23साल पहले......
शहर: कानपुर
समय: दिन के 9.45
श्रीमान कल्पेश सिंह भदौरिया के घर अभी अभी एक नन्हीं सी परी ने जन्म लिया है। वह उस समय अपने माता - पिता की पहली संतान है। इसलिए उनकी खुशी सातवें आसमान पर है। और हो भी क्यों ना आखिरकार पिता बनने का सुख होता ही ऐसा है कि अंग अंग प्रफुल्लित कर देता है।
एक साल पहले ही कल्पेश सिंह की शादी उनके पिताजी के खराब स्वास्थय को देखते हुए बड़े ही जल्दबाजी में पास के गांव में रहने वाले उनके मित्र की बेटी से करवाई गई थी।
शादी के समय वह इसके लिए तैयार ना थे किंतु घरवालों के आगे उन्हें झुकना पड़ा और अपने बीमार पिता की इच्छा का मान रखना पड़ा।
भले ही उन्हें उस समय, इन सब के लिए खुद को तैयार करने का समय ना मिला हो पर शादी होने के बाद धीरे धीरे उनके और उनकी पत्नी के बीच सब ठीक हो चुका था।
उन्हें शुरु में यह सब स्वीकार करने में कुछ समय लगा किंतु उनकी पत्नी कल्पना बड़ी ही सुशील, सभ्य व शांत स्वभाव की है, जिस कारण वह जल्द ही उनके मन को भाने लगी।
और दो ही माह में अपनी पत्नी का अपने प्रति प्रेम देखकर धीरे धीरे वह भी उनकी ओर आकर्षित होने लगे और फिर कुछ समय बाद उन दोनों में सब कुछ सुधरने लगा।
पति पत्नी का ना सही पर शादी के तीन माह बाद उन दोनों में कुछ तो संबंध बनने लगा था। एक ऐसा संबंध जिसमें दोनों को एक दूसरे के सुख- दुख, मान- सम्मान, पसंद- नापसंद का ख्याल रहने लगा था।
बेटे के मुख पर संतोष और सुख देखकर उनके पिता को बहुत राहत मिली। किंतु कहते है ना इंसान की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती, वही उनके साथ भी हुआ।
पहले उन्हें मरने से पहले बेटे की शादी देखने की इच्छा थी और अब जब शादी हो गई तो पोता या पोती का चेहरा देखने की इच्छा थी। बस फिर क्या था एक बार फिर कल्पेश पर परिवार का दवाब बनने लगा और अंत में अपने जीवन के आखिर पड़ाव पर आ चुके पिता की इच्छा उन्हें माननी पड़ी। किंतु दुर्भाग्यवश वह अपनी इस इच्छा के पूरा होने से पहले ही चल बसे।
हालांकि वह तब भी पूर्ण रुप से इसके लिए राजी ना थे पर आज, अब जब उन्होनें खुद के पिता बनने के समाचार को सुना तो इस समय सिवाए सुख के और कुछ अनुभव नहीं हो रहा है उन्हें।
आज उनकी पत्नी ने उन्हें जीवन की सबसे बड़ी खुशी दी है और साथ ही उनके रिश्ते को एक नया मुकाम भी दिया है। आज इस क्षण के बाद अब उनके मन में इस संबंध के प्रति कोई शंका , कोई संशय नहीं है।
उस छोटी सी गुड़िया के आते ही ना जाने कैसे एहसास ने उन दोनों में जन्म लिया था जिसने उन पति- पत्नी के उस रिश्ते में एक नई उर्जा और उमंग को भर दिया है । उन दोनो को ही ऐसा लग रहा है जैसे कोई मजबूत सा मुकाम हासिल कर लिया है उनके संबंध ने जीवन में।
भले ही उनकी मां को पोती होने का कुछ अफसोस हो रहा हो लेकिन फिर भी घर की पहली संतान तो पहली ही होती है। और उसके होने की खुशी भी अलग ही होती है। और वैसे भी उसके आते ही इनके जीवन में बहार ही बहार आ गई है तो खुशी हो भी क्यों ना??
जब नर्स ने पहली बार उस छोटी सी बच्ची को कल्पेश की गोद में दिया, तो बड़े ही प्यार से, नजाकत से, डरते हुए, ना जाने कितने ही जज्बातों और इच्छाओं को संभालते हुए उन्होनें कांपते हाथो से उसे अपनी गोद में लिया और फिर अपने सीने से लगा लिया।
फिर उन्होनें उसके माथे को चूमते हुए उसके मासूम से चेहरे को बड़े ही प्रेम से देखते हुए अपनी मां से कहा," मां, भले ही तुझे पोते की तृष्णा हो पर अब तो भगवान ने हमें यह त्रिशा दे दी है।आज से इसका नाम त्रिशा ही है, मां!!"
त्रिशा ने उन्हें माता - पिता बनने की खुशी और उस अनुभव से अवगत कराया था। और यूं तो वह एहसास ही काफी था उन दोनों के जीवन को खुशियों से भरने के लिए। लेकिन उस खुशी के साथ- साथ, उस छोटी सी गुड़िया के आते ही इनके जीवन की सारी काया ही पलट गई थी। जहां कल्पेश सिंह पहले एक प्राईवेट कंपनी में मामूली से कर्मचारी थे, उन पर माता लक्ष्मी की ऐसी कृपा हुई की गांव में मौजूद उनकी पुश्तैनी जमीन और घर के साथ साथ उनके पिताजी के सामान में से कुछ कीमती सामान और गहने भी उन्हें मिल गए।
अपने आप को मिली इस पूंजी और संपत्ती का इस्तेमाल कर इन्होनें कानपुर शहर में अपनी एक छोटी सी साड़ियों की दुकान खोल ली और वहीं पास में ही उन्होनें एक कमरा भी किराए पर ले लिया और अपनी मां, पत्नी और बेटी के साथ रहने लगे