23 साल बाद
खुद को पंख लगा समय तेज रफ्तार से बीत गया। पहले एक एक कर दिन बीते, फिर एक एक कर महीने और फिर यूं ही एक एक कर बीते साल। और यूं ही देखते देखते एक के बाद एक 23 साल बीत गए।
इन बीते 23 सालो में मेरे पिता यानी की कल्पेश सिंह भदौरिया, आप तो जानते ही उनको!!! अरे वहीं जिनकी दुकान थी पहले लहगों और साड़ियों की। हांं हां वहीं वहीं। पता है अब वहीं दुकान शोरुम बन गया है। और वो भी ऐसा वैसा शोरुम नहीं दो मंजिला और एकदम फैमस है, नए डिजाईन की साड़ियां और लहंगें के लिए। पूरे इलाके में नाम है कि हर प्रकार की साड़ियां मिलती है भदौरिया साहब के पास। और तो और पता है ए०सी० की सुविधा भी है वहां और हां ट्रायल रुम भी बन रहा है अब तो वहां।
पता है आपको सुबह से लाईनें लगती है वहां इनकी दुकान के आगे। इलाके की हर शादी में दुल्हन के लिए लंहगों की शोपिंग करने के लिए फेमस हो गई है यह जगह अब। ना जाने कितनी दुल्हनों के जोड़े गए है इस दुकान से। इतना ही नहीं अब तो साथ में ही बुटीक भी खुल गया है, सूट और लंहगों की फिटिंग भी वहीं दुकान में हो जाती है। साथ ही साथ ब्लाउज, पेटिकोट, फोल, अस्तर, चुन्नी, सूट का कपड़ा सारा सामन एक ही जगह उस दो मंजिला दुकान....
सॉरी शोरुम में मिल जाता है।
इतना ही नहीं, बहुत से छोटे छोटे व्यापारियों और फेरी वालों को भी माल दिया जाता है यहां से। अपने दम पर शुरु करी यह दुकान आज कम से कम 30-40 लोगो की रोजी रोटी का जरिया है। अब काम इतना बड़ हो गया है तो अकेले तो संभलता है नहीं इसलिए मेरे मामा सुदेश, अरे वहीं तन्मय के पापा,हां तो हुआ यूं कि तन्मय को हमें देने के बद से मामा हमारे बहुत करीब आ गए है तो वहीं पापा के साथ मिलकर काम संभालते है।
वैसे दुकान तो बड़ी हुई ही है और साथ ही में मेरे पापा भी बड़े हो गए है। अरे नहीं नहीं बड़े नहीं बूढ़े हो गए है अब वो, हाहाहाहा यह बात कहना ना उन्हें नहीं तो डांट पड़ेगी। खैर छोड़ो यह सब। हां तो उम्र की बात करें तो पचास तो होने को आई है। अब तो बाल भी सफेद हो आए है थोड़े थोड़े उनके। पर हां ढाड़ी और मूंछ अभी भी काली ही है मेरे पापा की और हां मूंछें ठाकुरों की तरह अभी भी तनी रहती है हमेशा उनकी। अगर कद काठी की बाते करे तो उम्र ने शरीर कुछ झुका सा दिया है या फिर यूं कह लिजिए की पेट ने बाहर निकल कर झुका दिया और कद को कुछ छोटा बना दिया है। हाहा यह बात भी ना कहना किसी से।
वैसे अगर स्वास्थय की बात की जाए तो ऐसे तो एकदम तंदरुस्त है मेरे पापा। खाने का ध्यान तो वे रखते ही है और रोज सवेरे वह सैर पर भी जाते है और अगर मन में आ जाए तो कुछ देर व्यायाम भी कर ही लेते है। फर बस वही है कि काम बड़ा है तो टेंशन भी बड़ी ही है।
अब पापा के बारे में तो इतना सब जान लिया है तो अब मैं आगे के परिवार के बारे में बताती हूं। दादाजी का स्वर्गवास तो मेरे जन्म से पहले ही हो गया था। बताया था आपको। और दादी भी पांच साल पहले स्वर्गवासी हो गई। बाहर से बहुत ही कड़क थी मेरी दादी पर दिल से बहुत कोमल थी। और मुझे प्यार भी बहुत करती थी। हां पर मेरे भाई को ज्यादा करती थी।
दादी की बहू और मेरी मां कल्पना सिंह भदौरिया को तो आप जानते ही है। सभ्य, शांत, सुशील और संस्कारी मेरी मां। मेरी मां की सुंदरता भी उम्र के साथ ढलने लगी है, बाल उनके भी कुछ सफेद हो चुके है। उनके बारे में तो बस इतना ही कहूंगी कि बाकी सभी गृहणियों की तरह मेरी मां की जिंदगीं भी चूल्हे चौके, घर, पति, सास और बच्चों के पीछे पीछे भागने में और सबकी जरुरतों का ध्यान रखने में हीं बीती है।
अब घर के घर के इन बड़ो के बाद आती हूं मैं, यानी की आपकी त्रिशा। और अपने बारे में मैं क्या बताऊं। मेरी कहानी से मेरे बारे में तो पता चलेगा ही। पर उस से पहले मैं आपको अपने घर के सबसे छोटे सदस्य तन्मय के बारे में बताऊंगी। वह 15 साल का है, मुझसे 8 साल छोटा है और इस समय दसवीं में पढ़ता है।इसे भी मेरी तरह गाने सुनने का बहुत शौक है। वैसे पढ़ाई लिखाई की बात करे तो पढ़ाई में ज्यादा रुझान है भी नहीं। और हो भी क्यों पता है ना उसे कि वह साड़ियों की दुकान ही संभालनी है उसे तो पढ़ लिखकर क्या फायदा। वैसे बहुत ही शरारती है यह पर दिल का अच्छा है, कभी किसी को तकलीफ में नहीं देख सकता है यह।