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🐍 नागमणि – भाग 5
✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी, अजनाला (अमृतसर, पंजाब)
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🌌 प्रस्तावना
नागमणि की गाथा अब तक रहस्य और रोमांच से भरपूर रही है। भाग 4 में आपने जाना कि नागमणि केवल शक्ति का रत्न नहीं, बल्कि सृष्टि के संतुलन का आधार है। अर्जुन और चंद्रलेखा ने कई कठिनाइयों से गुजरते हुए अब उस स्थान तक पहुँचने का निश्चय किया है जहाँ नागमणि का अंतिम रहस्य छिपा है।
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🌑 पहला दृश्य – किले की ओर
रात का अँधेरा था। आसमान में बादल गड़गड़ा रहे थे, बीच-बीच में बिजली की चमक से जंगल रोशन हो जाता। हवाएँ इतनी तेज़ चल रही थीं मानो किसी बड़े तूफ़ान की आहट हो।
अर्जुन और चंद्रलेखा उस प्राचीन किले की ओर बढ़ रहे थे जिसके बारे में कहा जाता था कि वहाँ सदियों से नागमणि सुरक्षित है।
अर्जुन (सावधानी से):
"लेखा, इस किले के बारे में सुना है कि यहाँ कदम-कदम पर मौत बिछी रहती है। हमें बहुत संभलकर आगे बढ़ना होगा।"
चंद्रलेखा (मुस्कराकर):
"अर्जुन, अगर मन में सच्चाई है तो भय कैसा? नागमणि हमें अवश्य मिलेगी, क्योंकि हमारा उद्देश्य स्वार्थ नहीं, लोककल्याण है।"
उनकी बातें खत्म हुई ही थीं कि अचानक चारों तरफ़ से अजीब सी फुफकार सुनाई दी। जैसे सैकड़ों साँप एक साथ सरकते हुए किले के चारों ओर घूम रहे हों।
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🐍 दूसरा दृश्य – रहस्यमयी प्रहरी
किले के मुख्य द्वार पर पहुँचते ही उन्होंने देखा – एक विशाल नागमूर्ति धीरे-धीरे हिलने लगी। और उसी में से प्रकट हुआ एक लंबा, काले वस्त्रों में लिपटा पुरुष। उसकी आँखें अंगारों की तरह चमक रही थीं।
पुरुष (गंभीर स्वर में):
"तो तुम ही हो जो नागमणि पाने आए हो? सदियों से लोग कोशिश करते आए हैं, लेकिन कोई लौटकर नहीं गया।"
अर्जुन (तलवार निकालते हुए):
"तुम कौन हो?"
पुरुष (गूँजती आवाज में):
"मैं हूँ विभीषण नाग – नागवंश का श्रापित प्रहरी। कभी मैं भी इंसान था। पर नागमणि को पाने की लालसा में श्रापित होकर नागरूप में कैद हो गया। अब मेरा जीवन तभी मुक्त होगा जब कोई त्यागी आत्मा नागमणि के सामने अपना जीवन अर्पित करेगी।"
चंद्रलेखा (चौंकते हुए):
"तो नागमणि पाने की शर्त बलिदान है?"
विभीषण नाग:
"हाँ, यह रत्न केवल त्याग के भाव से ही प्राप्त हो सकता है। एक को अपना जीवन त्यागना होगा, तभी दूसरे को नागमणि मिलेगी।"
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🔥 तीसरा दृश्य – त्याग की कसौटी
किले के अंदर एक विशाल सभागार था। वहाँ धरती पर प्राचीन नागचिह्न बने हुए थे। जैसे ही अर्जुन और चंद्रलेखा वहाँ पहुँचे, वे चिह्न चमक उठे। दीवारों से दिव्य मंत्रोच्चारण सुनाई देने लगा।
अर्जुन (दृढ़ स्वर में):
"लेखा, यह बलिदान मैं दूँगा। नागमणि को पाना जरूरी है और अगर मेरी जान देकर संसार की रक्षा होती है, तो मैं तैयार हूँ।"
चंद्रलेखा (आँखों में आँसू लिए):
"नहीं अर्जुन! मैं साध्वी हूँ। मेरा जीवन तपस्या और सेवा के लिए था। तुम्हारा जीवन अमूल्य है। तुम ही इस संसार के रक्षक हो। बलिदान मेरा होगा।"
दोनों एक-दूसरे के सामने खड़े थे। उनके बीच केवल प्रेम नहीं, बल्कि त्याग की होड़ थी।
अचानक नागमणि अपने आप आसमान में उठ गई और उससे तेज़ प्रकाश फैल गया।
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🌟 चौथा दृश्य – नागमणि की दिव्य वाणी
तेज़ रोशनी में एक दिव्य आवाज गूँजी—
"सच्चा त्याग वही है जिसमें मनुष्य स्वयं को भूलकर दूसरों के लिए जीता है। नागमणि अब बलिदान नहीं, बल्कि प्रेम और निस्वार्थ भाव को पहचानती है। तुम दोनों ने अपने जीवन से यह सिद्ध कर दिया है।"
विभीषण नाग ने हाथ जोड़ लिए। उसका श्राप समाप्त हो गया और वह मनुष्य रूप में लौट आया। उसकी आँखों में आँसू थे।
विभीषण नाग (कंपित स्वर में):
"अर्जुन... चंद्रलेखा... तुम दोनों ने वह कर दिखाया जो सदियों से कोई नहीं कर पाया। अब नागमणि तुम्हारी है। पर याद रखो, यह रत्न शक्ति का नहीं, जिम्मेदारी का प्रतीक है। इसका उपयोग सदा मानवता और धर्म की रक्षा के लिए करना।"
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🌅 पाँचवाँ दृश्य – नई सुबह
किले के ऊपर से बादल छँट गए। पहली बार सदियों बाद वहाँ सूरज की किरणें पड़ीं। नागमणि का प्रकाश सूर्य से मिलकर और भी अद्भुत हो गया।
अर्जुन और चंद्रलेखा ने नागमणि को हाथ में उठाया। वह अब किसी लालच का साधन नहीं, बल्कि त्याग और प्रेम का प्रतीक बन चुकी थी।
दोनों ने प्रण किया—
"जब तक जीवन है, नागमणि की शक्ति का उपयोग केवल लोककल्याण और निर्दोषों की रक्षा के लिए करेंगे।"
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✨ उपसंहार
नागमणि की यात्रा का यह अध्याय समाप्त हुआ, पर यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इतिहास गवाह है कि जहाँ शक्ति है, वहाँ लालच भी जन्म लेता है। आने वाले समय में कोई और दुष्ट आत्मा नागमणि पर नज़र डाल सकती है।
लेकिन इस बार नागमणि के पास दो ऐसे रक्षक थे जिनके हृदय में त्याग और प्रेम की लौ प्रज्वलित थी।
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📜 परमाणपत्र
मौलिकता प्रमाणपत्र (Parmanpatra)
मैं, विजय शर्मा एरी, अजनाला, अमृतसर, पंजाब – 143102, यह प्रमाणित करता हूँ कि प्रस्तुत कथा “नागमणि – भाग 5” मेरी स्वयं की मौलिक रचना है।
यह पूरी तरह से मेरी कल्पना, परिश्रम और सृजनात्मक लेखन का परिणाम है।
कथा का किसी अन्य रचना, व्यक्ति अथवा घटना से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है।
बिना मेरी अनुमति के इस रचना की नकल, प्रकाशन या किसी भी रूप में पुनः उपयोग वर्जित है।
✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी
📍 स्थान – अजनाला, अमृतसर (पंजाब)
📅 दिनांक – 21 अगस्त 2025