भाग:15
रचना:बाबुल हक़ अंसारी
“सच की लौ – मोहब्बत का अमर गीत”
सर्वर रूम अब राख में बदल चुका था।
छत से टपकते हुए जलते तार,
दीवारों पर धुएँ की काली परत,
और हर कोने में मौत की गंध घुली हुई थी।
आयशा घुटनों के बल ज़मीन पर बैठी थी।
उसकी बाहों में अयान की निढाल देह थी,
चेहरे पर आँसू, पर दिल में गर्व —
क्योंकि जिस आदमी को वो चाहती थी,
उसने मोहब्बत और सच्चाई दोनों को बचाने के लिए
अपनी जान कुर्बान कर दी थी।
बाहर की दुनिया में तूफ़ान उठ चुका था।
“Footage Broadcasted Worldwide” का असर अब सामने था।
टीवी स्क्रीन, मोबाइल फ़ोन, सोशल मीडिया —
हर जगह एक ही सच गूंज रहा था।
हुड वाले की साज़िश, उसकी करतूतें,
और उसने जो अंधेरा रचा था,
सबका पर्दाफाश हो चुका था।
लोग सड़कों पर उतर आए,
इंसाफ़ की माँग गूंजने लगी।
वो सच जिसे दबाया गया था,
अब पूरे देश की आवाज़ बन गया था।
लेकिन सर्वर रूम में…
सिर्फ़ सन्नाटा और राख बची थी।
आयशा काँपते हाथों से अयान का माथा सहला रही थी।
उसके होंठ काँपते हुए बोले —
“तुमने वादा किया था… कि कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ोगे…
तो अब क्यों जा रहे हो?”
उसकी आँखों से आँसू टपके,
अयान के जले हुए चेहरे पर गिरे,
मानो बुझती लौ पर आखिरी बूंदें।
अचानक बाहर से आवाज़ें आईं।
“सर्च टीम! यहाँ कोई ज़िंदा है क्या?”
दरवाज़ा तोड़ा गया।
दमकल और सैनिक अंदर घुसे।
उन्होंने आयशा को देखा —
आग की राख में बैठी,
अपने प्यार की लाश को सीने से चिपकाए।
एक सैनिक ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा।
“मैडम… हमें जाना होगा।
ये जगह अब और सुरक्षित नहीं है।”
आयशा ने सिर उठाया।
उसकी आँखों में आँसू नहीं,
बल्कि पिघला हुआ लोहा था।
उसने धीमे से कहा —
“सुरक्षित तो तब होगा…
जब इस कुर्बानी को दुनिया भुलाएगी नहीं।”
बाहर जब उसे स्ट्रेचर पर लाया गया,
तो भीड़ उमड़ पड़ी।
हर हाथ में पोस्टर थे —
“Justice for Truth”
“आर्यन और अयान – अमर”
“हमारी लड़ाई जारी रहेगी”
आयशा ने भीड़ की तरफ देखा।
उसने महसूस किया —
अयान चला गया है,
लेकिन उसकी मोहब्बत और उसका सच
अब हर धड़कन में ज़िंदा है।
उस पल उसे एहसास हुआ कि
मोहब्बत जब सच के साथ मिल जाती है,
तो वो सिर्फ़ दो दिलों की कहानी नहीं रहती,
बल्कि पूरी कौम का गीत बन जाती है।
उस रात, टीवी चैनलों पर,
हर न्यूज़ रिपोर्टर सिर्फ़ एक ही नाम दोहरा रहा था।
“आर्यन – जिसने अपने दोस्त की मोहब्बत को अधूरा नहीं रहने दिया।”
“अयान – जिसने अपनी जान देकर सच को बचा लिया।”
और उनके साथ एक लड़की का नाम —
“आयशा – जिसने आँसुओं में भी हिम्मत ढूंढी,
और इस दास्तान की गवाह बनी।”
कुछ दिनों बाद…
शहर के बीचोंबीच एक स्मारक खड़ा हुआ।
काले संगमरमर पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था —
“यहाँ अमर हैं वो लोग
जिन्होंने सच्चाई और मोहब्बत के लिए
अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया।”
स्मारक के नीचे खिले फूलों के बीच
अयान और आर्यन की तस्वीरें थीं,
और उनके ठीक बीच आयशा की तस्वीर।
क्योंकि ये कहानी सिर्फ़ दो आदमियों की नहीं,
बल्कि उस औरत की भी थी
जिसने उनकी मोहब्बत और क़ुर्बानी को अमर बना दिया।
रात को अकेले,
आयशा अक्सर आसमान की तरफ देखती।
तारों में उसे अयान की मुस्कान दिखती,
और हवा में आर्यन की आवाज़ गूंजती —
“भाई… मोहब्बत कभी अधूरी नहीं रहती।”
उसकी आँखों से आँसू बहते,
लेकिन दिल कहता —
“सिसकती वफ़ा अब सिसकी नहीं रही…
ये अब मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान
है।”
और इस दास्तान ने साबित कर दिया कि
सच को मारने वाले भले मर जाते हैं,
मगर सच और मोहब्बत —
हमेशा ज़िंदा रहते हैं।
*****(समाप्त) *****