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अध्याय 5 – पहला मौका
कठिनाइयों के बीच ज़िंदगी कभी-कभी एक रोशनी की किरण भी दिखा देती है। मुकुंद के लिए यह रोशनी तब आई, जब प्रोफेसर ने क्लास में एक घोषणा की—
“अगले महीने हमारे कॉलेज में Inter-College Debate Competition होने जा रहा है। यह मौका सिर्फ पढ़ाई का नहीं, बल्कि आपकी personality और confidence दिखाने का है। जो छात्र भाग लेना चाहते हैं, वे कल तक अपने नाम दे दें।”
पूरी क्लास में हलचल मच गई। कई students उत्साहित थे, कुछ घबराए हुए। सुदीप ने मुकुंद को कुहनी मारते हुए कहा,
“भाई, ये तो तेरे लिए perfect chance है! तू कितना अच्छा सोचता और लिखता है… बस बोलने में थोड़ा confidence चाहिए।”
मुकुंद चौंक गया।
“मैं? नहीं यार… इतने लोगों के सामने बोलना मेरे बस की बात नहीं है।”
सुदीप ने मुस्कुराकर कहा,
“बस एक बार कोशिश कर। डर हमेशा पहली बार लगता है।”
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शाम को library में मुकुंद की मुलाक़ात आन्या से हुई। उसने casually बातों-बातों में competition का जिक्र किया।
आन्या ने तुरंत कहा,
“तुम्हें भाग लेना चाहिए। तुममें एक सच्चाई है, और यही सबसे बड़ी ताकत है। लोगों के सामने बोलना मुश्किल है, लेकिन अगर तुम दिल से बोलोगे, तो सब सुनेंगे।”
उसके शब्द मुकुंद के अंदर तक उतर गए। उसने पहली बार सोचा—“शायद यह मौका मेरे लिए ही है।”
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अगले दिन, trembling hands के साथ उसने अपना नाम competition के लिए लिखवा दिया। क्लास से बाहर निकलते समय उसका दिल तेज़ धड़क रहा था, लेकिन भीतर कहीं एक संतोष था कि उसने हिम्मत दिखाई।
प्रोफेसर ने चुने गए छात्रों को बुलाया और कहा,
“यह आसान नहीं होगा। research, preparation और practice—सबकी ज़रूरत है। जो मेहनत करेगा, वही चमकेगा।”
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तैयारी शुरू हो गई। library मुकुंद का दूसरा घर बन गया। वह घंटों किताबों में डूबा रहता, notes बनाता, और mirror के सामने खड़ा होकर practice करता। शुरू-शुरू में उसकी आवाज़ काँपती, शब्द अटकते। लेकिन धीरे-धीरे, हर दिन थोड़ा-थोड़ा confidence बढ़ता गया।
सुदीप उसे हिम्मत देता—
“भाई, जोर से बोल! imagine कर कि सामने सब ताली बजा रहे हैं।”
आन्या उसे practical tips देती—
“शब्दों से ज़्यादा expression मायने रखता है। आँखों से connect करो, तभी लोग सुनेंगे।”
इन दोनों का साथ मुकुंद के लिए strength बन गया।
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Competition का दिन आया। Auditorium खचाखच भरा था—students, professors और बाहर से आए guests। मंच पर खड़े contestants के चेहरे nervousness और excitement से भरे थे।
जब मुकुंद का नाम पुकारा गया, उसके कदम जैसे भारी हो गए। वह धीरे-धीरे stage पर पहुँचा। सामने सैकड़ों आँखें थीं। उसके हाथ काँप रहे थे, लेकिन उसने गहरी साँस ली और अपनी माँ की याद की—“तू बोल बेटा, सच बोल।”
जैसे ही उसने बोलना शुरू किया, उसकी आवाज़ में हल्का कंपन था। लेकिन कुछ पलों बाद, जैसे ही वह अपने विषय में डूबा, उसकी आँखों में चमक आ गई। वह अपने विचारों को पूरे विश्वास के साथ रख रहा था।
लोग ध्यान से सुन रहे थे। अंत में जब उसने आखिरी लाइन बोली—
“सपनों की कोई कीमत नहीं होती, लेकिन उन्हें सच करने की हिम्मत ज़रूरी है।”
पूरा hall तालियों से गूंज उठा। मुकुंद की आँखों में अनजाने आँसू थे। वह जानता था कि यह उसकी जीत नहीं, बल्कि उसके संघर्ष की जीत थी।
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Result घोषणा के समय, मुकुंद को First Runner-up घोषित किया गया। यह Gold medal नहीं था, लेकिन उसके लिए किसी सोने से कम नहीं था।
सुदीप दौड़कर उसके गले लगा,
“भाई, आज तूने prove कर दिया कि गाँव का लड़का किसी से कम नहीं!”
आन्या ने मुस्कुराते हुए कहा,
“मैंने कहा था न, अगर दिल से बोलोगे तो सब सुनेंगे।”
मुकुंद ने आसमान की ओर देखा और मन ही मन कहा—
“बाबा, माँ… आज आपकी मेहनत रंग लाई है। यह तो बस शुरुआत है।”
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उस रात, मुकुंद ने diary में लिखा—
“यह पहला मौका था, और मैंने उसे पकड़ा। हार या जीत से बड़ा था—खुद को पहचानना। अब मैं जान गया हूँ, मैं कर सकता हूँ।”
और इसी के साथ मुकुंद की journey में एक नया अध्याय खुल गया—अब वह सिर्फ़ सपने देखने वाला लड़का नहीं, बल्कि उन्हें सच करने की दिशा में कदम बढ़ाने वाला योद्धा था।
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