहा ।

सत्या पलटकर उसके सामने रूका और कंधे मे हाथ रखकर उसे  घूरकर और व्यंग्य सी मुस्कान लिए बोला : " क्यों सही कहा न मैने ?"

करन ने कुछ ना कहना ही बहतर समझा । सत्या हसँते हुए निकला और उसके पीछे से करन खुदको नोर्मल करते हुए गया  ।

करन अपने मन मे बोला : " वैसे बात तो सही बोली सर ने , इतने दिन ये यहा रूक गए बहुत बडी़ बात है " 

दोनों लिफ्ट से होकर नीचे आ रह थे । सत्या ने अपनी जेब मे हाथ डाला तो उसे कुछ एहसास हुआ । उसने वो निकाला तो वो ब्रेसलेट था । वो कुछ देर तक उसे देखता रहा ।

उसकी भोंहे आपस मे जुड़ गई और गुस्से से बोला : " ये किसका है ?" 

उसके गुस्से भरी आवाज से करन ने उसे देखा फिर उसके हाथ मे पकडे़ ब्रेसलेट को ।

" स..सर वो उस लड़की का है क्या आप भूल गए ? " वो बोला ।

सत्या ने गुस्से से पूछा :  " क्या उस लड़की ने कुछ देखा था ?" 

" न, नही सर " करन ने  घबराहट छुपाकर कहा  ।

उसने गुस्से से वो ब्रेसलेट जेब मे रखते हुए कहा : " पता करो उसका और लौटा दो या फिर  फेंक दो " 

करन मन मे बुदबुदाया : " सर भी अजीब है देदेना कहकर जेब मे रख दिया अब मिल भी गई तो कैसे दूंगा ? और फेंकुगा भी कैसे ?"

लिफ्ट खुली और वो बाहर निकले । करन ने दरवाजा खोला और वो बडे़ कट से गाड़ी मे बैठा । करन ड्राइवर के साथ बैठा और गाडी़ निकल गई । सत्या के साथ वो आदमी बैठा था । जिसकी नजर आयुषी से हट नही रही थी । सत्या ने रौब से पैर आगे और हाथ खिड़की मे रखे थे । उधर आयुषी ने घर का सारा काम किया और तैयार होकर आई ।

" सब्जियां खरीदनी है और कुछ जरूरी सामान " वो खुदमे बुदबुदाई । 

उसने सारे सामान की लिस्ट बनाई और फ्लैट बंद कर निकल गई ।

आयुषी सड़क के किनारे चल रही थी । उधर सिगनल रेड हुआ और सारी गाडि़या रूकी । दुसरी तरफ  से आयुषी आ रही थी । वो चल रही थी तबतक कुछ बच्चे उससे टकरा गए ।

उसमे से एक छोटी सी प्यारी सी बच्ची मासूम सा चेहरा बनाकर और सर मसलकर बोली : " आऊ..च लग गई " 

करन की नजर भी आयुषी  पर पडी़ और वो डरते हुए बोला  : " सर यही है वो लड़की " 

 सत्या की नजर आयुषी पर पड़ गई और वो उसे देखता  रह गया ।
उधर आयुषी उसका मासूम सा चेहरा देखकर मुस्कराने लगी ।

वो उसके पास बैठी और उसका सर मसलकर पूछा : " ओ हो ज्यादा तो नही  लगी ?" 

" न नही दीदी आप तो बहुत अच्छी हो (वो बच्ची आयुषी को देखकर बहुत खुश हो गई थी, उसने  आयुषी का  हाथ पकड़कर कहा ) आपके हाथ बहुत अच्छे है दीदी " 

आयुषी ने मुस्कराकर उसकी नाक खींचकर कहा : " सच्ची आपके हाथ भी बहुत अच्छे है " 

सत्या ने  आयुषी को  मुस्कराते हुए देखा तो  उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई । ये मुस्कान कोई नही देख पाया क्योंकि उसका चेहरा खिड़की के बाहर की तरफ था ।

हर हर महादेव ।