पहली मुलाकात - अध्याय 1 in Hindi Love Stories by Gaurav Pathak books and stories PDF | पहली मुलाकात - अध्याय 1

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पहली मुलाकात - अध्याय 1

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अध्याय 1 – पहली मुलाकात

कॉलेज का पहला दिन, नए students के लिए excitement और nervousness दोनों लेकर आया था। पूरे कैंपस में हलचल थी—नई किताबों की खुशबू, नए चेहरों की भीड़ और भविष्य के सपनों की आहट।

इन्हीं नए चेहरों के बीच एक चेहरा और था—मुकुंद का।
मुकुंद का जीवन आसान नहीं था। गाँव में गरीबी और संघर्षों के बीच उसने पढ़ाई की थी। पिता किसान थे, जिनकी कमाई बमुश्किल घर का खर्च चला पाती थी। लेकिन मुकुंद के सपने बड़े थे। उसने कड़ी मेहनत से entrance exam पास किया और इस नामी कॉलेज में दाखिला पाया।

कॉलेज का विशाल गेट उसके लिए किसी मंदिर के द्वार से कम नहीं था। भीतर कदम रखते ही उसे अपने संघर्ष का फल महसूस हुआ। लेकिन उसके मन में एक हल्की चिंता भी थी—"क्या मैं यहाँ टिक पाऊँगा?"


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हॉस्टल का कमरा 705 मुकुंद को allot हुआ। कमरे में पहुँचते ही उसे नया roommate मिला—सुदीप।
सुदीप का अंदाज़ बिल्कुल अलग था—ब्रांडेड कपड़े, महंगी घड़ी और आत्मविश्वास से भरी हुई बातें। वह एक बड़े कारोबारी परिवार से था, जिसे पैसों की कोई चिंता नहीं थी।

मुकुंद ने विनम्रता से अभिवादन किया,
“नमस्ते, मैं मुकुंद… आपका नया roommate।”

सुदीप ने मुस्कुराकर हाथ मिलाया,
“हाय, I’m Sudeep. Welcome, भाई! आराम से रहना, tension मत लेना।”

धीरे-धीरे कमरे में बातचीत शुरू हुई। सुदीप खुलकर बोल रहा था—अपने शौक, दोस्तों और हॉस्टल की सुविधाओं के बारे में। वहीं, मुकुंद चुपचाप सुन रहा था। उसे पहली बार महसूस हुआ कि उसका और सुदीप का जीवन कितना अलग है।

सुदीप ने अपने बैग से ढेर सारी चीजें निकालीं—नए कपड़े, महंगे हेडफोन, और सबसे खास, ढेर सारा snacks और packed food।
उसने मज़ाक में कहा—
“भाई, यहाँ का mess खाना तो बिलकुल torture है। Luckily, मेरे पास सब कुछ ready है।”

मुकुंद हल्के से मुस्कुराया। गाँव से लाए गए उसके डब्बे में सिर्फ़ माँ के हाथ की बनाई रोटियाँ और अचार था। उसने सोचा—"शायद मैं इस दुनिया में अलग पड़ जाऊँगा…"


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शाम को दोनों कैंपस घूमने निकले। चारों ओर भीड़, नए students के groups और cafeteria की चहल-पहल थी। सुदीप को यहाँ की facilities और crowd बहुत पसंद आई, जबकि मुकुंद भीड़ में थोड़ा असहज महसूस कर रहा था।

लेकिन तभी, लाइब्रेरी के सामने अचानक एक लड़की टकरा गई। उसकी किताबें ज़मीन पर बिखर गईं।
मुकुंद तुरंत झुककर किताबें उठाने लगा। लड़की ने मुस्कुराकर कहा,
“Thank you… मैं आन्या हूँ।”

मुकुंद ने हल्की झिझक के साथ जवाब दिया,
“मैं… मुकुंद।”

सुदीप ने मज़ाक में फुसफुसाया—
“भाई, पहला दिन और पहली मुलाक़ात… interesting लग रहा है!”

आन्या की मुस्कान में एक सादगी थी, जिसने मुकुंद को अजीब-सी राहत दी। जैसे अनजाने में ही, उस हलचल भरे दिन को कोई खास रंग मिल गया हो। आन्या से मिलने के बाद मुकुंद का सारा दिनखूबसूरत लम्हे की तरह बीता ।


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उस रात मुकुंद बिस्तर पर लेटे-लेटे देर तक सोचता रहा।
नया कॉलेज, नया माहौल, नया roommate और अब एक नई पहचान—क्या ये सब उसकी ज़िंदगी बदल देंगे?

उसने खुद से वादा किया—
“संघर्ष चाहे जितना भी हो, मैं अपने सपनों को पूरा करूँगा। यह सफ़र आसान नहीं होगा… लेकिन मैं हार नहीं मानूँगा।”

खिड़की से आती हल्की हवा और दूर हॉस्टल की हलचल के बीच मुकुंद को लगा—उसकी असली यात्रा अब शुरू हुई है।


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