Part 11 – “रक्त की पुकार” में — जहाँ नायक अर्णव को पहली बार अपने रक्त की आवाज़ सुनाई देती है। यह भाग रहस्य, भावना, और मानसिक युद्ध से भरा होगा।
Super Hero Series – Part 12: रक्तपथ की शुरुआत
गुफा के अंदर रात उतर चुकी थी। दीवारों पर जलती हुई मशालें अजीब सी परछाइयाँ बना रही थीं।
अर्णव अब तक शांत बैठा था — ना आँखें झपक रही थीं, ना साँसें तेज थीं।
लेकिन उसके अंदर एक युद्ध चल रहा था।
उसने धीरे से अपनी हथेली खोली — वहाँ एक त्रिशक्ति-मंत्र की जलती हुई लिपि चमक रही थी।
वो मंत्र जो त्रैत्य को हराने का एकमात्र उपाय था… लेकिन उसे साधने के लिए अर्णव को अपनी नफ़रत की बलि देनी थी।
पर वो नफ़रत ही तो अब तक उसकी ताकत थी।
जिस पिता ने उसकी माँ को मारा… जिसने उसे अनजाने में जन्म दिया… क्या वो क्षमा योग्य है?
💔 भ्रम और विघटन
तभी उसके भीतर दो आवाजें गूँजती हैं।
❝
"अगर तू मेरा बेटा है, तो आ… मेरे पास आ।
दुनिया तुझे नकार देगी, लेकिन मैं तुझे गले लगाऊँगा…"
— त्रैत्य की आवाज़
और फिर…
❝
"जिसने तुझे जन्म दिया, उसे नहीं…
जिसने तुझे चुना, उसका ध्यान रख।"
— गुरु वशिष्ठ की पुरानी यादें
अर्णव उठा। उसने अपनी आँखें बंद कीं और मंत्र का जाप करना शुरू किया।
“ॐ त्रिशक्ति वंदे...
न हृदि द्वेषं…
नात्मनं क्रोधं…”
धीरे-धीरे उसकी हथेली से निकलती अग्नि एक रूप लेने लगी।
वो त्रिशक्ति स्वरूप था — तीन मुखों वाला दिव्य प्रकाश, जो मन, आत्मा और शरीर का प्रतीक था।
लेकिन तभी…
🩸 त्रैत्य की टक्कर – पहली बार
गुफा की दीवारों से एक गूंज उठी।
त्रैत्य वहाँ था।
ना कोई दहाड़, ना कोई हमला — बस मौन, और घोर भय।
उसके दस मुख नहीं थे आज — बस एक मुख… लेकिन उसकी आँखों में ऐसा अँधेरा था कि आग भी बुझ जाए।
उसने कहा:
“अर्णव… मैं तुझे मारने नहीं आया… मैं तुझे लेने आया हूँ।”
“क्योंकि एक दिन तू खुद को दुनिया से ऊँचा समझेगा, और तभी… तू मेरी तरह बनेगा।”
अर्णव ने उसकी आँखों में देखा।
“अगर तू सच में मेरा पिता है… तो मेरा पहला काम होगा तुझे रोकना।”
🔥 मन और शक्ति की टक्कर
त्रैत्य आगे बढ़ा। उसकी छाया दीवारों पर फैलने लगी।
अर्णव ने त्रिशक्ति मंत्र का प्रयोग किया।
एक तेज़ प्रकाश फैला, जिससे गुफा जल उठी।
त्रैत्य की छाया एक पल के लिए थमी… लेकिन मुस्कराई।
“तेरे पास प्रकाश है, मेरे पास साया।
तू दिन है, मैं रात…
लेकिन जब तू सो जाएगा, मैं तेरे सपनों में फिर लौट आऊँगा…”
अगले ही पल त्रैत्य हवा में घुल गया… जैसे कभी आया ही नहीं।
🕊️ आत्मा की पहली जीत
अर्णव अब भी काँप रहा था। लेकिन उसके चेहरे पर अब डर नहीं था।
उसने एक निर्णय लिया था:
“मुझे अपनी पहचान नहीं बदलनी…
मुझे अपनी नियति खुद बनानी है…”
वो गुफा से बाहर निकला।
आसमान में भोर की हल्की रोशनी उग रही थी।
पर कोई नहीं जानता था —
कि उस भोर के साथ, एक ‘रक्त युद्ध’ की शुरुआत हो चुकी है…
📜 अब आगे क्या?
अगला भाग होगा:
Part 13 – “त्रैत्य की पहली चाल”
जहाँ त्रैत्य अब युद्ध की जगह एक नई योजना शुरू करता है —
एक ऐसा धोखा… जो अर्णव को तोड़ सकता है।
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