VISHAILA ISHQ - 12 in Hindi Mythological Stories by NEELOMA books and stories PDF | विषैला इश्क - 12

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विषैला इश्क - 12

(निशा और उसकी बेटी आद्या नागलोक से लौट रही हैं, जहां आद्या के हाथों पर नागचिह्न उसे “नाग रक्षिका” बनाता है। सनी अपने परिवार को खतरे से बचाने की कोशिश करता है, क्योंकि निशा पर एक नाग का संकट मंडरा रहा है। कार में तेज रफ्तार के बीच आद्या की शक्तियाँ उभरती हैं, और आधे मानव-आधे नाग हमला करते हैं। सनी गरुड़ भस्म से उनका मुकाबला करता है, लेकिन यह लड़ाई केवल बाहरी नहीं, आंतरिक भी है। खतरे और रहस्यों के बीच निशा और आद्या सुरक्षित रहने की जद्दोजहद में हैं।अब आगे)

 निशा : शक्ति की नींव

निशा ने सनी की मनाही को नजरअंदाज कर कार से बाहर कदम रखा। नागों से उसे कोई डर नहीं था — वे उसके अतीत के हिस्से थे। पर सनी से डर लग रहा था, उसके सवालों और उसकी तीखी नजरों से। सनी चिल्लाया, "मैंने मना किया था कि—" लेकिन उसकी आवाज़ अधूरी रह गई। तभी सामने आधे मानव-आधे नाग और नागिनें झुककर आद्या और निशा का सम्मान कर रहे थे।

सनी हैरान होकर बोला, "यह... ये क्या है?" निशा कुछ कहने ही वाली थी कि एक नाग मानव की आवाज़ गुफा में गूंज उठी — "आगे मत बढ़ो, नागरक्षिका माता!"

निशा पलटी और देखा, आवाज़ आ रही थी, पर होंठ हिल नहीं रहे थे। फिर आवाज़ दोहराई — "यहाँ खतरा है, आप तीनों के लिए।" निशा काँप उठी। "क्या... मैं मन की बातें सुनने लगी हूँ?" सनी ने उसका हाथ पकड़कर ज़ोर से खींचा और कार में बैठा दिया। बिना कुछ कहे कार की दिशा बदल दी।

पीछे खड़े नागमंडल की छवि अब सिर्फ पहचान थी — नागरक्षिका की।

सनी ने सुनसान जंगल के बीच कार रोकी। निशा हैरानी से पूछी, "हम... कहाँ आए हैं?"

सनी ने गंभीरता से कहा, "अंदर चलो, सब समझाता हूँ।" आद्या को उसने निशा की गोद से लेकर अपनी बाँहों में लिया। निशा चुपचाप उसके पीछे चल दी।

गुफा के भीतर कदम रखते ही निशा का शरीर जवाब देने लगा—हाथों में झनझनाहट, पैर भारी जैसे सीसे के। वह कुछ कहना चाहती थी, "सनी..." पर आवाज़ गले में रुक गई।

भारी हवा में मंत्रों की गूँज धीरे-धीरे करीब आ रही थी। निशा घुटनों के बल रेंगते हुए आगे बढ़ी। तभी— एक साधु अग्नि के सामने ध्यानमग्न था, उसके चारों ओर त्रिभुजाकार रेखाएँ असामान्य ऊर्जा फैला रही थीं।

निशा की आँखें अचानक लाल हो गईं। वह चीखी— "सनी! आद्या को तुरंत यहाँ से निकालो!"

उसकी आवाज़ इतनी गूँजदार थी कि गुफा की दीवारें कांप उठीं। सनी पलटा— निशा ज़मीन से चिपकी हुई रेंग रही थी। उसने देखा निशा के दाहिने हाथ पर एक चिह्न उभर रहा था।

धीरे-धीरे, जैसे कोई शक्तिशाली स्त्री का मानव चिह्न   तेज नीला प्रकाश फैलने लगा।

सनी ठिठका, "यह... क्या है? ये माया है?"

साधु की आँखें खुल चुकी थीं।

सनी की घबराहट चरम पर थी। वह लगभग चीख पड़ा, "कौन हो तुम? ये मेरी निशा नहीं हो सकती! मेरी निशा कहाँ है? उसे वापस करो!"

निशा के पैर ज़मीन से अलग होने लगे।

क्या सनी ने उस चिह्न को देख लिया था?

क्या अब सच सबके सामने आ जाएगा?

लेकिन उस वक्त निशा के लिए सनी नहीं, आद्या सबसे जरूरी थी।

अपने डर को झटकते हुए वह चिल्लाई— "सनी! जल्दी! वो उसे मारना चाहता है! हमारी बेटी को!"

उसकी आवाज़ में ऐसा शोर था कि अग्नि की लपटें काँप गईं।

सनी स्तब्ध रह गया। वह दौड़ा, लेकिन अब क्या होगा, किसे बचाना है और किससे, यह रहस्य खुलने वाला था।

साधु जोर से चिल्लाया, "बच्ची को जल्दी यहां लेकर आओ, इससे पहले कि वह मायावी बच्ची को नुकसान पहुंचाए!"

सनी ने आद्या को कसकर पकड़ा और साधु की ओर बढ़ा। जैसे ही आद्या को साधु के हवाले किया, साधु के चेहरे पर तेज चमक आई। उसने आद्या की बाँह में रक्षा सूत्र बांधना चाहा। निशा ने झट से आद्या को अपनी गोद में ले लिया।

साधु की चमक धीमी पड़ने लगी।

सनी ने डर और आश्चर्य से निशा की ओर देखा— उसकी आँखें अब लाल हो चुकी थीं।

निशा गुस्से से कांपते हुए बोली, "कहा था, आद्या को मेरे पास लेकर आओ!" फिर तेज़ी से आद्या को सनी को थमाकर साधु के पास पहुंची। दोनों हाथों से साधु को उठाकर हवा में लटका दिया। आवाज़ में ताना था, "मेरी बेटी पर नजर कैसे रखी तूने?"

साधु भस्म जलाने लगा, लेकिन निशा ने झट से भस्म अपने हाथ में पकड़ लिया और दूसरी तरफ फेंक दिया।

हँसते हुए उसने पलटी मारी और अपनी फूंक से यज्ञ की आग बुझा दी।

यह ताकत देखकर सब सन्न रह गए—सिवाय सनी और आद्या के।

तभी आद्या जोर-जोर से रोने लगी। निशा का ध्यान टूटा और साधु वहां से भाग गया।

निशा बेहोश होकर गिर पड़ी।

सनी अभी भी स्थिति को समझ नहीं पाया था—सब कुछ धुंधला था—निशा का बदलता रूप, साधु, तेज़ घटनाएँ।

वह निशा के हाथ पर उस चिह्न को घूर रहा था—जो अब धीरे-धीरे फीका पड़कर गायब हो चुका था।

सवालों का तूफ़ान उसके दिमाग़ में उठ रहा था— "पहले यह क्यों नहीं देखा? क्या यह मेरी निशा है? इतनी शक्ति कहाँ से आई? अगर नहीं..."

तभी आद्या की मासूम हँसी गूँजी। वह ज़मीन पर बैठी फूलों से खेल रही थी, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

सनी का ध्यान टूटा। आद्या की मुस्कान में कुछ अनकहा रहस्य था।

सनी का दिल उसकी ओर खिंच गया। "क्या ये सब उस बच्ची के कारण हो रहा है?"

सनी ज़मीन पर बैठा रहा, आद्या उसकी गोद में थी। लेकिन उसका मन आद्या के नन्हे हाथों को पकड़ने से भी हिचक रहा था।

उसकी निगाह निशा के निस्तेज चेहरे पर टिकी थी, जहाँ क्रोध की जगह शांति थी।

तभी हल्की आहट से निशा की पलकें फड़कीं।

"निशा!" सनी जल्दी से उसके पास पहुंचा।

"निशा, सुनो... मैं... मैं..." उसकी आवाज़ काँप रही थी।

सनी हाथ जोड़कर बोला, "मैं... माफ़ी चाहता हूँ... मेरी वजह से..."

निशा ने अधमुंदी आँखों से उसे देखा और धीरे बोली, "क्या कह रहे हो? क्या हुआ? आद्या... आद्या कहाँ है?"

घबराकर उठने लगी। सनी ने सहारा दिया।

उसने आद्या को देखा, बाहों में भर लिया—माँ का डर और सुकून दोनों उसकी आँखों में थे।

फिर इधर-उधर देखते हुए धीमे स्वर में बोली, "जानू, हम यहाँ क्या कर रहे हैं? ये जगह कैसी है?"

सनी चौंका—निशा कुछ भी याद नहीं कर पा रही थी।

"पहले घर चलते हैं," सनी ने खुद को सँभालते हुए कहा, आद्या को गोद से उठाकर बाहर निकला।

लेकिन जैसे ही वे गुफा से बाहर आए, चारों तरफ़ नाग मानव खड़े थे।

उनकी आँखों में क्रोध नहीं, पर एक गहरा, रहस्यमयी नज़ारा था जो सीधे निशा पर टिका था।

....

1. निशा के हाथ पर उभरने वाला रहस्यमयी मानव चिह्न उसकी असली पहचान और ताकत के बारे में क्या राज छुपाए हुए है?

2. क्या सनी निशा की बदलती शख्सियत और नागलोक से जुड़ी इस खतरे को समझ पायेगा, या उनका परिवार बिखर जाएगा?

3. आद्या की मासूमियत के पीछे छुपा वह कौन सा अनजाना राज है, जो उनके दुश्मनों को हर कीमत पर खत्म करना चाहता है?

आगे जानने के लिए पढ़िए "विषैला इश्क"।