🖋️ एपिसोड 5: “वापसी...”
> “कुछ लोग लौटते नहीं, लेकिन एहसास लौट आते हैं…
और कुछ एहसास... ज़िंदगी दोबारा शुरू करवा देते हैं।”
---
स्थान: दिल्ली — शाम 5 बजे
रेहाना अपने कमरे की खिड़की के पास बैठी थी।
सामने से धीमी हवा आ रही थी, जैसे मौसम भी उसके भीतर की बेचैनी को समझ रहा हो।
वो डायरी फिर सामने खुली थी — वही पन्ना, जो आरव ने उसे दिया था।
उसकी आँखों में आज भी वो स्टेशन की भीगी खिड़की और आरव की भीगी आँखें तैर रही थीं।
---
फ्लैशबैक — पिछली रात
स्पीच के बाद जब रेहाना स्टेज से उतरी थी और आरव से आँखें मिली थीं,
तो उनमें न तो कोई सवाल था, न कोई सफाई — बस एक चुप सी स्वीकारोक्ति थी।
“हाँ, अब हम फिर से कोशिश कर सकते हैं।”
लेकिन कोई शब्द नहीं बोले थे उन्होंने।
बस हल्की सी मुस्कान… और वो चला गया।
---
आज — रेहाना का मन बेचैन था।
> "क्या वो फिर आएगा?"
"या बस फिर एक मुलाक़ात थी — अनकही, अधूरी?"
वो सोच ही रही थी कि उसका फोन बजा।
नंबर अनसेव्ड था… लेकिन दिल ने पहचान लिया।
> “Hello…”
“Hi… रेहाना?”
“आरव…”
(दोनों तरफ चुप्पी)
“कल शाम… थोड़ी बात कर सकते हैं?”
“हाँ…”
“कॉफी हाउस… वही पुराना वाला, जहाँ हम कॉलेज के बाद मिला करते थे।”
“ठीक है…”
---
अगली शाम — कॉफी हाउस
रेहाना पहले से पहुँच चुकी थी।
वो वही कोना चुना, जहाँ कभी दोनों साथ बैठते थे — कोने की खिड़की वाली टेबल।
आरव आया — थोड़ी देर से, लेकिन मुस्कान के साथ।
> “अब भी वैसे ही आती हो — पहले…
और वही जगह चुनती हो।”
रेहाना हँसी — धीमी, लेकिन सच्ची।
---
☕ कॉफी के साथ बातें भी गर्म होने लगीं।
> “तो, अब क्या कर रहे हो?”
“दिल्ली में एक प्रोजेक्ट है — 3 महीने का। शायद यहीं रुकूं।”
“और तुम?”
“मैं अब बच्चों को पढ़ाती हूँ… लेकिन ख़ुद को अब तक नहीं सिखा पाई कि कुछ एहसास कैसे भुलाए जाते हैं।”
> “मैंने कोशिश की थी, रेहाना… सब भूलने की…
पर तुम्हारे बिना कुछ भी मुकम्मल नहीं हुआ।”
> “मैंने भी बहुत कोशिश की…
लेकिन हर बार... सब कुछ वहीं आकर रुक जाता था — तुम्हारे नाम पर।”
---
एक सन्नाटा… लेकिन इस बार मीठा।
रेहाना ने धीरे से अपना पर्स खोला…
और उसमें से एक पुराना कागज़ निकाला।
आरव की डायरी का पन्ना — अब भी उसके पास था।
> “तुमने लिखा था —
‘मैं अब भी वहीं हूँ…’
तो मैं कहूँ…
अब मैं भी वहीं आ गई हूँ।”
---
☔ कॉफी हाउस के बाहर बारिश शुरू हो चुकी थी।
लेकिन इस बार वो बारिश सर्द नहीं थी —
बल्कि एक नई गरमी लिए आई थी… जैसे बीते हुए पलों को धो रही हो।
---
Scene Shift — बाहर की सड़क पर दोनों एक ही छतरी के नीचे
आरव और रेहाना पैदल चल रहे थे —
न कोई मंज़िल तय थी, न कोई घड़ी देखनी थी।
बस बारिश, साथ और खामोशी… जो अब सुकून देने लगी थी।
> “इस बार अगर फिर से शुरू करें…” आरव ने कहा
“तो क्या नाम दें इस सफर को?”
रेहाना ने उसकी ओर देखा…
> “शायद… वापसी…”
---
एपिसोड की आख़िरी लाइन:
> "कभी-कभी वापसी, एक नई शुरुआत होती है…
बस ज़रूरत होती है — एक बार फिर उस रास्ते पर चलने की, जहाँ सब अधूरा छूटा था।"
---
🔔 Episode 6 Preview: “कुछ अधूरी बातें...”
> जब दोनों फिर मिलने लगते हैं — क्या दिल की बातें आसानी से सामने आ पाएंगी?
या अब भी कुछ चुप्पियाँ दोनों के बीच रहेंगी?
---