🖋️ एपिसोड 17: “जब अपने ही पराए लगने लगें…”
> “कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं…
जो पास होकर भी दूर लगते हैं,
और कुछ लोग…
जो हमारे अपने होते हुए भी अजनबी बन जाते हैं।”
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Scene: किताब की सफलता और अनकहा बदलाव
रेहाना की किताब "बरसों बाद तुम – माँ की डायरी से"
मार्केट में आते ही ट्रेंड करने लगी।
रिव्यूज़, मैसेज, इंटरव्यू के ऑफर… हर ओर रेहाना का नाम।
लेकिन घर के एक कोने में एक चुप्पी पनप रही थी…
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Scene — सास-बहू के बीच हलका तनाव
रेहाना की सास रसोई में अकेले काम कर रही थीं।
रेहाना आई —
> “माँ जी, आज मैं बना देती हूँ न?”
“अब समय कहाँ तुम्हारे पास? अब तो तुम बड़ी लेखिका बन गई हो।”
रेहाना चुप।
शब्दों से ज़्यादा चुभ गया वो ताना।
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Scene — आरव की माँ, बहन से बात कर रही होती हैं
> “अब उसे कौन समझाए कि घर संभालना भी एक ज़िम्मेदारी है।
रोज़ किताब, फोटोशूट, फोन इंटरव्यू…”
“भाभी पहले जैसी नहीं रहीं।”
रेहाना उस वक़्त पास के कमरे में थी। सब सुन रही थी।
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Scene — रेहाना अकेले छत पर
हवा चल रही थी… किताब का पहला पन्ना हाथ में था,
पर आँखें नम थीं।
> “क्या मैंने कुछ गलत किया?”
“क्या किसी और का सपना जीना, घर के सपनों को तोड़ना कहलाता है?”
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Scene — आरव का ऑफिस से लौटना
> “कैसी रही आज की मीटिंग?”
“अच्छी थी… लेकिन घर में कुछ अच्छा नहीं लग रहा आरव।”
रेहाना ने सारी बातें बताईं।
आरव ने सिर झुकाया —
> “माँ शायद बदलाव से डर रही हैं।
वो तुम्हारा सपना समझ नहीं पा रही।”
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Scene — आरियान की मासूम बात
मम्मी उदास बैठी थीं।
आरियान आया, गोद में बैठा।
> “मम्मा, आप रो रही हो?”
“नहीं बेटा…”
“तो फिर आपकी आँखें भीग क्यों गईं?”
“कभी-कभी जब दिल भारी होता है न…
तो आँखें बारिश करने लगती हैं।”
> “तो क्या मैं छाता बन जाऊँ?”
रेहाना हँस पड़ी… एक हल्की मुस्कान के साथ।
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Scene — पड़ोसन शालिनी का आना
> “रेहाना दी, आपकी किताब पढ़ी।
मेरी माँ पिछले साल गईं, पर हर पन्ने में उनकी झलक दिखी।
शुक्रिया दी।”
> “आपकी वजह से मैंने अपनी डायरी फिर से खोल दी।”
रेहाना की आँखें चमक उठीं —
> “शायद मेरा लिखा किसी और की आवाज़ बन गया।”
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Scene — सास के साथ आमने-सामने की बात
रेहाना चाय लेकर आईं।
> “माँ जी, एक बार मेरी डायरी पढ़िए…
शायद आपको मैं दिख जाऊँ।
वो वाली मैं — जो आपके बेटे से प्यार करती है,
और इस घर से भी।”
सास ने कुछ नहीं कहा… बस किताब ले ली।
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Scene — देर रात सास की आंखों में नमी
किताब की एक लाइन पर अटक गईं —
> “माँ, एक शब्द नहीं…
एक पूरी ज़िंदगी होती है।
जो हर समय हमारी परछाईं बनी रहती है।”
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सुबह-सुबह सास का गले लगाना
> “मुझे माफ़ कर दे बिटिया…
मुझे डर था कि कहीं ये किताब तुझे मुझसे दूर न कर दे।
पर ये किताब…
मुझे तुझसे और क़रीब ले आई।”
रेहाना की आँखों से आँसू गिर पड़े।
> “माँ जी, अब आप मेरा दूसरा चेहरा नहीं…
मेरी पहली पाठक हैं।”
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Scene — आरव रेहाना को गले लगाते हैं
> “हम सब कभी न कभी अपने लोगों से अजनबी हो जाते हैं।
लेकिन अगर मोहब्बत सच्ची हो —
तो हर गलतफहमी, एक नए रिश्ते की शुरुआत बन सकती है।”
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✍️ रेहाना की डायरी की नई इंट्री
> _“माँ की चुप्पी,
बहन की नाराज़गी,
घर की परछाईं —
सब मेरी कहानी का हिस्सा थे।
मैंने सिर्फ किताब नहीं लिखी —
मैंने रिश्तों को दुबारा जोड़ने की कोशिश की।”_
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Episode Ends with…
रेहाना के हाथ में पेन, सामने नया डायरी पन्ना —
> “बरसों बाद तुम… जब अपने पराए लगने लगे —
तब खुद को और गहराई से पहचानने का वक़्त आता है।”
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🔔 Episode 18 Preview: “जब अजनबी कुछ अपना सा कह जाए…”
> एक कॉन्टैक्ट, एक मेल,
और एक पुराना रिश्ता…
क्या कोई भूला चेहरा लौट रहा है?
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