Ishq aur Ashq - 17 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | इश्क और अश्क - 17

Featured Books
  • The Devil (2025) - Comprehensive Explanation Analysis

     The Devil 11 दिसंबर 2025 को रिलीज़ हुई एक कन्नड़-भाषा की पॉ...

  • बेमिसाल यारी

    बेमिसाल यारी लेखक: विजय शर्मा एरीशब्द संख्या: लगभग १५००१गाँव...

  • दिल का रिश्ता - 2

    (Raj & Anushka)बारिश थम चुकी थी,लेकिन उनके दिलों की कशिश अभी...

  • Shadows Of Love - 15

    माँ ने दोनों को देखा और मुस्कुरा कर कहा—“करन बेटा, सच्ची मोह...

  • उड़ान (1)

    तीस साल की दिव्या, श्वेत साड़ी में लिपटी एक ऐसी लड़की, जिसके क...

Categories
Share

इश्क और अश्क - 17

[Scene: बीजापुर दरबार – बाघिन की सवारी पर अविराज की एंट्री]

राजमहल के मुख्य द्वार पर जैसे ही अविराज घायल अवस्था में, उस सफेद रानी बाघिन की सवारी करते हुए प्रवेश करता है —
पूरा दरबार उसकी बहादुरी के लिए उठ खड़ा होता है।
ढोल नगाड़े बजने लगते हैं, मंत्रोच्चारण होने लगता है।

राजा अग्रेण गर्व से अविराज की ओर देखता है।
राजा:
"हम घोषणा करते हैं कि राजकुमार अविराज इस स्वयंवर के विजेता घोषित किए जाते हैं!"

वहीं रात्रि भी एक कोने से यह दृश्य देख रही है।
उसके चेहरे पर सुकून है, मुस्कान है... और राहत भी—
कि अब उसे विवाह नहीं करना पड़ेगा।


---

[Scene: अगली सुबह — सीकरपुर महल के द्वार पर एक नई कहानी शुरू]

प्रणाली ने साधारण वेशभूषा पहन रखी है, चेहरे पर घूंघट है।
वो सीकरपुर महल के मुख्य द्वार पर खड़ी है और दरबानों से बहस कर रही है।

प्रणाली (थोड़े गुस्से में):
"कितनी बार समझाऊं...? मुझे खुद राजकुमारी प्रणाली ने भेजा है!
राजकुमार अविराज को स्वयंवर जीतने की बधाई देने!"

दरबान (उपहास के साथ):
"हर कोई आजकल यही कहता है!
हर फूल लाने वाला दूत नहीं होता!"

तभी ऊपर से राजा माहेन् बालकनी से यह सब देख रहे होते हैं।
वो तत्काल अपने अंगरक्षकों संग नीचे आते हैं।

राजा माहेन्:
"क्या हो रहा है यहां...?"

(दरबानों ने स्थिति बताई, और तभी लड़की ने धीरे से अपना घूंघट हटाया…)

राजा माहेन् (मन में):
"अरे... ये तो स्वयं प्रणाली है!
लगता है प्रेमवश चली आई है..."

राजा (मुस्कुराते हुए):
"दरवाज़े खोल दो... हमारे महल में प्रेम के लिए कभी बंदिश नहीं होती।"


---

[Scene: महल के भीतर – प्रणाली बनाम अविराज]

प्रणाली:
"राजकुमार जी..."

(अविराज एक पत्र पढ़ रहा होता है, आवाज़ सुनकर चौंक जाता है)

अविराज:
"आप... आप कौन...? आप अंदर कैसे आईं...?"

प्रणाली (घूंघट में, आवाज़ बदल कर):
"मुझे राजकुमारी प्रणाली ने भेजा है... बधाई देने..."

(अविराज का चेहरा एकदम बदल जाता है, उसकी आंखें चमक उठती हैं)

अविराज (खुश होकर):
"सच...? क्या सच में आप उन्हें जानती हैं?
बैठिए... बताइए... उन्होंने कुछ कहा मेरे बारे में?"

(प्रणाली उसे देखती ही रह जाती है, उसकी आंखों में सवाल हैं…)

प्रणाली (धीरे से घूंघट हटाकर):
"क्या तुम पागल हो, अविराज...?"

अविराज (जैसे समय रुक गया हो):
"प्रणाली...? तुम?"

प्रणाली (गुस्से से):
"क्या सोच रहे थे...?
अगर मैं कोई दुश्मन होती...?
अगर मैं तुम्हारी जान लेने आई होती...?
एक बार भी नहीं सोचा?"

अविराज (धीरे से मुस्कुराते हुए):
"अगर तुम्हारे नाम पर कोई मेरी जान भी लेता...
तो अफ़सोस नहीं करता।"

प्रणाली:
"ये कैसा पागलपन है...?"

अविराज:
"प्यार का।
मैं जानता हूं, तुम मुझे सिर्फ एक दोस्त मानती हो...
पर मुझे तुमसे प्रेम है।
जिस दिन तुम्हें प्रेम होगा...
उस दिन ये सवाल नहीं होंगे।"

प्रणाली (थोड़े ठहराव के बाद):
"कौन कहता है मुझे तुमसे प्रेम नहीं?"

अविराज (बात को हल्के में लेते हुए):
"चलो... विवाह के बाद हो जाएगा।
अब बताओ — इतनी भेष बदलकर क्यों आईं?"

प्रणाली (आंखों में आंसू लिए):
"मैं मज़ाक नहीं उड़ा रही तुम्हारी भावनाओं का...
पर... मैं ये विवाह नहीं करना चाहती...
मतलब... अभी नहीं।"

अविराज:
"इतनी सी बात...?
मैंने पहले ही कहा था — राजा अग्रेण से बात करूंगा।"

(प्रणाली उठती है, धीरे से दरवाज़े की ओर बढ़ती है)

प्रणाली (रुककर, धीरे से):
"अविराज...?"

अविराज:
"हां... बोलो।"

प्रणाली (नरम दर्द के साथ):
"किसी और से विवाह कर लो।"

अविराज (मजाकिया लहजे में):
"तुम मुझे मेरी प्रेमिका के खिलाफ भड़का रही हो...?
वो बहुत ख़तरनाक है... खा जाएगी तुम्हें।"

(प्रणाली हंसती है, पर आंखें अभी भी भीगी हैं…)


---

[Scene: जंगल का रास्ता — प्रणाली अकेली]

प्रणाली जंगल के रास्ते से लौट रही है।
उसका मन भरा है, और वो खुद से बात कर रही है।

प्रणाली (मन में):
"ये अविराज मुझसे इतना प्रेम करता है...
क्या ऐसा प्रेम सच होता है...?
जहां कोई अपनी जान तक दांव पर लगा दे...?
अगर ऐसा कोई रोग है...
तो भगवान मुझे उससे दूर ही रखे... और उसे थोड़ी अक्ल दे।"

(अचानक रास्ते में पत्थर बिखरे दिखते हैं — कोई तूफ़ान नहीं, कोई पहाड़ नहीं)

प्रणाली (चौकन्नी होकर):
"ये कोई संयोग नहीं... ये जाल है।"

(वो टोकरी एक तरफ रखती है, खंजर निकालती है)

प्रणाली (जोर से):
"जो भी है... बाहर आओ।
मैं जानती हूं मैं यहां अकेली नहीं हूं!"

(चारों तरफ से नकाबपोश निकलते हैं – 6 लोग)

**