मीरा और आरव अपने नये पड़ोसी से मिलने उनके घर जाते हैं, लेकिन जैसे ही मीरा बच्ची को देखती है, वो डर के मारे भागकर घर आ जाती है....
अब आगे.....
ये क्या बचपना है, मीरा तुम ऐसे भागकर क्यूं चली आई... पता नहीं उन लोगों ने क्या सोचा होगा... आखिर हुआ क्या है तुम्हें??? ( आरव ने गुस्से में कहा)
मीरा जो कि बहुत घबराई हुई थी, वो बच्चीऽऽ
वोही है, आरव जिसे मै हमेशा देखती हूं, उसे मैंने उस रात भी झूले पर देखा था, ( मीरा ने घबराते हुए कहा)
तुम सच में पागल हो चुकी हो मीरा, वो बच्ची अपने मां बाप के साथ कल ही शिफ्ट हुई है, उसे तुम पहले कैसे देख सकती हो??? और तुम उस बच्ची से डर रही हो?? सिरयसली मीरा ???
मै परेशान हो चुका हूं तुम्हें बता बता कर कि भुत प्रेत जैसा कुछ नहीं होता... हां मानता हूं ये घर बहुत पुराना है, और इस घर का मालिक घर छोडकर चला गया था, और यही वजह है, कि लोग अफवाहें बनाते हैं, पर ट्रस्ट मी मीरा ऐसा कुछ भी नहीं है, ये सब तुम्हारे दिमाग का भ्रम है, अगर ऐसा कुछ होता तो मुझे भी कुछ फील होता, पर मुझे अब तक के ऐसा कुछ भी समझ नहीं आया....
तुम नहीं समझोगे आरव मैं हर रात इस घर के अगल पहलू को देखती हूं, पर अब मै पता लगाकर रहूंगी कि आखिर क्या कनेक्शन है ये सब का, और वो बच्ची आखिर है, कौन??
एक आत्मा या कुछ और .... ( मीरा ने खुद से कहा)
आरव के ऑफिस जाने के बाद मीरा ने फिर से अनुराधा कि डायरी को पढ़ने के लिए निकाला... पर उस डायरी में अब अनुराधा की तस्वीर नहीं थी,
मीरा: ये क्या यही तो रखी थी, कहा चली गई.. (मीरा ने हर जगह तस्वीर को ढूंढा पर तस्वीर उसे कहीं नहीं मिली,... मीरा ने डायरी के अगले पन्ने को पलटा पर डायरी से शब्द गायब थे, )
ये क्या कल तो ये डायरी पुरी तरह से भरी हुई थी, और अब यहां कुछ भी नहीं लिखा है , ऐसा कैसे हो सकता है???
उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, तभी मीरा को वो कमरा याद आया, जहां वो रात को मौजूद थी,
मीरा जल्दी से ड्राईंगरूम से होते हुए उस कमरे पर पहुंची, कमरा थोड़ा नीचे की तरफ था, जैसे कोई तहखाना... नीचे जाने के लिए सीढ़ियां थी... मीरा डरते डरते नीचे ग ई...
दरवाजे मे धुल और लगे जाले साफ बता रहे थे, जैसे कमरा सालो से नहीं खुला, एक ताला भी लगा हुआ था, मीरा ने ताला तोड दिया, और अंदर ग ई.... कमरा पूरी तरह से धूल खा रहा था, मीरा ने लाईट लगाई, आश्चर्य कि बात ये थी कि इतने सालों से बंद कमरे में लाइट ठीक तरह से काम कर रही थी,
आधा कमरा खाली था, और आधा सामान से भरा हुआ, मीरा धीरे धीरे कमरे के सामान को देख रही थी, कुछ पुराने कैलेंडर, उसमें से एक कैलेंडर की अक्टूबर महीने की आधी तारिख पर गोले पडे हुए, ये बता रहे थे, कि जैसे कोई व्यक्ति किसी चीज का या कुछ होने का इंतजार कर रहा हो...
पर किस बात का???
एक बड़ी सी अलमारी, मीरा की बहुत कोशिश के बाद वो अलमारी खुली, कुछ पैसे, कुछ कपड़े, और एक पोटली,
मीरा ने पोटली बाहर निकाली,लाल कपड़े से बंधी हुई पोटली जिसमें कुछ सामान था, जैसे एक कान की बाली, रुमाल, और कुछ लेटर , मीरा ने लेटर निकाल लिए...
मीरा जैसे ही आगे बढ़ी, उसे कपड़े से ढका वो ही मिरर दिखा , उसने कपडा हटाया....मिरर देखते ही मीरा को कल रात की सारी बातें याद आ रही थी, उसने हाथ से मिरर पर लगी धूल हटाई...
जैसे ही उसने मिरर साफ किया उसने महसूस किया कि अनुराधा पीछे खडी हुई है,, अनुराधा मिरर पर देखकर रो रही थी, मीरा डर गई, मीरा ने जैसे ही पीछे पलटकर देखा, पर वहां कोई नहीं था,,
पर उसने फिर से टेलीफोन के बजने की आवाज सुनी, मीरा डरते डरते टेबल पर रखे टेलीफोन के पास ग ई
ये कमरा तो इतने सालों से बंद है, फिर टेलीफोन क्यूं बज रहा है?? पर मीरा ने हिम्मत करके फोन उठाया...
हैलो अनु मै वासू बोल रहा हूं, मैंने सारा इंतजाम कर लिया है, तुम तैयार रहना..... मीरा इतना ही सुन पाई उसके बाद आवाज अटक गई....
मीरा ने फिर भी हैलो कहा....
मीरा मैंने तुम्हें देख लिया है, फ़ोन के उस तरफ से मीरा को ये आवाज आई, और फिर हंसने की आवाज...
मीरा अब बहुत डर चुकी थी, वो जल्दी वहां से भागी....
मीरा अब ड्राईंगरूम मे आ चुकी थी, डर के मारे जोर से जोर से सांसें ले रही थी, करीब दस मिनट बाद मीरा थोडी रिलेक्स हुई...
मीरा ने हाथ में रखे लेटर को देखा... पर सालो पुराने होने की वज़ह से, स्हायी पुरी तरह फैल चुकी थी, मीरा कुछ पढ नहीं पा रही थी,
आखिर क्या है ये घर ??मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा आरव भी तो मेरी बाते समझ नहीं पा रहा है, किसे बताऊं मै ये सब... आखिर क्यों मैं हर रोज इस घर के पास्ट में चली जाती हूं??? ( वो इरिटेट होकर बोली)
तभी उसका ध्यान एक लेटर पर गया, उस लेटर पर धीरे धीरे सारी लिखावट साफ़ नजर आ रही थी, मीरा ने लेटर उठाकर देखा.....
पत्र
दिनांक -24/10/1965
हाउस नं105
एडवोकेट अनुराग त्रिपाठी
बसंत काॅलोनी
कोलाड
"अनुराधा तुम्हें नहीं पता कि, मै तुमसे कितना प्यार करता हूं, पर अब मै तुमसे दूर जाना चाहता हूं, मुझे पता है कि तुम मां बनने वाली हो , अब मै तुम्हे अपना नहीं सकता..
तुम मुझे भूल जाओ, ये मेरा आखिरी खत है, अब मै हमेशा -हमेशा के लिए तुम्हारी जिंदगी से जा रहा हूं, और हां मै आशा करता हूं कि तुम अनुराग के साथ ही रहोगी...
वासू......
अगर वासू मीरा की लाइफ से जाना चाहता तो, फिर कल रात वाला काॅल जिसमें वासू ने अनुराधा को यहां से ले जाने को कहा था, वो सब क्या था??
( मीरा इतना सोचती ही है, कि मीरा की नजर एक और पन्ने पर जाती है, जिसमें लिखा होता है.....
मैंने उसे नहीं मारा, पता नहीं वो कैसे मर गई, पर मैंने नहीं मारा, मेरी बातों पर किसी को भी भरोसा नहीं है, और वासू भी मुझे छोडकर जा चुका है, मैंने उस बच्ची को नहीं मारा , अनुरा.....
ये आधा लिखा हुआ लेटर साफ बता रहा था, कि लेटर जिसने भी लिखा था, वो कुछ कन्फेस करना चाहता था,
तभी मीरा को याद आता है, ये लिखावट तो अनुराधा कि है, वो ये सब किसके लिये लिख रही थी, और ये
अधुरा शब्द?? आखिर क्या लिखना चाहती थी, अनुराधा??? और किसे न मारने की बात कर रही थी,
To be continue....