(आद्या अपने कमरे में खुश थी, लेकिन अचानक रूचिका—या उसका रूप धारण किए नाग—उसे घूरता दिखाई दिया। उसकी नागगंध से आद्या सतर्क हो गई और हथेली पर नागचिह्न चमक उठा। अचानक रूचिका ने नाग का रूप धारण किया और भाग गई। आद्या के भीतर जिज्ञासा, गुस्सा और डर का तूफान उठ गया। पुराने बरगद के पास आद्या ने नागों की सभा में जाना, जहाँ वृद्ध नाग ने बताया कि रूचिका गलती से नागधरा लोक में चली गई थी और उसे मृत्युदंड का सामना करना पड़ा। आद्या को समझ आया कि रूचिका जीवित है, लेकिन नागधरा लोक रहस्यों और खतरों से भरा है, और उसका रहस्य अभी अनसुलझा है। अब आगे)
निशा का डर
"नागधरा कहाँ है?"आद्या की आँखों में जैसे लावा उबल रहा था। उसकी साँसें गर्म धुएँ सी निकल रही थीं।" मैंने पूछा, नागधरा कहाँ है?" उसकी आवाज़ कमरे में गूँज उठी।
एक वृद्ध नाग आगे बढ़ा। उसका स्वर संयत था, पर आँखों में डर छिपा नहीं था— "आप एक मानव हैं, नाग रक्षिका। नागधरा आपके लिए नहीं है... वहाँ जाना आपके लिए अनुचित होगा।"इतना कहकर वह पीछे हटा। फिर एक-एक कर सभी नाग मानव वहाँ से हटने लगे।
आद्या ने पुकारा— "रुको! जवाब दो!" पर कोई नहीं रुका।
एक सन्नाटा पीछे छोड़ गए — ऐसा सन्नाटा, जिसमें दोस्ती की चीखें और विश्वास का दम घुट रहा था। वह भारी कदमों से वापस अपने कमरे में लौटी।
"रूचिका शत्रु थी नागलोक की। और भी शत्रु हैं, जिन्हें..." वो नाग की आवाज़ फिर से कानों में गूंजी।"और भी शत्रु..."वो सोचने लगी, "मतलब कोई और भी है जो नागधरा गया था। कौन हो सकता है?"वह वहीं बिस्तर पर बैठ गई, अपनी उंगलियों को देखती रही — जहाँ नागचिह्न हल्की गर्माहट से चमक रहा था। "क्या रूचिका अकेली नहीं थी?"
"क्या कोई और भी था, जिसे वो छिपा रही थी?"
"या शायद... जो रूचिका को फँसाने गया था?"
तभी हवा में सिहरन सी हुई। एक नाग प्रकट हुआ। उसकी आँखों में चिंता थी। "नाग रक्षिका!" उसने झुककर कहा, "नागधरा का विचार त्याग दीजिए। वहाँ आप सुरक्षित नहीं हैं।" आद्या का चेहरा लाल हो गया। वह एक झटके में उठ खड़ी हुई। उसकी आवाज़ काँप रही थी, पर उसमें आग थी—"मेरी दोस्त को मौत के मुँह में जाने दिया गया... और तुम लोग चुप रहे? तुम लोग उसका साथ नहीं दे सके, और अब मुझसे आशा रखते हो कि मैं तुम्हारे लोक की रक्षा करूँ? शर्म करो!"
वह आगे बढ़ी और फुफकारते स्वर में कहा—"चले जाओ यहाँ से। और अगली बार मुझसे न्याय की बात करना, तब जब तुम्हारे हाथ निर्दोषों के खून से धुले न हों।"वह नाग सिर झुकाकर अदृश्य हो गया। कमरे में फिर से सन्नाटा छा गया। लेकिन इस बार वो सन्नाटा टूटा नहीं... बल्कि अंदर ही अंदर आद्या के भीतर एक युध्द की शुरुआत कर चुका था। आद्या अपने बिस्तर पर चुपचाप लेटी थी। आँखें छत पर टिके हुए, पर मन नागधरा की गलियों में भटक रहा था। तभी कमरे में स्नेहा आई— "सब ठीक है?" सुरभि भी पास आई, थोड़ी चिंतित सी—"शायद परीक्षा की डेट शीट आने वाली है... इसलिए नर्वस है। है न?" आद्या ने बस हल्के से सिर हिला दिया। उसके होठ काँपे, मानो कुछ कहना चाहती हो—but the truth was burning her from inside.
उसने चुपचाप आँखें मूँद लीं... लेकिन उसका मन कहीं और जा चुका था।
....
उसी वक्त — वनधरा नागलोक मेंएक भव्य सभा चल रही थी। झील के किनारे, नीले धुएँ से घिरी एक विशाल गुफा में नाग रानी का क्रोध गूंज रहा था। "क्या ज़रूरत थी नाग रक्षिका को नागधरा लोक के बारे में बताने की?" उसकी आवाज़ बिजली सी कड़की।
एक दुबला-पतला नाग सेवक काँपते हुए बोला— "महारानी... उन्होंने पूछा था... हम—
""अगर वो कहेगी ‘मुझे डस लो’, तो डस लोगे?" नाग रानी ने तिलमिलाकर कहा। वह धीरे-धीरे सभा के बीचोंबीच आई और फुफकारते स्वर में बोली—"मैंने तुम्हें वहाँ भेजा था ताकि तुम उसकी रक्षा करो, उसके मन को शांत रखो, उसे सहज बनाओ नाग मानवों के साथ। लेकिन तुमने क्या किया? उसे नागधरा की दहलीज़ तक पहुँचा दिया! अब कोई नाग रक्षिका के पास नहीं जाएगा!"
सभा में सन्नाटा छा गया। कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद नाग रानी का स्वर ठंडा लेकिन खतरनाक हो गया—"अब मैं ही उसका स्मरण मिटा दूंगी... ताकि वह नागधरा जाने का प्रयास तक न कर सके। मैं उसके स्वप्नों से, विचारों से, चेतना से — नागधरा को नष्ट कर दूँगी।" सभा में कई नाग एक-दूसरे को देखने लगे—कुछ डर से, कुछ आश्चर्य से... और कुछ ऐसे भी थे जिनकी आँखों में विद्रोह की हल्की सी चिंगारी झलकने लगी थी।
....
संध्या ढल रही थी। बाहर घना जंगल चुपचाप साँसें ले रहा था। निशा अपने कमरे में बैठी थी, गोद में खुली किताब रखी थी, लेकिन उसका मन शब्दों से कहीं दूर भटक रहा था।
सनी पास आकर बैठा। "क्या हुआ, जानू?" उसने धीमे से पूछा, "क्या सोच रही हो?"
निशा ने गहरी साँस ली। "पता नहीं..." उसकी आवाज़ काँपी। "बहुत बेचैनी हो रही है। जैसे... आद्या के साथ कुछ होने वाला है। या शायद… हमें उसके पास होना चाहिए था।"
सनी की आँखों में गंभीरता उतर आई। "तो... क्या करें? उसे यहाँ ले आएं?" निशा ने झट से ‘नहीं’ में सिर हिलाया। उसकी आँखों में डर साफ़ दिख रहा था— "वो लोग मेरी मासूम बेटी को नाग रक्षिका बना देंगे, सनी। उसका बचपन... उसकी हँसी… सब छिन जाएगा।"
ठीक उसी वक्त अतुल्य कमरे में आया। उसके चेहरे पर उलझन थी, पर बात कहने की हिम्मत भी।
"क्यों न अंकल अब रिटायर हो जाएँ... या आंटी ही मेरे साथ शहर में चलें? जंगल अब हमें निगलने लगा है।"
निशा ने उसकी बात काटते हुए कहा—"ऐसा नहीं है कि हमने कोशिश नहीं की, बेटा। लेकिन जब भी इस जंगल को छोड़ने की कोशिश की… कोई न कोई अनहोनी घटती है। एक बार तो हमारी गाड़ी सीधे घाटी में गिरने से बाल-बाल बची थी। और एक बार... सनी की तबीयत ऐसी बिगड़ी कि डॉक्टर भी जवाब दे बैठे थे।"
सनी ने गहरी आवाज़ में कहा—"यह जंगल हमें नहीं छोड़ना चाहता। और शायद... अब आद्या को भी नहीं।"
एक क्षण के लिए कमरे में एक भारी सन्नाटा छा गया। फिर खिड़की के बाहर से एक अजीब सी सरसराहट की आवाज़ आई... जैसे पत्तों के पीछे कोई सुन रहा हो। निशा ने धीरे से कहा— "मुझे डर है, सनी... कहीं ये बेचैनी सिर्फ माँ की आशंका न हो... कहीं ये जंगल कुछ कह रहा हो, जिसे हम समझ नहीं पा रहे।"रात गहराती जा रही थी। जंगल की हरियाली अब स्याही में घुलने लगी थी।
Forest Staff House के भीतर सब कुछ शांत था… लेकिन निशा का मन बेचैन। वह करवट बदलते-बदलते आखिरकार सो गई......लेकिन जल्द ही उसकी साँसें तेज़ होने लगीं।
पसीने की बूँदें उसके माथे पर चमक उठीं। निशा खुद को एक अजीब-सी जगह पर खड़ी पाती है। चारों ओर अंधकार है, पर कहीं दूर एक गहरी नीली रोशनी टिमटिमा रही है। वह रोशनी धीरे-धीरे आकार लेने लगती है... आद्या...!आद्या एक विशाल पत्थर के द्वार पर खड़ी है, जो नाग के फनों की तरह मुड़ा हुआ है। द्वार के ऊपर लिखा है —"नागधरा" — एक लहू जैसी लाल चमक में। निशा चीखती है — "आद्या! मत जाओ! रुक जाओ!" पर आद्या उसकी आवाज़ सुन नहीं पा रही। तभी पीछे से एक लंबी काली परछाई आद्या की ओर बढ़ती है…एक लंबा नागमानव, जिसकी आँखें आग की तरह जल रही थीं। वह आद्या के कंधे पर हाथ रखता है — और उसी पल, उसका स्पर्श आद्या को तड़पाने लगता है। आद्या की चीख गूंजती है — "माँ!"
निशा दौड़ती है, लेकिन जैसे उसके पैरों में ज़ंजीरें हों… वह पहुँच नहीं पा रही… और वह नागमानव आद्या को उस दरवाज़े के पार धकेल देता है। दरवाज़ा बन्द हो जाता है। निशा ने चीखते हुए आँखें खोल दीं — "आद्या!" वह हाँफ रही थी, उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
सनी घबराकर उठा — "क्या हुआ? क्या सपना देखा?" निशा ने काँपते हुए कहा — "वो… वो नागधरा के दरवाज़े पर थी… और कोई... कोई उसे वहाँ खींच रहा था, सनी! मैं उसे बचा नहीं पाई…"सनी ने उसे कंधे से थामा — "ये बस सपना है, निशा।" निशा ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा —"नहीं सनी, ये सपना नहीं था… ये चेतावनी थी। हमें कुछ करना होगा। वरना… आद्या खो जाएगी।"
१. क्या उस डरावने सपने में छिपा है कोई भविष्य का संकेत?
२. क्या आद्या कभी नागधरा तक पहुँच पाएगी?क्या वह रूचिका की मौत के पीछे की परतें खोल पाएगी... या खुद को ही खो देगी?और
३. अगर उसकी स्मृति ही मिटा दी गई... तो क्या वह जान पाएगी कि वह कौन है?
नागधरा... एक ऐसा लोक, जहाँ हर उत्तर एक और रहस्य बन जाता है।
जानने के लिए पढ़ते रहिए — "विषैला इश्क़"।
क्योंकि मोह भी एक ज़हर है... और प्यार कभी-कभी मौत से ज़्यादा खतरनाक।