इच्छाधारी शेरनी का बदला – भाग 8
✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी
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मेला और खौफ
गाँव के पास सालाना मेला लगा था। ढोल-नगाड़ों की आवाज़, झूले की चमकती रोशनियाँ, दुकानों पर लगी मिठाइयों की खुशबू… हर तरफ़ उत्साह था। लेकिन इस उत्साह के बीच उन आठ बचे हुए शिकारी लगातार बेचैनी महसूस कर रहे थे।
उनकी नज़रें बार-बार जंगल की ओर उठ जातीं। उन्हें लगता जैसे अँधेरे से कोई उन्हें घूर रहा हो।
आठवाँ शिकारी (धीमे स्वर में):
“ये शेरनी हमें जंगल तक ही सीमित नहीं रखेगी। अब ये हमारे बीच आएगी… देख लेना।”
बाकी शिकारी उसकी बात सुनकर काँप गए। भीड़-भाड़ में वे सुरक्षित समझते थे, पर दिल के भीतर डर का साया गहरा रहा था।
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शेरनी का मायाजाल
इधर इच्छाधारी शेरनी ने अपनी अगली चाल चल दी थी। उसने अपना रूप बदलकर एक सुन्दर गाँव की युवती का रूप धारण किया। उसकी आँखों में एक रहस्यमयी आकर्षण था।
वह मेले में ऐसे घूम रही थी जैसे किसी खोए हुए साथी को ढूँढ रही हो। उसकी अदाओं ने गाँव के कई लड़कों को आकर्षित कर लिया। लेकिन शेरनी की निगाहें सिर्फ उन्हीं शिकारी पर थीं जिन्होंने उसके साथी शेर को मारा था।
शेरनी (मन ही मन):
“आज मेला तुम्हारे लिए मौत का मैदान बनेगा।”
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मौत का खेल
झूले के पास भीड़ जमा थी। शोर-शराबे के बीच अचानक नौवें शिकारी की नज़र उस युवती पर पड़ी। वह उसकी सुंदरता से प्रभावित हो गया।
नौवाँ शिकारी (साथियों से):
“देखो, वो लड़की हमें बुला रही है।”
साथी शिकारी उसे रोकना चाहते थे, पर उसके कदम खुद-ब-खुद उसकी ओर बढ़ गए। युवती (यानी शेरनी) उसे मुस्कुराकर पास ले गई और धीरे-धीरे भीड़ से दूर एक सुनसान हिस्से की ओर ले गई।
अचानक युवती की मुस्कान गायब हो गई। उसकी आँखें लाल हो उठीं, नाखून लंबे हो गए और देखते ही देखते वह शेरनी बन गई।
नौवाँ शिकारी (चीखते हुए):
“बचाओ! ये औरत नहीं, मौत है!”
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जंगल के किनारे उसकी लाश रह गई और मेला अपने शोर में चलता रहा।
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गाँव में दहशत
जब लोगों को पता चला कि शिकारी गायब है और बाद में उसकी खून से लथपथ लाश मिली, तो गाँव में अफरा-तफरी मच गई। औरतें बच्चों को घर ले जाने लगीं, मेला अचानक भय के मेले में बदल गया।
गाँव का बुजुर्ग:
“ये सामान्य शेरनी नहीं… ये आत्मा है, इच्छाधारी है। जिसने भी इसका बुरा किया, वो बच नहीं सकता।”
बाकी सात शिकारी एक जगह इकट्ठा हुए। उनके चेहरों पर पसीना था, आँखों में डर।
दसवाँ शिकारी (काँपती आवाज़ में):
“अब साफ हो चुका है, ये हमें खत्म करके ही रुकेगी।”
ग्यारहवाँ शिकारी:
“तो क्या हम भाग जाएँ?”
बारहवाँ शिकारी (जोर देकर):
“नहीं! अगर भागे तो लोग हमें हमेशा कायर कहेंगे। हमें इसका सामना करना ही होगा।”
लेकिन उनके दिलों में हिम्मत कम और मौत का डर ज्यादा था।
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शेरनी की प्रतिज्ञा
उस रात शेरनी ने पेड़ों की चोटियों पर बैठकर शिकारियों की बातचीत सुनी। वह गरजी—
“तुम चाहे जितने बहादुर बनने की कोशिश करो, तुम्हारा अंजाम तय है। तुमने मेरे साथी की जान ली है… मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूँगी।”
जंगल की हवाएँ उसकी दहाड़ से काँप उठीं। मेले की रोशनियाँ बुझ-सी गईं। और शिकारी समझ गए—
अब बच निकलने का कोई रास्ता नहीं।
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👉 अगले भाग में:
शिकारी दल शेरनी को पकड़ने के लिए जाल और बारूद का सहारा लेता है। लेकिन क्या इंसानी चालाकी इच्छाधारी की ताकत से जीत