Rooh - 12 in Hindi Women Focused by Komal Talati books and stories PDF | रुह... - भाग 12

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रुह... - भाग 12

                                    

                                         १२.



"मां, वो कौन थे?" पायल उत्सुकतावश पूछती है।

"पता नहीं बेटा, मैं नहीं जानती उन्हें। वो तो अचानक भागते हुए आ गए थे क्योंकि उनके पीछे एक डॉगी पड़ गया था। तो बस मैंने थोड़ी मदद कर दी।"

"इतने बड़े हो गए, फिर भी डॉगी से डरते हैं?" पायल हंसते हुए कहती हैं, जिससे दोनों ही हंस पड़ीं।

कुछ देर बाद पायल गंभीर होकर कहती हैं कि,

"आज बहुत मज़ा आया न मां? रोज़ तो मैं अकेली जाती हूं, तो थोड़ा डर भी लगता है और अकेलापन भी। आज तो पता ही नहीं चला कब घर पहुंच गए।"

उसी समय तारा देवी आवाज़ लगाती हैं,

"सुबह-सुबह कहां से आ रही हो, दोनों मां-बेटी इतनी ठंडी में?"

वे अपने पर

शोल कसकर लपेट आंगन की कुर्सी पर बैठी हुई थीं।

"अरे दादी मां! हम तो ठंड का मज़ा लेने गए थे, बस वहीं से आ रहे हैं," पायल उनके पास जाकर बैठ ते हुए कहती हैं।

सुनीति जी सर्द हवा से कांपते हुए कहती हैं कि,

"अरे मांजी, आप यहां बाहर क्यों बैठी हैं? आइए, अंदर चलिए, मैं गरम-गरम अदरक वाली चाय बना देती हूं।"

तारा देवी मुस्कुराते हुए कहती हैं कि, "तू यहीं ले आ चाय… देख, सुबह की हल्की-हल्की धूप निकली हुई है, तो अच्छा लग रहा है यहां।" उन्होंने अपने हाथ मसलते हुए आसमान की तरफ देखा।

सुनीति जी हामी भरते हुए सिर हिलाकर भीतर चली जाती है चाय बनाने। पायल वहीं दादी मां के पास बैठ गई थी। ठंडी हवा, धूप की नरमी और घर का अपनापन,  सब मिलकर उस पल को और भी ख़ूबसूरत बना रहे थे।

कुछ ही देर में

सुनिती जी गरमागरम अदरक वाली चाय लेकर आ गई। तीनों ही आंगन में धूप सेंकते हुए चाय पीने लगते हैं।

चाय का पहला घूंट लेते ही तारा देवी मुस्कुराते हुए कहती हैं कि,

“अरे वाह! वैसी ही चाय बनी है जैसी तेरे पापा बनाया करते थे, पायल।”

पायल चौंकते हुए कहती हैं कि, “सच दादी मां? पापा भी चाय बनाते थे?”

“हां बेटा,” तारा देवी की आंखों में हल्की नमी उतर आती है।

“जब-जब मैं बीमार पड़ जाती थी न, तेरे पापा ही रसोई में घुसते थे। मुझे तो डर लगता था कि कहीं मसाले ही न उलटे-सीधे डाल दे। पर वो हमेशा कहते, मां, मैं डॉक्टर नहीं बन सका, पर चाय की दवा तो बना ही सकता हूं… और वाकई, उसकी बनाई चाय पीकर मैं हमेशा ठीक हो जाती थी।”

सुनिती जी भी उस याद को याद करते हुए कहती हैं कि,

“हां मां, वो चाय सच में दवा जैसी असर करती थी। शायद उसमें उनका प्यार मिला होता था।”

पायल चुपचाप दोनों को देख रही थी। उसके लिए यह सब सुनना नया था।

“दादी मां, आपने पहले कभी ये सब क्यों नहीं बताया?”

“कभी वक्त ही कहां मिला, बेटा। तेरे पापा तो बहुत कम उम्र में…” कहते-कहते तारा देवी रुक जाती है।

कुछ पल की चुप्पी छा गई थी। हवा भी जैसे थम सी गई थी।

फिर पायल दादी का हाथ थामकर कहती हैं कि,

“अब आप हमें सारी बातें बताएंगी। मुझे पापा की हर छोटी-बड़ी याद सुननी है।”

तारा देवी की आंखें नम थीं, लेकिन चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।

“ठीक है, आज से हर सुबह की चाय के साथ तुम्हें एक नई कहानी सुनाऊंगी। ताकि तेरे पापा हमेशा तुम्हारे आस-पास रहें।”

सब लोग बरामदे में बैठकर गरमागरम अदरक वाली चाय का मज़ा ले रहे थे। हल्की-हल्की धूप खिली थी और ठंडी हवाओं में चाय की भाप जैसे और सुकून दे रही थी।

तारा देवी बातचीत की शुरुआत करते हुए पायल से उसके कॉलेज और कामकाज के बारे में पूछती है। पायल कुछ बोल ही रही थी कि तभी उसका मोबाइल बज उठता है। फोन अमिता का था।

अमिता बिना रुके कहती हैं कि, “तू आ रही है न आज कॉलेज? देख, पहला दिन है और बिना तेरे मन ही नहीं लगेगा।”

पायल मुंह बनाते हुए कहती हैं कि, “नहीं यार, आज नहीं आ रही। वैसे भी पहले दिन तो बस इंट्रो ही होता है। स्कूल की तरह टाइमपास ही समझ लो।”

अमिता ज़िद करते हुए कहती हैं कि, “आजा न, मज़ा आएगा।”

पायल हंसते हुए कहती हैं कि, “ऐसा करो, तुम दोनों भी मत जाओ। शॉपिंग का प्लान है, यहीं आ जाओ।”

अमिता थोड़ा सोचकर कहती हैं कि, “ठीक है, मैं पलक से पूछकर बताती हूं।”

फोन रखते ही पायल की मां, सुनीति जी मज़ाक में टोकते हुए कहती हैं कि, “कहां जाने का प्लान बन रहा है, मेडम?”

पायल मस्ती भरे अंदाज़ में कहती हैं कि, “मां, बहुत दिनों से शॉपिंग पर नहीं गए हैं, तो बस वही प्लान बना रहे हैं। और हां, आप भी साथ चलेंगी, कोई बहाना नहीं चलेगा।”

सुनीति जी मुस्कुराकर कहती हैं कि, “अच्छा जी, तो कब चलना है मेरी मां?”

वातावरण एकदम हल्का और खुशनुमा हो गया था। तीनों पीढ़ियों का यह साथ मानो घर में रौनक घोल रहा था।

पायल की आंखों में चमक साफ़ झलक रही थी।

"मां, नहीं हूं मैं आपकी," उसने नखरे से कहा और कप में से आख़िरी घूंट लेकर रख देती है।

"अरे, तू चाहे जो कह ले, है तो तू मेरी ही," सुनिती जी ने प्यार से उसकी नाक दबाई।

इतना सुनकर तारा देवी भी मुस्कुराती है, "ये मां-बेटी तो हर रोज़ किसी नाटक मंडली का हिस्सा लगती हैं।" वह मन ही मन कहती हैं।

"दादी, आप भी चलिएगा हमारे साथ शॉपिंग पर," पायल शरारत से कहती हैं।

"मेरी प्यारी पायल, तेरे साथ शॉपिंग? मुझे तो देख-देखकर ही थकान हो जाएगी। पर हां, तू जो लेकर आएगी, उसमें से मुझे भी एक नई चादर चाहिए," तारा देवी मुस्कुराते हुए कहती हैं।

"पक्का दादी मां! आपकी चादर भी और मम्मा की साड़ी भी," पायल जोश से जवाब देती है।

तभी पायल का फोन फिर से बजता है। इस बार अमिता थी, और पीछे से पलक की हंसी की आवाज़ भी आ रही थी।

"हेलो! मैडम, तय हो गया है। आज सब मिलेंगे और जमकर शॉपिंग करेंगे।"

"ये हुई न बात!" यह कहते हुए खुशी से पायल उछल पड़ती है।

"ओके, तुम दोनों सीधे मॉल पहुंच जाना, हम वहीं मिलेंगे।"

फोन रखते ही पायल अपनी मां का हाथ पकड़ कहती हैं कि,

"चलो न मां, आज पूरा दिन सिर्फ हमारा होगा।"

सुनिती जी धीरे से सिर हिलाते हुए कहती हैं कि, "ठीक है बेटा, पर याद रखना शॉपिंग से ज़्यादा ज़रूरी साथ बिताया गया वक्त होता है।"

कुछ घंटों बाद...

सुबह का समय था, धूप अब तेज़ होने लगी थी। घर के बाहर खड़ी पायल अपनी स्कूटी पर बैठी बार-बार घड़ी देख रही थी।

“मां, देर हो रही है, और कितनी देर?” वह बेसब्री से कहती हैं।

अंदर से सुनीति जी आवाज़ लगाते हुए बाहर आती है, “हां बेटा, आ रही हूं। बस पांच मिनट।”

वे तारा देवी के कमरे में जाकर उनके पास ज़रूरी सामान सहेज रही थीं, थोड़ा-सा खाना, पानी का जग और दवाइयां। ताकि उनकी गैरमौजूदगी में दादी को किसी तरह की दिक़्क़त न हो।

उसी बीच पायल को याद आता है कि अमिता से अभी तक साफ़-साफ़ पूछा ही नहीं कि वो आ रही है या नहीं।

“चलो, एक बार फोन कर ही लेती हूं, नहीं तो बाद में खामखां मुझ पर गुस्सा होगी।” उसने मन ही मन सोचा।

फ़ोन लगते ही अमिता की आवाज़ आती है, “हेलो, पायल! मैं नहीं आ सकती, कुछ गेस्ट आ रहे हैं घर पर।”

पायल शरारत में उसे चिढ़ाने के लिए कहती हैं कि, “अच्छा, चल कोई ना। तू गेस्ट संभाल, मैं शॉपिंग के मज़े लेती हूं।”

यह सुन अमिता मुंह बिचकाकर गुस्से में फोन काट देती है। उसकी यह हरकत पायल को इतनी मज़ेदार लगी कि वह ज़ोर से हंस पड़ी थी।

उसे यूं खिलखिलाकर हंसते देख सुनीति जी बाहर आते हुए कहती हैं कि, “क्यों बेटा, इतनी हंसी किस बात पर आ रही है?”

“अरे मां, वो कुछ नहीं… बस अमिता को परेशान करने में बड़ा मज़ा आता है।” पायल हंसते हुए कहती हैं।

सुनीति जी भी मुस्कुरा देती है।

“अच्छा है बेटा, सच में ज़िंदगी में एक दोस्त तो होना ही चाहिए। जिसके साथ हंसी–मज़ाक कर सको, अपना सुख–दुःख बांट सको। वरना ज़िंदगी कितनी बेरंग लगती है।”

“हां मां। वैसे आपका भी कोई दोस्त था क्या?” पायल उत्सुकता से पूछती है।

“थी एक नकचड़ी।” सुनीति जी हल्की मुस्कान के साथ पुरानी यादों में खोते हुए कहती हैं।

“मुझसे तो आज तक नहीं मिलवाया आपने!” पायल नकली नाराज़गी जताते हुए कहती हैं।

“मुझे ही नहीं पता कि वो अब कहां है, किस हाल में है…” सुनीति जी की आंखों में क्षणभर को उदासी झलक आई थी।

मां को चुप होता देख पायल तुरंत बात बदल देती है,

“मां, आज आप जींस ट्राय करना, आप पर बहुत जचेगी।”

“हठ पागल! मेरी कोई उम्र है अब जींस पहनने की?” सुनीति जी ने प्यार से उसे थपकी मारी।

“आप बस ऐसे ही हंसते रहिए मां… आपके चेहरे पर उदासी मुझे अच्छी नहीं लगती।” पायल स्कूटी के साइड मिरर से मां की ओर देखते हुए कहती हैं।

सुनीति जी आंखों की कोर पोंछते हुए मुस्कुराकर कहती हैं कि,

“पागल।”

बातों ही बातों में दोनों मां–बेटी शहर के बड़े मॉल के सामने पहुंच जाती है।

“मां, आप चलिए… मैं स्कूटी पार्क करके आती हूं।”

सुनीति जी मॉल के भीतर चली गई। लेकिन पायल को स्कूटी पार्क करने के लिए जगह मिल ही नहीं रही थी। चारों तरफ भीड़ और गाड़ियों की कतारें थीं। काफ़ी मशक्कत के बाद आखिर उसे एक जगह मिली। जैसे ही वह स्कूटी ठीक से पार्क कर रही थी, तभी उसकी जेब में रखा मोबाइल वाइब्रेट हुआ।

स्क्रीन पर “मां कॉलिंग” लिखा देख पायल ने झट से कॉल रिसीव किया।

“कहां रह गई पायल?” सुनीति जी फोन पर थोड़ी अधीरता से पूछती है।

“आ रही हूं मां, बस पांच मिनट।” पायल ने जवाब दिया।

“ठीक है, मैं बाहर ही हूं।”

“जी मां।”

फोन रखते ही सुनीति जी मॉल के बाहर खड़ी भीड़ को देख रही थीं कि तभी अचानक किसी ने पीछे से उनके कंधे पर हल्के से हाथ रखा।

वे

मुड़कर देखती है, और जैसे समय थम जाता है। सामने वही चेहरा… वही आंखें… जिन्हें वो बरसों से सिर्फ़ यादों में ढूंढती आई थीं। एक पल को दोनों के होंठ सिले रह गए, पर आंखों में अनगिनत बातें तैर गई थी।

बिना कुछ कहे सुनीति जी ने उन्हें गले से लगा लिया। इतने सालों का फासला, जैसे इस एक आलिंगन में सिमट गया। उनकी आंखों से आंसू ढुलक पड़े थे।

तभी पायल वहां पहुंच जाती है। सुनीति जी को रोते देख वह घबरा जाती है, “मां, क्या हुआ? आप रो क्यों रही हो? और ये कौन हैं?”

सुनीति जी आंसू पोंछते हुए कांपती आवाज़ में कहती हैं कि,

“नहीं बेटा… ये तो खुशी के आंसू हैं। मुझे तो उम्मीद भी नहीं थी कि इनसे यहां मुलाकात होगी।”

पायल की आंखें हैरानी से फैली हुई थीं। उसने बारी-बारी से मां और उस अनजान शख़्स को देखा। सवाल उसकी आंखों में साफ़ झलक रहे थे “आख़िर ये हैं कौन?”


क्रमशः