गामाक्ष हुआ पिंजरे में कैद....
अब आगे................
गामाक्ष अपने नाखूनों से लोगों को जख्मी कर रहा था , , अमोघनाथ ने उसे रोकने के लिए अपनी मंत्र शक्ति से कोशिश की लेकिन वो बेकाबू होता जा रहा था , ,
अमोघनाथ अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ , तब आखिर में वो चेताक्क्षी को बुलाकर कहते हैं...." बेटी , मेरा हाथ मत छोड़ना और जैसे जैसे मैं मंत्र बोलूंगा तुम उसे दोहराती जाना...."
अमोघनाथ के कहने के बाद चेताक्क्षी उनका हाथ पकड़ कर वैसे ही मंत्रों को दोहराने लगी जैसे जैसे अमोघनाथ बोल रहे थे.....
दोनों की मंत्रों की ऊर्जा से एक दिव्य प्रकाश निकलने लगा जिसने धीरे धीरे गामाक्ष को चारों तरफ से बांधना शुरू कर दिया , गामाक्ष अपनी पूरी कोशिश कर रहा था उस प्रकाश से बाहर निकलने की लेकिन उसकी शक्ति कमजोर पड़ रही थी , , मंत्रों की प्रक्रिया पूरी हो जाती है और वैसे ही वो प्रकाश एक बड़े से पिंजरे का रूप ले लेता है जिसमें गामाक्ष कैद हो चुका था , अमोघनाथ जल्दी से जाकर उस पिंजरे के दरवाजे को उस अभिमंत्रित मौली से बांध देते हैं , ,
गामाक्ष अब लाचार सा उस पिंजरे से निकलने के लिए झटपटा रहा था लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.....अमोघनाथ ने अब उसे उस किले में कैद कर दिया , , .........
फ्लैशबैक आॅफ................
गामाक्ष की सच्चाई जानकर आदित्य काफी ज्यादा हैरान नजर आ रहा था जिसे देखकर देविका पूछती है...." आदित्य , क्या हुआ बेटा...?...इन सब बातों को सुनकर तूझे इतनी हैरानी क्यूं हो रही है...?..."
" मां , मुझे उस पिशाच की बात से कोई हैरानी नहीं हुई , मैं तो ये सोच कर हैरान था कि पापा इतने शक्तिशाली इंसान थे..."
देविका मुस्कुराते हुए कहती हैं....." सिद्धियां तो उन्होंने प्राप्त की थी तभी तो वो पूरे गांव वालों के लिए देव समान थे , लेकिन उनकी यही शक्तियां किसी को इतनी जलन दे सकती थी कि आज उन सबकी वजह से तुम्हारे पापा जिंदा नहीं बचे..."
आदित्य देविका को समझाते हुए कहता है...." मां आप चिंता मत करो मैं सब ठीक करने की कोशिश जरूर करूंगा...."
विवेक जो अभी तक चुप बैठा था अचानक देविका जी से पूछता है...." आंटी जी , ये वनदेवी क्या होती है जिसकी वजह से आज अदिति उसके कैद में है...."
" वनदेवी के बारे में तो मुझे भी कुछ ज्यादा पता नहीं लेकिन तुम्हें इन सबके बारे में अमोघनाथ जी जरूर बता सकते है , तो उनके पास ही चलकर पूछ लेना.... चलो मेरे साथ..."
देविका जी तीनों को अपने साथ लेकर उस मंदिर की तरफ जाती है.... गांव के सुनसान रास्ते से होते हुए वो चारों मंदिर में पहुंचते हैं जहां आरती के बाद मंदिर बंद हो चुका था और पूजारी जी वहां से जा रहे थे लेकिन देविका को आते देख रूककर उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं.....
उन पूजारी जी से देविका जी पूछती है...." अमोघनाथ जी अंदर है...."
" जी , वो किसी साधना में लीन थे इसलिए उन्होंने मुझे जाने के कह दिया था , ..."
" ठीक है आप जाइए , मैं उनसे मिल लूंगी...."
देविका जी मंदिर के प्रांगण से होते हुए उस तहखाने में पहुंचती है जहां अमोघनाथ जी काली माता के सामने किसी पूजा विधि के लिए थाली तैयार कर रहे थे , कदमों की आहट सुनकर अमोघनाथ जी कहते हैं....." आओ देविका....मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था , तुम्हारा बेटा आ गया..."
" जी..."
अमोघनाथ जी पीछे मुड़कर देखते हुए कहते हैं...." देविका , मैं अभी उस गामाक्ष की हरकतों को देखने के लिए आज मां काली के सामने उसकी विधि की ही तैयारी कर रहा हूं , ...बैठो तुम सब..."
आदित्य हैरानी से पूछता है....." आपको पता था अदिति उस पिशाच की कैद में है...."
देविका उसके सवाल का जबाव देती है...." आदित्य मैंने बताया था न ये भी सिद्धियां प्राप्त कर चुके हैं और इन्होंने ही मुझे तुम सब के आने की बात बता दी थी....."
" तो मां इनसे कहिए न ये जल्दी से अदि को वहां से बचाने का रास्ता बताएं...."
अमोघनाथ जी आदित्य के कंधे पर हाथ रखते हुए कहते हैं......" तुम्हारी छवि में खुद आदिराज जी का रूप दिखाई देता है , तुम बिल्कुल उन्हीं की तरह हो , तुम्हें अपनी बहन की जितनी चिंता है उतनी हमें भी उसे वहां से बाहर निकालने की चिंता खाए जा रही है लेकिन ये काम बहुत मुश्किल हो चुका है, , इसलिए तुम सबको इसमें मेरा साथ देना होगा और आदित्य तुम्हें यहीं पर रहकर अदिति के लिए सुरक्षा मंत्र क्रिया करनी होगी ताकि उसे वो पिशाच देहविहीन न कर दे...."
तभी विवेक पूछता है " ये देहविहीन क्या होता है ,। .."
अमोघनाथ जी उसे बताते हैं...." देहविहीन का अर्थ है , बिना किसी को नुक्सान पहुंचाए कुछ मंत्रों के जरिए उस शरीर से उसकी आत्मा को अलग कर देना , जिससे आत्मा की बलि दी जा सके ताकि वो दोबारा जन्म न लें सके...."
आदित्य गंभीरतापूर्वक कहता है...." तो हमें जल्दी ही अदिति को बचाना होगा...."
" बिल्कुल आदित्य..."
अमोघनाथ जी विवेक के पास जाकर उसे देखकर धीरे से कहते हैं...." तुम्हारे अंदर बहुत से सवालो ने अपना घर बना रखा है जिसे जानने के लिए तुम बहुत हिचग रहे हो , किंतु निश्चित रहो तुम्हें तुम्हारे सारे सवालों के जवाब में दे दूंगा...."
अमोघनाथ जी बात सुनकर विवेक काफी शाक्ड लग रहा है और खुद से ही बड़बड़ाता है...." मेरे अंदर बहुत से सवाल है लेकिन इन्हें कैसे पता , ...?.. इसका मतलब आंटी की बात सच है इनके पास भी कोई मेजिकल पावर है...."
अमोघनाथ जी विवेक के चेहरे पर आ रहे भाव को देखकर मुस्कुराते हुए वापस अपने आसन पर जाकर बैठ जाते हैं....
" अब मुझे चेताक्क्षी को बुलाना होगा , अब वो ही हमारी इस काम में मदद करेगी..."
चेतिक्क्षी का नाम सुनते ही आदित्य बोलता है...." अरे हां...!... मां आपने ये तो बताया नहीं था कि उस पिशाच को कैद करने के बाद चेताक्क्षी कहां चली गई थी...?..."
................to be continued...........