भाग 12: गिरफ़्त से रिहाई… या नई क़ैद?
(जहाँ मोहब्बत की सबसे गहरी यादें ही सबसे बड़ा सच बन जाती हैं)
सना की आख़िरी रिकॉर्डिंग सुनने के बाद, आरव घंटों तक चुपचाप उस कमरे में बैठा रहा।
टेप प्लेयर बंद हो चुका था, आवाज़ें थम गई थीं, लेकिन उसके भीतर जो हलचल थी, वो ठहरने का नाम नहीं ले रही थी।
उसकी आँखें खुली थीं, लेकिन वो कहीं देख नहीं रहा था।
जैसे सना की वो बातें —
“तुम पागल नहीं थे… बस बहुत सच्चे थे” —
आरव के ज़हन में बार-बार गूंज रही थीं।
एक गहरी चुप्पी के बाद, सुबह की पहली किरण कमरे में दाख़िल हुई।
हल्की धूप, हलकी हवा… और उसी के साथ डॉक्टर मेहरा भी आ पहुँचे।
आज उनका चेहरा पहले जैसा शांत नहीं था।
उनकी आँखों में पहली बार अपराधबोध साफ़ दिख रहा था।
आरव ने कोई भूमिका नहीं बनाई।
वो एकदम सीधे बोले:
“आपने क्यों किया ये सब?”
डॉक्टर कुछ देर चुप रहे।
फिर गहरी साँस लेते हुए बोले:
“क्योंकि तुम उसे भूलना नहीं चाहते थे… और वो चाहती थी कि तुम उसे भूल जाओ।”
“हमने सोचा — अगर तुम्हारे ज़हन से उसका नाम मिटा दिया जाए, तो शायद तुम बच जाओगे।”
“पर हम भूल गए कि प्यार सिर्फ़ एक चेहरा नहीं होता, वो एक अहसास होता है। जो जितना दबाया जाए… उतना गहराता है।”
आरव की आँखें अब उनके भीतर झाँक रही थीं।
इस बार उनमें डर नहीं था, बल्कि संकल्प था।
डॉक्टर ने फिर कहा:
“आरव, अब तुम्हारे पास दो रास्ते हैं।”
“या तो हम फिर से तुम्हारी यादें मिटा दें — सना को तुम्हारे ज़हन से पूरी तरह खत्म कर दें।”
“या फिर तुम उसकी यादों को स्वीकार कर लो… दर्द के साथ।”
कमरे में एक लंबा मौन पसरा रहा।
फिर आरव ने गहरी साँस ली।
उसकी आँखें हल्के से भीगीं, पर चेहरा दृढ़ था।
“मैं सना को नहीं मिटाना चाहता।”
“मैं खुद को अधूरा नहीं रखना चाहता।”
“मैं उसे याद रखना चाहता हूँ — पूरी तरह।”
उस रात आरव ने पहली बार बिना नींद की गोली लिए नींद ली।
और उसने सपना देखा…
वो वही झील थी, जो हर बार उसके सपनों में आती थी।
लेकिन इस बार उसमें डर नहीं था।
कोहरा नहीं था।
केवल साफ़ नीला पानी, और किनारे पर खड़ी सना।
वो मुस्कुरा रही थी —
एक सच्ची मुस्कान, बिना दुख के।
आरव पास गया।
सना ने हाथ बढ़ाया।
“अब कोई तुम्हें मुझसे दूर नहीं कर सकता, आरव।”
“पर क्या तुम अब भी मुझे अपने ज़हन में रखना चाहोगे?”
आरव ने उसका हाथ थामा।
उसकी आँखों में कोई शक नहीं था।
“अब तुम मेरी याद नहीं… मेरी आत्मा का हिस्सा हो।”
अगली सुबह, अस्पताल की फ़ाइल बंद कर दी गई।
डिस्चार्ज रिपोर्ट में लिखा गया:
"Patient chose to remember."
"Memory stabilized."
"Integration: Successful."
आरव ने जब अस्पताल के मुख्य दरवाज़े से बाहर कदम रखा,
तो सूरज उसके चेहरे पर पूरी गर्माहट से चमक रहा था।
ठंडी हवा बह रही थी, लेकिन अब उसमें कांप नहीं थी।
वो जानता था —
अब वो पूरी तरह ठीक नहीं था…
बल्कि पूरा था।
समाप्ति
"ज़हन की गिरफ़्त" अब आज़ादी की राह बन चुकी थी।
या शायद…
एक नई शुरुआत।