अध्याय 7 – चुनौती का आरंभ
कॉलेज का माहौल उस सुबह कुछ अलग था। पूरे कैंपस में हल्की-सी बेचैनी और उत्साह का मिश्रण तैर रहा था। नोटिस बोर्ड पर बड़े अक्षरों में लिखा था—“नेशनल साइंस कॉम्पिटिशन के लिए चयन प्रक्रिया इस सप्ताह से शुरू होगी।” इस एक लाइन ने न सिर्फ मुकुंद का, बल्कि पूरे कॉलेज के छात्रों का दिल तेज़ कर दिया था। यह वही प्रतियोगिता थी जिसकी जीत न केवल प्रतिष्ठा बल्कि आर्थिक सहारा भी ला सकती थी।
मुकुंद ने नोटिस पढ़ा और उसकी आँखों में चमक आ गई। यह वही मौका था जिसके लिए वह पिछले कई हफ़्तों से दुआ कर रहा था। अगर यह जीत गया तो न सिर्फ़ उसकी फ़ीस की समस्या हल हो जाएगी, बल्कि परिवार पर मंडराते क़र्ज़ का बोझ भी कुछ हल्का हो जाएगा। लेकिन जितना बड़ा यह अवसर था, उतना ही कठिन रास्ता भी।
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लाइब्रेरी में उस दिन असामान्य भीड़ थी। हर कोई तैयारी में जुट चुका था। मोटी-मोटी किताबें, लैपटॉप पर खुले रिसर्च पेपर्स और नोट्स से भरी कॉपियाँ। मुकुंद ने भी अपनी पुरानी डायरी खोली, जिसमें वह पिछले महीनों से नोट्स बना रहा था। उसके लिए यह प्रतियोगिता सिर्फ़ एक event नहीं थी, यह उसके संघर्ष की दिशा बदलने वाली मंज़िल थी।
शाम को जब वह कमरे पर लौटा, तो देखा कि सुदीप पहले से ही laptop खोले बैठा है। स्क्रीन पर किसी प्रोजेक्ट का मॉडल बना हुआ था।
“भाई!” सुदीप ने उत्साह से कहा, “मैंने सोचा है कि हम team बना लेते हैं। तेरा दिमाग़ और मेरी resources—combination perfect रहेगा।”
मुकुंद थोड़ी देर सोच में पड़ गया। प्रतियोगिता individual और team दोनों category में थी। team बनाना आसान भी हो सकता था और कठिन भी। लेकिन सुदीप की आँखों में genuine excitement थी। मुकुंद ने मुस्कुराकर कहा, “ठीक है, हम साथ काम करेंगे।”
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तैयारी शुरू हुई। दिन का हर पल अब किताबों, प्रयोगों और चर्चाओं में गुजरने लगा। सुदीप energy और ideas से भरा रहता। वह market से महँगे उपकरण ले आता, internet पर latest research articles ढूँढ़ता और models बनाने की planning करता। मुकुंद दूसरी ओर पूरी गहराई से concepts में उतरता, theories और calculations को बार-बार परखता। दोनों की working style अलग थी, लेकिन धीरे-धीरे वे एक-दूसरे को balance करने लगे।
कभी-कभी बहस भी होती।
“देख मुकुंद,” सुदीप कहता, “presentation stylish होना चाहिए। Judges को impress करना है।”
मुकुंद शांति से जवाब देता, “लेकिन अगर concept मजबूत नहीं होगा तो stylish दिखाने से क्या होगा?”
ऐसी बहसें कई बार देर रात तक चलतीं, लेकिन हर बार अंत में दोनों हँसकर मामला खत्म कर देते।
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इस सबके बीच आन्या भी उनका support system बन गई। वह library में दोनों को notes लाकर देती, experiments के दौरान observations लिखने में मदद करती, और कभी-कभी सिर्फ़ चुपचाप बैठकर सुनती।
एक दिन जब मुकुंद late night notes बना रहा था, आन्या ने कहा, “तुम दोनों में फर्क है, लेकिन यही तुम्हारी ताक़त है। अगर तुम balance बना पाओ तो कोई रोक नहीं सकता।”
मुकुंद ने उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में sincerity थी। मुकुंद के दिल में कुछ अजीब-सा खिंचाव महसूस हुआ, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। यह समय distractions का नहीं था।
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लेकिन कॉलेज की दुनिया इतनी सहज नहीं थी। कुछ students मुकुंद की progress से चिढ़ने लगे। खासकर अभिषेक नाम का लड़का, जो हमेशा खुद को topper साबित करना चाहता था। उसने एक दिन corridor में ताना मारा,
“गाँव का लड़का national level जीतेगा? चलो अच्छा मज़ाक है।”
सुदीप तमतमा गया, “ज़ुबान संभालकर बात कर।”
मुकुंद ने सुदीप को रोका और शांत स्वर में बोला, “उसे कहने दो। वक्त जवाब देगा।”
लेकिन अंदर ही अंदर यह ताना मुकुंद के दिल में चुभ गया। उसे लगा जैसे उसकी पहचान अभी भी उसके हालात से ही बंधी हुई है।
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दिन बीतते गए। selection round नज़दीक आता जा रहा था। मुकुंद और सुदीप ने मिलकर “Renewable Energy Storage Model” पर काम करना तय किया। यह विषय कठिन था, लेकिन यदि सही तरह से प्रस्तुत किया गया तो जजों को प्रभावित कर सकता था।
लंबी-लंबी रातें models बनाते, experiments करते, calculations ठीक करते बीतीं। कई बार model fail हो जाता, circuits जल जाते, equations गलत निकलतीं। हर failure मुकुंद को और गहरा धक्का देता।
एक रात जब लगातार तीसरी बार उनका model short circuit हो गया, मुकुंद चुपचाप कुर्सी पर बैठ गया। माथे पर पसीना था और आँखों में निराशा।
“शायद हमसे नहीं होगा…” उसने धीमे स्वर में कहा।
सुदीप ने उसकी तरफ़ देखा। “ऐसा मत बोल भाई। failure ही success की पहली सीढ़ी है। कल फिर से try करेंगे।”
आन्या, जो पास बैठी notes लिख रही थी, उसने हल्के से कहा, “मुकुंद, तुम्हारे अंदर हिम्मत है। यही तुम्हें जीत तक ले जाएगी। हार मानना तुम्हारे बस में नहीं है।”
उस रात मुकुंद ने फिर से खुद को सँभाला।
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कॉलेज में माहौल धीरे-धीरे प्रतियोगिता की ओर खिंचने लगा। हर ओर students models लेकर घूमते, notes पर चर्चा करते, और faculty बार-बार rehearsals कराती। tension इतनी थी कि हॉस्टल की रातें भी नींद से ज़्यादा plans और discussions में गुजरतीं।
लेकिन इस बीच मुकुंद के गाँव से एक और चिट्ठी आई। पिता बीमार पड़ गए थे। माँ ने लिखा—
“बेटा, हालात ठीक नहीं हैं। अस्पताल का खर्चा बढ़ रहा है। तू यहाँ चिंता मत कर, बस अपनी पढ़ाई और प्रतियोगिता पर ध्यान दे।”
यह पढ़कर मुकुंद का दिल डगमगा गया। वह सोच में पड़ गया कि क्या सचमुच इस प्रतियोगिता पर ध्यान देना सही है जबकि घर पर हालात बिगड़ रहे हैं।
उसने आन्या से यह बात साझा की। आन्या ने उसका हाथ पकड़कर कहा, “मुकुंद, तुम्हारा यहाँ जीतना ही तुम्हारे परिवार की सबसे बड़ी मदद होगी। अभी हार मान ली तो सब बेकार हो जाएगा।”
उसके शब्दों ने मुकुंद को फिर से दृढ़ कर दिया।
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चयन दिवस आ गया। Auditorium छात्रों से भरा था। जज panel में नामी प्रोफेसर और scientists बैठे थे। हर team को अपना model प्रस्तुत करने के लिए 20 मिनट दिए गए थे।
मुकुंद और सुदीप backstage खड़े थे। मुकुंद के हाथ ठंडे पड़ गए थे। सुदीप ने उसकी पीठ थपथपाई, “भाई, याद रख—हमने जितनी मेहनत की है, उतनी किसी ने नहीं। बस confidence से बोलना।”
उनका नाम पुकारा गया। दोनों stage पर पहुँचे। मुकुंद ने गहरी साँस ली और प्रस्तुति शुरू की।
शुरुआत थोड़ी shaky थी, लेकिन जैसे ही मुकुंद ने core concept समझाना शुरू किया, उसकी आवाज़ steady हो गई। equations, graphs और diagrams उसके शब्दों के साथ जैसे जीवंत हो उठे। सुदीप ने stylish presentation और clear visuals से जजों को impress किया।
जज बार-बार सवाल पूछते और मुकुंद बिना हिचक जवाब देता। auditorium में students फुसफुसाने लगे—“ये तो सच में strong project है।”
जब प्रस्तुति खत्म हुई, तो पूरे hall में तालियाँ गूँज उठीं। मुकुंद ने audience की ओर देखा—आन्या की आँखों में गर्व और सुकून झलक रहा था।
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लेकिन suspense अभी बाकी था।
Results की घोषणा अगले दिन होनी थी। पूरे hostel, पूरे कैंपस में उसी की चर्चा थी। कोई कहता—“अभिषेक की टीम टॉप करेगी।” कोई कहता—“मुकुंद और सुदीप dark horse हैं।”
उस रात मुकुंद को नींद नहीं आई। वह खिड़की से बाहर तारों को देखता रहा। उसे लगा जैसे हर तारा उससे कह रहा हो—“कल तेरी किस्मत का फैसला होगा।”
उसने आँखें मूँदीं और खुद से कहा, “चाहे जो भी हो, मैंने अपनी तरफ़ से सब कुछ दिया है।”
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अगली सुबह results घोषित होने वाले थे। Auditorium फिर से भरा हुआ था। सभी contestants breathless होकर stage की ओर देख रहे थे।
Host ने mic उठाया और कहा—
“महिलाओं और सज्जनों, अब वह घड़ी आ गई है जिसका सबको इंतज़ार था। नेशनल साइंस कॉम्पिटिशन के regional results अभी घोषित किए जाएँगे…”
पूरा hall सन्नाटे में डूब गया। मुकुंद का दिल धड़कनों से बाहर आने को था। सुदीप ने उसके हाथ को दबाया। आन्या audience में बैठी आँखों से उसे हिम्मत दे रही थी।
Host ने एक लिफ़ाफ़ा खोला। मुस्कुराया। और कहा—
“और विजेता टीम है…”
वाक्य अधूरा रह गया।
मुकुंद की साँसें थम गईं। हॉल की हवा भारी हो गई। हर कोई नाम सुनने को बेताब था।
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(Chapter 7 Ends – Suspense at Result)