नागमणि – भाग 10✍️ विजय शर्मा एरीप्रस्तावनाप्यारे पाठकों, नागमणि की कथा ने अब तक कई रहस्य और उतार–चढ़ाव देखे हैं। भैरवनाथ का अंत हो चुका था, गाँव फिर से चैन की साँस लेने लगा। परंतु जैसा कि महात्मा साधु ने कहा था – नागमणि की असली परीक्षा अभी बाकी है– यही बात अब सत्य होने वाली है। भाग 10 में कहानी नए मोड़ पर पहुँचती है, जहाँ अर्जुन और चंपा को पहले से भी भयानक संकटों का सामना करना पड़ता है।भाग 10 : असली तूफ़ान१. शांति के दिनभैरवनाथ के नाश के बाद गाँव में उल्लास था। मंदिर में नागमणि स्थापित कर दी गई थी। अर्जुन और चंपा को लोग देवता के समान पूजने लगे।पंडित रामकिशन ने कहाअब इस गाँव पर क नागमणि हमें सदैव सुरक्षित रखेगी।लेकिन अर्जुन के दिल में साधु की चेतावनी गूँज रही थी – "असली तूफ़ान अभी बाकी है…"२. रहस्यमयी संकेतएक रात अर्जुन ने देखा कि नागमणि से नीली रोशनी निकल रही है। वह रोशनी आसमान की ओर उठी और अचानक बादलों में गायब हो गई।अर्जुन ने सोचा –"यह सामान्य नहीं है। लगता है कोई और शक्ति नागमणि की तलाश में है।"३. अजनबी यात्रीअगले दिन गाँव में एक अजनबी पहुँचा। लंबा कद, सफेद वस्त्र और गहरी आँखें। उसने अपना नाम बताया – "अग्निदेव साधक"।गाँववालों ने उसका स्वागत किया।उसने अर्जुन से अकेले में कहा –"नागमणि केवल नागवंश की रक्षा नहीं करती। यह ब्रह्मांड की सात शक्तियों में से एक है। इसे पाने के लिए दूर–दराज़ की दुष्ट आत्माएँ जाग चुकी हैं।"४. नया खतरा – कालसर्प साधकसाधक ने बताया –"दक्षिण दिशा में कालसर्प साधक नामक तांत्रिक जाग चुका है। उसकी शक्ति भैरवनाथ से कई गुना अधिक है। यदि नागमणि उसके हाथ लगी तो सम्पूर्ण पृथ्वी अंधकार में डूब जाएगी।"अर्जुन चौंक गया –"तो क्या हमें उससे टकराना होगा?"साधक ने उत्तर दिया –"हाँ, और यह युद्ध पहले से कठिन होगा।"५. गाँव में अनहोनीधीरे–धीरे गाँव में अजीब घटनाएँ शुरू हो गईं। कुएँ का पानी सूखने लगा, पेड़ मुरझाने लगे। रात को बच्चों के सपनों में काले नाग आते।लोग डरकर बोले –"ये सब कालसर्प साधक की काली माया है।"६. अर्जुन का साहसअर्जुन ने गाँववालों को भरोसा दिलाया –"डरिए मत। हम सब मिलकर इस संकट का सामना करेंगे।"चंपा ने भी कहा –"जब तक हम जीवित हैं, नागमणि की ओर कोई बुरी ताक़त आँख उठाकर नहीं देख सकती।"७. कालसर्प साधक का प्रकट होनापूर्णिमा की रात जंगल में अजीब हलचल हुई। धुंध से ढका आसमान, पेड़ों से निकलती काली लपटें। और फिर प्रकट हुआ – कालसर्प साधक। उसके चारों ओर विषैले साँप रेंग रहे थे। उसकी आवाज़ गूँजी –"अर्जुन! नागमणि मुझे दे दे, वरना इस गाँव को ज़मीन से मिटा दूँगा।"८. भयंकर युद्ध की शुरुआतअर्जुन ने तलवार उठाई और बोला –"तेरे जैसे पापी के लिए नागमणि कभी नहीं होगी।"कालसर्प साधक ने मंत्र पढ़े और आकाश से अग्नि वर्षा होने लगी। चंपा ने नागिन रूप धारण कर उस अग्नि को रोकने का प्रयास किया।गाँववाले भी ढोल–नगाड़े बजाकर देवी का नाम जपने लगे।९. अग्निदेव साधक की मददअचानक अग्निदेव साधक प्रकट हुआ। उसने अपने त्रिशूल से अग्नि की वर्षा रोक दी और अर्जुन से कहा –"याद रखो, नागमणि की असली शक्ति त्याग और सत्य में है।"अर्जुन ने आँखें बंद कीं, मन ही मन प्रार्थना की और नागमणि की ओर हाथ बढ़ाया।१०. नागमणि का चमत्कारनागमणि से सुनहरी रोशनी फूटी। वह रोशनी अर्जुन के शरीर में समा गई। उसकी तलवार चमक उठी।अर्जुन ने पूरी ताक़त से वार किया और कालसर्प साधक का नागमंडल टूट गया।कालसर्प साधक तड़पते हुए बोला –"नहीं… मेरी तपस्या व्यर्थ…!"और राख बनकर बिखर गया।११. गाँव में पुनः शांतियुद्ध के बाद गाँव में शांति लौट आई। कुएँ का पानी फिर से भर गया, पेड़ों में हरियाली लौट आई।गाँववाले अर्जुन और चंपा के चरणों में झुक गए।पंडित रामकिशन बोले –"आज यह सिद्ध हो गया कि सच्चाई और साहस हमेशा जीतते हैं।"१२. साधक की विदाईअग्निदेव साधक ने मुस्कराकर कहा –"अर्जुन, तूने केवल गाँव ही नहीं, पूरी धरती को अंधकार से बचाया है। परंतु याद रख, नागमणि का सफ़र यहीं समाप्त नहीं हुआ। इसकी रक्षा तब तक करनी होगी जब तक समय स्वयं इसकी परीक्षा न ले ले।"यह कहकर वह प्रकाश की किरण बनकर विलीन हो गया।१३. अर्जुन का प्रणअर्जुन ने नागमणि को मंदिर में रखते हुए प्रण लिया –"जब तक मेरे प्राण हैं, नागमणि की रक्षा करता रहूँगा। चाहे कितने भी तूफ़ान आएँ, सत्य की मशाल कभी बुझने नहीं दूँगा।"चंपा ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा –"और मैं हर जन्म में तेरे साथ रहूँगी, अर्जुन।"उपसंहारइस तरह कालसर्प साधक का अंत हुआ और गाँव में फिर से सुख–शांति का वातावरण लौट आया। परंतु यह भी सच था कि नागमणि की असली यात्रा अभी अधूरी थी। क्योंकि साधक के शब्द गूँज रहे थे।