आदिराज की मौत गामाक्ष की ख़ुशी...
अब आगे............
आदिराज के गिरते ही देविका विहल हो उठती है,।।।।धीरे धीरे उस अंडे के दरार में से हरे रंग की रोशनी निकलने लगती है और देखते ही देखते वो अंडा पूरी तरह से टूट चुका था जिसमें से एक छोटी सी बच्ची निकलती है जिसकी आंखें गहरी हरे रंग की थी और उसका शरीर हल्के लाल रंग का था , जिसे सब हैरानी से देख रहे थे , तो वहीं वो लड़की अंडे के खोल से जैसे ही पहला कदम धरती पर रखती है वैसे ही उसके आकार में वृद्धि होने लगती है और कुछ ही पलों में वो एक सोलहा सत्रह साल की लड़की बन जाती है जो सबसे पहले आकर आदिराज को देखते हुए कहती हैं...." तो आपने मुझे बुलाया है , , बोलिए दिव्य पुरुष .. आपने नारकिय पिशाची कन्या को क्यूं बुलाया है.....?..."
आदिराज अपनी उखड़ी हुई आवाज में कहते हैं....." हे..!...पै.. पैशाची... कन्या..... तुम्हें...एक ...खास... मकसद.... से.... बुलाया है....अमोघनाथ.... इसे... उद्देश्य....बता...." ये आखिरी बात कहकर आदिराज की सांसें पूरी तरह खत्म हो चुकी थी और उनका शरीर शिथिल पड़ चुका था , , उनके खत्म होते ही घेरे की रेखाएं खुदबखुद उड़ जाती है.....
अमोघनाथ तुरंत आदिराज के पास जाकर उनके सिर को अपनी गोद में रखकर उस कन्या से अपनी रुंधे गले से कहते हैं....." सुनो पैशाची कन्या , , तुम्हें आदिराज जी ने अपनी ऊर्जा से बुलाया है तो तुम्हें इनकी आज्ञा के अनुसार इनके कार्य को पूरा करना है....."
" आप बोलिए मुझे करना क्या है..?..." उस कन्या ने पूछा....
अमोघनाथ उसे उसकी योजना बताता है , ,
" आप निश्चित रहिए आपका काम पूरा हो जाएगा..." इतना कहकर वो कन्या वहां से चली गई....
और अमोघनाथ आदिराज को वहां से ले जाकर उनके घर में पहुंचते हैं , , अमोघनाथ देविका को समझाते हुए कहता है जोकि अपने पति के मृत शरीर के पास बेसुध सी बैठी थी....
" देविका जी...! अब आप जल्दी से अपने बच्चों को इस गांव से दूर भेज दो...."
अमोघनाथ की बात सुनकर देविका अपनी आंखों से उसकी तरफ देखते हुए पूछती है...." मैं अपने पति को खो चुकी हूं और अब आप कह रहे हैं कि अपने बच्चों को भी अपने से दूर कर दूं ... नहीं..."
अमोघनाथ उन्हें समझाते हुए कहते हैं...." देविका...आदिराज जी ने कहा था उनके जाने के बाद दोनों बच्चों को गांव से दूर भेज देना , , अगर ऐसा नहीं हुआ तो तुम अपने दोनों बच्चों को भी खो दोगी , वो लड़की जो इस क्रिया से निकली है वो सिर्फ कुछ पल के लिए उस गामाक्ष को रोक सकती है , खत्म नहीं कर सकती अगर तुमने देर की तो इसका परिणाम भंयकर हो सकता है...."
देविका की आंखों में अब दोनों के खो जाने का डर था इसलिए जल्दी से अंदर कमरे में जाकर कुछ लेकर बाहर आती है......
उसे देखते हुए अमोघनाथ पूछते हैं..." देविका , ये क्या हैं...?.."
" अमोघनाथ जी.... मैं अपने पति की अंतिम क्रिया करके यहां से अपने बच्चों को लेकर चली जाऊंगी...."
अमोघनाथ उससे कहते हैं...." देविका , तुम नहीं जा सकती इस गांव से बाहर , .."
" लेकिन क्यूं अमोघनाथ जी..?..मेरे छोटे छोटे बच्चे अकेले कहां जाएंगे..?.."
" देविका आदित्य दस साल का है उसमें थोड़ी बहुत समझ है , वो आदिराज जी का बेटा है कोई साधारण से इंसान का नही है इसलिए वो खुद को और अदिति को संभाल लेगा..और इसका जबाव तुम्हें जल्द ही मिल जाएगा इसलिए इन्हें यहां से भेज दो जल्दी , , क्यूंकि कल मावस की बलि गामाक्ष के लिए एक नया रूप लेकर आएगी जिससे वो आक्रामक हो सकता है इसलिए देरी न करो ...."
देविका बेमन से हामी भरते हुए कहती हैं...." ठीक है अमोघनाथ जी...."
अमोघनाथ अदिति को अपने पास बुलाकर कहते हैं.." इधर आओ बेटी....इस मौली को छू लो बेटी..."
अमोघनाथ के कहने पर अदिति उस मौली को छू कर देविका के पास चली जाती हैं , ,
देविका आदित्य के हाथों में पैसे थमाते हुए कहती हैं...." बेटा , आज तेरी मां को तुम दोनों को अपने से दूर करना पड़ रहा है इसलिए इस मां को माफ कर देना , ..." देविका दोनों को अपने गले से लगा लेती है ,
और फिर आदित्य को अपने से दूर करते हुए कहती हैं...." आदित्य , तुझे बड़े भाई होने का फर्ज निभाना है अपनी बहन को हमेशा खुश रखना , , अब तुम दोनों जाओ यहां से दूर...जाओ मेरे बच्चों ...."
आदित्य रोते हुए कहता है ....." मां , आप चिंता मत करो मैं अदि का ध्यान रखूंगा..."
देविका दोनों के माथे पर चुमती है और प्यार से उनके गालों पर हाथ फेरते हुए भेज देती है...... दोनों गौधूली बेला में वहां से चले जाते है .......
उनके जाने के बाद चेताक्क्षी भी वहां से चली गई थी... धीरे धीरे गांव में आदिराज की मृत्यु की खबर फैली चुकी थी इसलिए सब देविका के घर में इकट्ठा होने लगे थे........
इधर आदिराज की अंतिम क्रिया हो रही थी उधर गामाक्ष अपने किले में आदिराज की अचानक मौत से बहुत खुश नजर आ रहा था " ये आदिराज तो मेरे बिना कुछ करे ही मर गया , अच्छा हुआ मेरे हाथों मरता तो बहुत तड़पकर मरता "
तभी पीछे से आवाज़ आती है..." दानव राज ! इसका अचानक मरना कुछ ठीक नहीं लगता...."
गामाक्ष उसे देखकर कहता है....." उबांक ! उसका मरना हम दोनों के लिए अच्छा है फिर तुम शक क्यूं कर रहे हो...?....."
" आप जानते नहीं हो इसे ये इतनी आसानी से नहीं मर सकता..."
" उबांक ! ये सब बाद में सोचेंगे पहले आज की बलि हो जाने दो...."
" जैसा आपको ठीक लगे..."
..... गामाक्ष बलि के लिए प्रेतराज की बड़ी सी भयानक मूर्ति के सामने बैठा बलि की तैयारी कर रहा था , ,
गामाक्ष के तैयारी करने के बाद उसके गुलाम प्रेत बलि के लिए उस लड़की को लेकर आते हैं , गामाक्ष उसके चेहरे को देखकर हैरानी से कहता है...." क्या यही हमारी बलि दी....इसकी आंखों का रंग हरा कैसे हैं...?..."
................to be continued.............