आज 23 बरस की हो चुकी हूं। आज मेरा तेइसवां जन्मदिन है इसलिए हमारे घर में सत्यनारायण जी की पूजा है और रात को एक छोटी सी पार्टी है जिसमें कुछ खास रिश्तेदारों और मेहमानों को बुलाया है।
वैसे तो जन्मदिन वाला दिन सबके लिए ही खास होता है पर मेरे लिए यह दिन और भी खास है क्योंकि आज आने वाले मेहमानो में से कुछ बेहद ही खास है। नहीं समझे???
मैं बताती हूं। आज मेरी बुआ जी के साथ उनकी नन्द और नन्दौई आ रहे है। अपने बेटे राजन के साथ। अब तो समझ ही गए होगे आप।
हां बिल्कुल सही समझें। आज राजन के मम्मी पापा लखनऊ से आ रहे बुआ जी के साथ मुझे देखने। और इसलिए मां ने कहा है कि एकदम अच्छे से तैयार होना है और अच्छा बनकर रहना है। एकदम सुंदर, सुशील और संस्कारी।
और इस काम की जिम्मेदारी सौंपी गई है, मेरी भाभी और मेरी सहेली पर। मेरी भाभी मोनिका मेरे मामा जी के बड़े लड़के मानस की पत्नी है। अब मेरी तो सगी ना कोई बड़ी बहन है और ना छोटी। और ना ही कोई भाभी है। तो उन्हें ही बुलाया गया है मुझे प्रैक्टिस करवाने के लिए।
मेरी भाभी मेरी ही हमउम्र है, वैसे पिछले साल ही इनकी शादी हुई है तो इनके पास और यह लड़के वालों के आगे वाला टेस्ट वो दे चुकी है तो उन्हें इस बात का तजुरबा है। और इनकी मदद से मैं भी इस टेस्ट को पार कर लूं। इसी उम्मीद से इन्हें यहां आया गया है।
वैसे मेरी भाभी के साथ जो लड़की खड़ी है वो है मेरी बचपन की सहेली महक। जैसा नाम वैसी ही है, बहुत ही प्यारी सी , मासूम सा चेहरा, शांत स्वभाव, लेकिन इन सब पर मत जाइए। यह सब तो बस मेरे घरवालों का भ्रम है। महक दिखने में भले ही भोली लगती हो पर वह ऐसी है नहीं। बहुत ही समझदार है वो। उसकी शक्ल देख कर लगता है कि इसे आसानी से बातों में फंसाया जा सकता है पर लोगों को परखना और उनसे उचित व्यवहार करना सब जानती है वो।
महक के पिता आर्मी में थे और मेरे पापा के बहुत अच्छे दोस्त भी थे। यह लोग बहुत सालों से हमारी पड़ोसी है। बहुत सालों पहले, हमारे स्कूल के समय ही उसके पिता की मृत्यु एक हादसे में हो गई थी। जिसके बाद वह और उसकी मां यहां अकेले रहे है। महक की मां एक स्कूल में टीचर है और खुद ही कमा कर अपना और महक का खर्च उठाती है। उसे एम० काॅम कराने तक उन्होनें बहुत ही मेहनत और संघर्ष किया है। और अब जाकर उनकी मेहनत सफल हुई है जब महक की एक अच्छी जाॅब लग गई है।
स्कूल जाते समय महक अक्सर मुझसे कहती थी कि मैं कितनी लकी हूं मेरे पास मां, पापा, तन्मय सब है जो मुझे कभी कोई काम खुद नहीं करने देते। मुझे कभी किसी चीज में परेशान नहीं होना पड़ता और उसे सारे काम खुद करने पड़ते है। अपना बैग खुद लगाना पड़ता है, अपने कपड़े खुद रखने पड़ते है, बहुत बार घर का सामान और सब्जियां लानी पड़ती है। अपनी स्कूल की फीस, किताब, काॅपी सब खुद ही देखनी पड़ती है।
पर आज जब हम बड़े हो गए है तो कभी कभी मुझे उससे जलन होती है । आज वह पहले से बिल्कुल अलग है। मेरी तुलना में हर तरह से सक्षम है। अच्छा कमाती है, अच्छी दिखती है, अच्छा खाना भी बना लेती है। बल्कि अब तो सारा काम वो खुद कर लेती है। घर का सामान लाना, राशन, सब्जी, फल , दूध से लेकर बिजली का बिल, फोन का बिल, बैंक का, काॅलेज का इधर का उधर का सारा, सारा काम वो कर सकती है।
यहां तक की अगर उसे बोला जाए तो पूरे कानपुर में वो अकेली घूम सकती है, कानपुर ही क्यों वो तो कहीं भी खुद अकेली जाकर रह सकती है। और एक मैं हूं जिसे घर से नुक्कड़ कि दुकान तक जाकर सामान लाना जंग लड़ना सा लगता है।
जीवन में उसे किसी कि जरुरत तो है ही नहीं इसलिए उसपर कोई बंधन भी नहीं है। आजादी से वह कुछ भी कर सकती है और इस दुनिया में रहते रहते और लोगों से मिलते मिलते वो आत्मविश्वास से भरी है। उसकी आंखें उस विश्वास से चमकती है और मेरी......
मेरी आंखें डरी डरी, सहमी सी रहती है। हर पल मुझे असुरक्षा का भाव महसूस होता है। वह पूरा टाईम अकेले बिना परेशानी के निकाल सकती है और मै...........
मैं तो आधे घंटे भी अकेली ना रह पाऊं।
वो बिना डरे, बिना झिझक, बिना शर्म के अपनी बात सबके आगे रख सकती है। और मै.....
मैं तो अपनी मां से भी ना कह पाऊं कि मुझे चाहिए क्या?
कभी कभी मैं सोचती हूं कि मैं महक जैसी क्यों नहीं हूं? मैं भी ऐसी बनना चाहती हूं। लेकिन जैसे ही मुझे उसकी द्वारा झेली गई मुसीबतों का ख्याल आता है तो मुझे लगता है कि मैं, मैं ही ठीक हूं। मेरी जिंदगीं में कौन सी कमी है जो मैं किसी से जलन महसूस करूं और वैसे भी जब सब है हि मेरा ख्याल रखने को तो मुझे सबकुछ खुद करना ही क्यों है? और आजादी तो मेरे पास भी है ही ना।