Age Doesn't Matter in Love - 10 in Hindi Drama by Rubina Bagawan books and stories PDF | Age Doesn't Matter in Love - 10

Featured Books
Categories
Share

Age Doesn't Matter in Love - 10

सुकून भरी सुबह

अगले दिन अभिमान घर पर ही था। सोफे पर चुपचाप बैठा था, आंखों में हल्की थकावट और मन में कुछ शांत-सा। सरस्वती जी ने उसे देखकर पूछा,
“क्या बात है? आजकल बहुत छुट्टियाँ ले रहे हो तुम।”

अभिमान ने कुछ नहीं कहा, बस हल्की-सी मुस्कान दी और नजरें फेर लीं।
उसी समय अमित जी बोले, “मैं निकलता हूं ऑफिस के लिए।”

अभिमान ने सिर हिलाया, पर उसकी आंखों में कुछ और ही चल रहा था।
वो थका हुआ ज़रूर था, पर उसके चेहरे पर एक अलग ही सुकून था…
उसने अपने हाथों को देखा — वही हाथ जिनसे कल रात उसने आन्या को अपने सीने से लगाया था।
आँखें बंद करके वो उन लम्हों को फिर से जी रहा था।
धीरे से मुस्कुराया और बोला —
“I love you… मेरा बच्चा…”

वो लम्हा उसकी आंखों के सामने था जब आन्या उसकी बाहों में थी — मासूम, छोटी, पर उससे बेहद करीब। वो एहसास, वो सुकून… उस एक लम्हे में पूरी दुनिया समा गई थी।

अगली सुबह

अभिमान आज जल्दी उठ गया।
सुबह के सात बज रहे थे, वो फ्रेश होकर नीचे आया तो सरस्वती जी ने हैरानी से पूछा,
“अरे, इतनी सुबह-सुबह? कहाँ जा रहे हो?”

अभिमान ने चाबी उठाई और बाहर निकलते हुए बस इतना कहा,
“कुछ काम है…”

“नाश्ता तो कर लो,” सरस्वती जी ने कहा।
“रेस्टोरेंट में कर लूंगा…” वो बस इतना बोलकर बाहर निकल गया।

उसके चेहरे पर हल्की-सी बेचैनी थी — किसी से मिलने की, किसी को देखने की।

उसने अपनी बाइक स्टार्ट की, रफ्तार बढ़ाई और करीब 7:20 बजे एक पार्क के पास रुका — रेस्टोरेंट से कुछ ही दूरी पर।
ये जगह ज्यादा भीड़भाड़ वाली नहीं थी, और शायद यही वजह थी कि उसने यहीं बुलाया था।

कुछ ही देर बाद…

करीब दस मिनट बाद एक छोटी-सी पर मासूम-सी लड़की वहाँ पहुंची — आन्या।
वो सफेद रंग की फ्रॉक में थी, बाल खुले थे, आंखें चमक रही थीं और चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।

अभिमान पहले से ही बाइक के पास खड़ा था, अपने हाथ क्रॉस करके।
जैसे ही उसने आन्या को देखा, उसकी बेचैनी थोड़ी थमी। उसने अपनी बाहें फैलाईं, जैसे कह रहा हो —
"आ जा मेरी बाहों में…"

आन्या हल्की मुस्कान के साथ भागती हुई उसके सीने से जा लगी।

अभिमान ने उसे कसकर अपनी बाहों में भर लिया — जैसे उस एक लम्हे में सब कुछ पा लिया हो।
दोनों की धड़कनें तेज़ थीं।
वो कुछ नहीं बोले, बस कुछ पल यूँ ही एक-दूसरे के करीब खड़े रहे।



फिर अभिमान ने उसे हल्के से ऊपर उठाया और बाइक पर बिठा दिया।
आन्या अपनी बड़ी-बड़ी बिल्ली जैसी आंखों से उसे देख रही थी।

अभिमान ने उसे निहारते हुए प्यार से उसके माथे को चूमा और पूछा —
“तबीयत कैसी है तुम्हारी?”
आन्या ने बस सिर हिलाया — उसकी मासूमियत में जवाब छुपा था।

अभिमान ने फिर गंभीर होकर पूछा,
“क्या हुआ? बात नहीं करना चाहती? या मैंने तुम्हें अनकंफर्टेबल कर दिया?”

आन्या बस उसकी आंखों में देखती रही। फिर मासूमियत से बोली —
“आपने ही तो कहा था… दोस्त हैं, दोस्त सब करते हैं…”

ये सुनते ही अभिमान की भौहें उठ गईं, वो उसकी ओर झुकते हुए बोला —
“उससे आगे भी कुछ कहा था… याद नहीं?”
आन्या ने शर्माते हुए चेहरा दूसरी ओर कर लिया।

अभिमान मुस्कुराया —
“बताओ न, मेरे साथ अजीब सा फील हो रहा है या नहीं?”
आन्या हँसी और बोली —
“नहीं… आप के साथ तो मैं सेफ हूँ।”

ये सुनते ही अभिमान ने फिर से उसे सीने से लगा लिया।
उसकी उंगलियाँ आन्या के बालों में चल रही थीं।
फिर एक लंबी साँस लेकर बोला —
“अनू, हमारे बीच नौ साल का फासला है…”

ये सुनते ही आन्या ने और कसकर उसे पकड़ लिया।
अभिमान ने भी उसे थामते हुए कहा —
“परेशान मत हो… अब तुम्हें कभी रोने नहीं दूंगा। शांत हो जाओ।”

आन्या की आंखें भर आईं।
“Promise?”

अभिमान ने मुस्कुराते हुए उसकी नाक को चूमते हुए कहा —
“Promise…”


“आपने नाश्ता किया?” — आन्या ने पूछा।

अभिमान ने मुस्कुरा कर झूठ बोला,
“हम्म…”

“पर मैं तो आपके लिए नाश्ता लाई हूँ…”
यह सुनते ही अभिमान चौंका —
“अच्छा? क्या लाई हो?”

“रुकिए…” — कहकर आन्या ने टिफिन बॉक्स खोला।
उसमें मूंग दाल का हलवा और पराठे थे।

“लाई हो तो खिला दो…” — अभिमान ने प्यार से कहा।
आन्या थोड़ी झिझकी —
“पर मैं चम्मच नहीं लाई…”

अभिमान ने उसकी आंखों में देखकर कहा —
“हाथ से खिला दो…”

आन्या ने सिर हिलाया।
फिर बोली, “आप नीचे झुकिए…”
अभिमान ने झुककर उसका हाथ अपने मुंह के पास किया।
आन्या ने प्यार से उसे पहला निवाला खिलाया।

“बहुत अच्छा है…” — अभिमान बोला।
आन्या शरमा कर मुस्कुरा दी।

अभिमान बोला —
“नंबर मिलेगा तुम्हारा?”
आन्या ने सिर हिलाया —
“दादी जी का नंबर है… मैं ही कॉल करूंगी, आप मत करना।”

अभिमान ने सिर हिलाया —
“ठीक है… अब स्कूल जाओ, देर हो रही है।”

“ओके…” — कहती हुई आन्या खड़ी हुई।
अभिमान ने जाते-जाते एक बार फिर उसका माथा चूम लिया।
और वो सुकून से मुस्कुराकर आगे बढ़ गई…

यह लम्हा अधूरा नहीं था, पर आखिरी भी नहीं था…

इन लम्हों में ना कोई वादा था ना कसमें…
पर आंखों में प्यार था, सुकून था, और एक एहसास —
कि चाहे फासला हो, उम्र हो, दुनिया हो…
जब दो दिल सच्चे हो, तो सब कुछ पीछे छूट जाता है।