अदाकारा 2
सुबह उठने के साथ ही उर्मिलाने मानो पूरा घर ही अपने सिर पर उठा लिया था।
"सुनील। उठ जा ना यार। दस बज गए हैं। मुझे बेहराम भाई को राखी बाँधने भी जाना है।"
"तो तू चली जाना।मुझे तो चैन से सोने दो। मुझे क्यों परेशान कर रही हो?।"
सुनील ने चादर अपने सिर तक खींचते हुए कहा।
"मुझे परेशान मत करो का क्या मतलब? क्या बड़ी दीदी थोड़ी देर में तुम्हें राखी बाँधने नहीं आएगी? चलो,अब उठ जाओ।"
उर्मिला ने सुनील से आग्रह करते हुए कहा।
इस बार सुनील को उर्मिला का आदेश मानना ही पड़ा। उसने चादर अपने शरीर पर से उठाकर फेंक दी।ओर बड़े मीठे लहजे में बोला
"उर्मि। मैं क्या कहता हु...?"
यह सोचकर कि सुनील कुछ ज़रूरी बात कहना चाहता है,उर्मिला कमर पर हाथ रखकर पलंग के पास आकर के खड़ी हो गई। जल्द ही, सुनील ने अपना हाथ बढ़ाया और उर्मिला को बिस्तर पर खींच लिया।
उर्मिला लगभग असमंजस में चीख पड़ी।
"हाँ। हाँ। हाँ। अब तुम ये क्या कर रहे हो?"
लेकिन सुनील ने उसकी चीखों पर ध्यान नहीं दिया।उसने उसके हैरत से फैले हुए होंठों पर ध्यान दिया। और उसने उर्मिला के होंठों पर अपने होंठ रख दिए और मजे से उर्मिला के होंठ चूसने लगा।
उर्मिला सुनील की बाहों में मचलती हुई। तिलमिलाकर बोली।
"इसके अलावा और कोई काम नहीं है क्या? आधी रात तक मस्ती करने के बाद भी तुम्हारा पेट नहीं भरा?"
"अरे। तुम तो मेरी खट्टी-मीठी डिश हो। जितना मैं तुम्हें खाता हूँ,मेरी भूख उतनी ही बढ़ती जाती है।"
उर्मिला के इर्द गिर्द अपनी बाँहों की पकड़ को मज़बूत करते हुए सुनील बोला।
"हाँ भई। ठीक है,लेकिन आज त्योहार के दिन थोड़ा सावधान भी रहना चाहिए ना?। बड़ी दीदी तुम्हें राखी बाँधने आए,उससे पहले मैं बेहराम भाई को राखी बाँधकर आ जाती हूं।"
"एक-दो मिनट के लिए मुझे अपने लबों का का ओर स्वाद चखने दो,जानू।"
यह कहकर सुनील एक बार फिर उर्मिला के होंठों पर अपने होंठ रखने ही वाला था कि तभी दरवाजे की घंटी ने जैसे उसके रंग मे भंग डाला।
टिंग टॉन्ग।
दरवाजे की घंटी की आवाज़ सुनकर सुनील का चेहरा देखने लायक हो गया।वो मुँह बिगाड़ते हुए बुदबुदाया।
"अब ये कौन आ मरा सुबह सुबह?"
"ज़रा सोच-समझकर बोलो।"
उर्मिलाने सुनील को डाँट लगाते हुए कहा।
"लगता है बड़ी बहन आ गई हैं।जाओ,तुम बाथरूम में जाकर फ्रेश हो जाओ,मैं दरवाज़ा खोलती हूँ।"
सुनील बाथरूम की तरफ़ चल दिया।
और उर्मिला दरवाज़े की और।
जब उर्मिने दरवाज़ा खोला,तो बेहराम और उसकी पत्नी मेहर उसके सामने खड़े थे।
दोनों को देखकर उर्मिला हैरानी सरप्राइज़ होते हुवे बोली।
"वाह!क्या बात है?तुम यहां आ गए मैं तो तुम्हारे वहाँ आने की तैयारी ही कर रही थी।"
"मुझे पता है कि मेरे जीजाजी आज छुट्टी पर होंगे। इसलिए वे आज आराम से उठेंगे। और चूँकि आज वो तहेवार का दिन भी हे इसलिए मेरी प्यारी बहन की कुछ और योजनाएँ भी होंगी। इसलिए मैंने सोचा कि मैं खुद ही हो आता हूं अपनी बहन के वहां।"
“ये आपने बहुत अच्छा किया।”
उर्मिला खुश होते हुए बोली
उर्मिलाने पहले बेहराम की आरती उतारी, फिर उसके कपाल पर टीका लगाया और फिर अपने भाई की बलेंया लेकर उसके हाथ में राखी बाँधी।और उसका मुँह मीठा करते हुए बोली।
"भगवान मेरे भाई की हमेशा रक्षा करे।"
"वो तो अब जब तुने अपने भाई को राखी बाँध दी है तो उसको रक्षा करनी ही होगी कहाँ जाएगा?"
फिर उसने अपनी पत्नी से कहा।
"मेहर।अपनी बहन के लिए हम जो साड़ी लाए हे वो दिखाओ तो बहन को।"
"अरे भाई,इसकी क्या ज़रूरत थी?ऐसा तो नहीं है कि राखी बाँधी तो कोई तोहफ़ा देना ही है।"
उर्मिला ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा
"मेरी बहन नाराज़ हो गई?"
"ओर नही तो क्या?हर साल तोहफ़ा देना जरूरी नही हे।"
"अच्छा कोई बात नहीं।अगली बार मैं तुम्हें कुछ नहीं दूँगा,ठीक है?मेहर।अब तुम अपनी नंनद को वो चीज़ भी दे सकती हो जो उसे पसंद हे।"
"अब और क्या लाए हो?"
उर्मिला ने पूछा।
जवाब देने के बजाय,मेहरने उर्मिला को एक पैकेट थमा दिया।
पैकेट मे से आती हुई मीठी खुश्बू से उर्मिला खुशी से उछल पड़ी।
"मेरी पसंदीदा जलेबी।भाई,आपको बराबर याद रहता हे।है ना?"
"क्या बात करती हो,क्यों याद नहीं रहेगा?मेरी प्यारी ओर मीठी बहन की मीठी मिठाई। में ये हरगिज़ नहीं भुल सकता।"
सगे भाई-बहन की तरह एक-दूसरे से प्यार करने वाले पारसी बेहराम और बंगाली उर्मिला की कहानी बेहद दिलचस्प है।
(बेहराम और उर्मिला की कहानी क्या है?पढ़ते रहिए अदाकारा)